: प्रिंसेस डायना जैसा हादसा दीपिका पादुकोण पर थोपने पर आमादा पत्रकार : किसी खानदानी पागल की तरह चीखती-चिल्लाती रही रिपब्लिक भारत टीवी चैनल की महिला रिपोर्टर :
दोलत्ती संवाददाता
लखनऊ : दीपिका पादुकोण और ब्रिटेन की प्रिंसेस डायना की कहानी काफी-कुछ एकदूसरे की तरह ही मिलती-जुलती है। ऐसा ही माहौल, वही पूछताछ, वही बचने-दबोचने की कोशिशें, वही पीछे पड़े पत्रकार, वही सवाल, वही अंदाज, वही रवैया, वही साजिशें और वही कार से भागम-भाग का सीन। सिवाय इसके कि इस समानता वाली कहानी में प्रिंसेस डायना की कार पीछे पत्रकारों से बचने की कोशिश में पेरिस की सुरंग में दुर्घटनाग्रस्त होकर चीथड़ों में तब्दील हो गयी, जबकि दीपिका पादुकोण अब तक जिन्दा है। लेकिन मुम्बई में आज जो कुछ भी पत्रकारों ने दीपिका पादुकोण को दबोचने की साजिशें बुनीं, उसने साबित कर दिया कि भारतीय पत्रकारों ने यूरोप के पत्रकारों की संवेदनशीलता को तो तनिक भी नहीं समझा, बल्कि यूरोप में चौंपतिया अखबार के तौर पर कुख्यात पेपराजियों की कमीनगी का पूरा का पूरा लबादा भारतीय पत्रकारों ने ओढ लिया।
आपको बता दें कि वह 31 अगस्त 1997 की घटना है, जब ब्रिटेन की प्रिंसेस डायना पेरिस में एक कार-दुर्घटना में हमेशा-हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा हो गयी। लेकिन इस हादसे का असल कारण था पेरिस के पेपराजियों यानी पत्रकारों की कमीनगी। दरअसल, डायना अपने मित्र डोडी अल फ़ायद से जा रही थी। कुछ पेपराजी (सिलेब्रिटीज की फोटो खींचने वाले फोटोग्राफर ) प्रिंसेस डायना और उसके दोस्त डोडी अल फायद की कार का पीछा कर रहे थे। डायना और डोडी ऐसे पत्रकारों की उतावली से बचने की कोशिश कर रहे थे, इसी चक्कर में उनकी कार के ड्राइवर ने एक्सलरेटर दबा दिया। लेकिन दुर्भाग्य, कि उनकी कार एक सुरंग में एक पोल से टकरा गई। हादसे में प्रिंसेस डायना समेत दो लोगों की सांसें हमेशा-हमेशा के लिए खामोश हो गयीं।
दरअसल, यूरोप के पेपराजी ठीक उसी तरह की व्यवहार करते हैं, जैसे भारत में चौंपतिया अखबार। लेकिन पहले यह हालत ऐसी नहीं थी। भारतीय पत्रकारिता तब लगातार सीखने की प्रक्रिया में रहती थी। खास कर यूरोप के अखबारों की सोच, भाषा, शैली और उनके वाक्य विन्यास वगैरह से भारतीय पत्रकार खुद को जोड़े रखते थे। लेकिन जिस तरह 25 सितम्बर-20 को मुम्बई में दीपिका पादुकोण को चैनली खबरचियां ने हरकतें की हैं, उनसे तो बिलकुल ही साफ हो गया कि भारत के पत्रकारों ने यूरोप के पत्रकारों से पत्रकारीय गम्भीरता को सीखने की अपनी ललक के बजाय उनके पेपराजियों की कमीनगी को अंगीकार कर लिया है।
किस तरह हिन्दी पत्रकारों ने दौड़ाया दीपिका पादुकोण को
सुशांत सिंह की हत्या के बाद हनुमान की पूंछ की तरह लगातार फैलते जा रहे घटनाक्रम के रायतों को फैलाते हुए जिस तरह मामले को सीबीआई के बजाय एनसीबी के मंच पर कठपुतलियों की तरह नचाया जा रहा है, और उसमें पत्रकारों की उतावली घटियापन की हर सीमा को पार करती जा रही है, उसका ताजा प्रमाण दे दिया रिपब्लिक भारत टीवी चैनल जैसे घटिया चैनली पत्रकारों ने। एनसीबी के बुलावे पर गोआ से मुम्बई पहुंची दीपिका पादुकोण को घेरने के लिए इस चैनल की महिला रिपोर्टर ने अपने पागलपन की हर सीमा को पार कर लिया। किसी विक्षिप्त महिला की तरह यह रिपोर्टर अपनी कार से पादुकोण की कार का पीछा करने लगी। लेकिन पागलपन का अंदाज तो देखिये कि इस महिला ने अपनी कार का शीशा तो चढ़ा लिया, जबकि दीपिका की खिड़की-बंद कार से चिल्लाने-चीखने लगी। हालत यह हुई कि ऐसा लगा मानो प्रिंसेस डायना की मौत का एक्शन-रिप्ले बस होना ही है।