: पूरा परिवार लेकर रिक्शा पर बंगाल लौट गया गोविंद मंडल : गांव में घर पर रहकर जैसे तैसे गुज़ारा कर लूंगा, पर शहर कभी नहीं आऊंगा :
विक्रम सिंह चौहान
आत्मनिर्भर भारत! ये गोविंद मंडल हैं, बंगाल के रहने वाले. दिल्ली में मैकेनिक का काम करते थे. लॉकडाउन के पहले इनके मालिक ने इन्हें 16 हज़ार रुपए दिए और काम पर आने से मना कर दिया. डेढ़ महीने तक किसी तरह इसी पैसे से परिवार के भरण-पोषण में लगे रहे. अंत में उनके पास मात्र पांच हजार बचे. फिर उनके सामने भूख से मरने की नौबत आ गई. तब उन्होंने अपने घर वापसी के लिए सोचा. लेकिन लौटने का कोई साधन नहीं मिला.
दिल्ली से बंगाल की दूरी लगभग 1500 किलोमीटर होने के कारण एक बार वे सोचने पर मजबूर हो गए. लेकिन अपने बच्चे एवं पत्नी के लिए उन्होंने दिल्ली में ही एक व्यक्ति से 5000 में एक सेकंड हैंड रिक्शा खरीदा. रिक्शा बेचने वाले से काफी मिन्नत की तो उसने 200 कम किया और उसी 200 के साथ घर का सारा सामान लेकर रिक्शा में अपने पत्नी एवं बच्चे को लेकर गोविंद दिल्ली से बंगाल के लिए चल पड़े.
उन्होंने बताया कि घर से निकलते ही दिक्कतें शुरू हो गई. सामान लेकर थोड़ी दूर पहुंचा तो रिक्शा पंक्चर हो गया. दुकानदार ने इसके लिए उनसे 140 रुपए वसूले. अब गोविंद के पास सिर्फ 60 रुपए बचे. लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और आगे निकलता रहा. यूपी पुलिस ने इस पर दया करते हुए एक छोटा गैस सिलेंडर इन्हें भर कर दिया.
रास्ते में जहां भी गरीबों के लिये खाना मिलता है ये लोग खाते हैं और रास्ते के लिए भी पैक कर लेते हैं. गोविंद मंडल 1350 किलोमीटर तक रिक्शा चला चुके हैं. अभी लगभग 300 किलोमीटर और है. गोविंद कसम खाते हैं गांव में घर पर रहकर जैसे तैसे गुज़ारा कर लूंगा, पर शहर कभी नहीं आऊंगा।
(पोस्ट आशीष सागर साभार)