भागदौड़ और रुशिदा-फतवा में खोजिए इंसान की फरहीन

बिटिया खबर

: रुशिदा फरहीन नाम की एक वकील भी हैं लखनऊ हाईकोर्ट में, मददगार भी उम्‍दा : पहली मुलाकात में ही ठहाकों का इस्‍तेमाल करना कोई हंसी-ठिठोली नहीं होता। चुटीली और चुलबुली, व्‍यवहार में मेधा भी निहाल : त्‍सांगपो से लोहित, ब्रह्मपुत्र जैसी महिलाएं भी मौजूद :

कुमार सौवीर

लखनऊ : चाहे कोई नदी हो या फिर भाषा, परिवर्तनशीलता करना उसका धर्म होता है। नदी हमेशा समुद्र में मिलेगी, यह तो तय होता है। लेकिन इस पूरे दौरान वह किस रास्‍ते में जाएगी, किस कुंड को पवित्र करेगी, किस तालाब को जोड़ेगी, किस नाले में मिल कर आगे बढ़ जाएगी, इसका अंदाजा आसानी से नहीं लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं, यह भी तय नहीं है कि वह अपने प्रवाह का मार्ग अचानक कैसे बदल देगी। आप त्‍सांगपो नदी को देख लीजिए। वह चीन में तिब्‍बत यानी लदाख के निकट कैलाश-मानसरोवर के पास पश्चिम दिशा से निकल कर पूर्व दिशा की ओर बहने लगती है। लेकिन सैकड़ों किलोमीटर दूर आगे निकलने के बाद वह अचानक एकदम दक्षिण की ओर बर्मा से सटे हुए भारत में अरुणाचल के तेजू जिले में प्रवेश कर प्रचंड रूप आकार में उमड़ पड़ती है। यहां उसका नाम होता है लोहित। इतना ही नहीं, आश्‍चर्य की बात यह है कि उसी दौरान वह दक्षिण-पश्चिम की ओर बढ़ जाती है। उसके बाद वह असम में घुसती है और नाम हासिल कर लेती है ब्रह्मपुत्र। और फिर एक विशालकाय आकार के साथ सीधे दक्षिण का रुख करते हुए बांग्‍लादेश में प्रवेश कर जाती है। इस पूरे दौरान उसके कई-कई नाम और अर्थ मिलते हैं।
ठीक यही उसी तरह भाषा भी। वह लोक बोली से निकल कर भाषा में शामिल हो जाती है, फिर व्‍याकरण में सुगठित हो जाती है, और फिर किस तरह अचानक व्‍याकरणों कीरु रसीली बंदिशों से आजाद होकर एक नया चेहरा और व्‍यक्तित्‍व अपना लेती है, यह तो विधाता भी शायद नहीं आंक सकता है। मसलन एक शब्‍द है भागदौड़। इस शब्‍द का अर्थ माना जाता है आपाधापी। यानी असमंजस के चलते मौके से निकल पड़ने की प्रक्रिया। लेकिन ऐसा होता नहीं है। दरअसल, यह शब्‍द एक सम्‍पूर्ण शब्‍द नहीं है। बल्कि उसमें दो अलग-अलग सम्‍पूर्ण शब्‍दों के संयोजन हैं। एक ऐसा संयोजन जो व्‍याकरण में कत्‍तई फिट नहीं होता। लेकिन अपने प्रचलित अर्थ को बखूबी व्‍याख्‍यायित और प्रदर्शित कर देता है। इस या ऐसे शब्‍दों को आप स्‍लैंग के तौर पर भी देख और प्रयुक्‍त कर सकते हैं।
भाग-दौड़। इनमें पहला शब्‍द है भाग, जबकि दूसरा शब्‍द है दौड़। तो भाग का अर्थ हुआ रास्‍ते को बिना सोचे-समझे उस क्रिया तत्‍व को अपना लेना। यानी फौरन मौके से निकल जाना, अर्थात जिधर सींग समा जाए, उस ओर निकल पड़ना। आप इसे पलायान कह सकते हैं। जबकि दौड़ का अर्थ होता है कि एक निश्चित दिशा, मार्ग, रफ्तार और निर्धारित लक्ष्‍य के लिए तेज रफ्तार में प्रस्‍थान कर जाना। इस क्रिया को आप प्रतियोगिता के तौर पर भी समझ सकते हैं।
इसको आप अरबी भाषा में भी बेहतर समझ सकते हैं। मसलन, फतवा और रुशिदा। इन दोनों ही शब्‍दों के अर्थ ठीक उसी भागदौड़ की ही तरह दो अलग अर्थों से है, लेकिन उसका अंत एक ही अर्थ को परिभाषित करता है। ठीक उसी तरह फतवा का अर्थ है सलाह, जबकि रुशिदा का अर्थ है हिदायत। जब कोई बात समझ में न आ रही हो, या फिर दिग्‍भ्रम की हालत हो कि क्‍या किया जाए या क्‍या नहीं किया जाए, ऐसी हालत में फतवा का सहारा लिया जाता है। इस्‍लाम के मसले में ऐसी सलाह किसी ज्ञानी यानी मौलवी से ली जाती है। अब यह दीगर बात है कि फतवा को मुसलमान ही नहीं, बाकी समुदाय भी हुक्‍म या अनिवार्य मानते हैं। जबकि रुशिदा का अर्थ होता है हिदायत। मसलन, किसी बुजुर्ग के साथ या उसके सामने कैसे व्‍यवहार करना है, घर में या उसके बाहर अथवा किसी धार्मिक या सार्वजनिक स्‍थल पर किस तरह का व्‍यवहार करना चाहिए, इस बारे में नियमों को ही हिदायत यानी रुशिदा कहा जाता है। लेकिन कुछ लोग रुशिदा को ही सलाह मानते-जानते हैं। उसकी समझ पर वल्‍ला-वल्‍ला, क्रिकेट का बल्‍ला, उंगली का छल्‍ला।
मगर जब किसी व्‍यक्ति को लेकर बात हो रही हो, तो कई लोग रुशिदा के साथ फरहान शब्‍द का भी इस्‍तेमाल कर लेते हैं। अरबी भाषा में फरहान का मतलब होता है अध्‍ययनशील, आह्लादित, अत्‍यन्‍त प्रसन्‍न, निहाल। लेकिन इसका इस्‍तेमाल केवल पुरुष के लिए ही प्रयुक्‍त होता है। जबकि स्‍त्री के लिए ऐसे अर्थ लगाने होते हैं तो फिर उनको फरहान के बजाय फरहीन लिखा जाता है।
होत्‍तेरी की। रुशिदा फरहीन नाम की तो एक वकील भी हैं लखनऊ की हाईकोर्ट में। एक वकील हैं जीएल यादव। देवरिया की एक लड़की नितिका पांडेय के मामले में यादव जी से सलाह मांगने गया, तो वहीं हुई मुलाकात इस प्रसन्‍नचित्‍त हिदायत से। कोई और होता, तो झंझट-बवाल मान कर दूर झटक देता, लेकिन रुशिदा ने नितिका से लम्‍बी बातचीत की। प्रश्‍न और उससे उमड़ते प्रति-प्रश्‍नों पर तफसील से चर्चा की रुशिदा ने। रुशिदा तो वाकई फरहीन हैं। मेरे पूछने पर रुशिदा ने बताया अपने नाम का अर्थ कि सलाह। मैंने पूछ लिया कि आपके नाम का अर्थ तो हिदायत है, फिर आप इसे फतवा वाला सलाह के तौर पर अर्थ क्‍यों बता रही हैं ? रुशिदा ने बड़ा टेक्निकल वजह बता दी। आप सब लोग अगर उसे समझना चाहें, तो सीधे रुशिदा फरहीन से ही बात कर लीजिएगा।
सच बात तो यही है कि पहली मुलाकात में ही शालीन स्‍वागत, आत्‍मीयता और ठहाकों का इस्‍तेमाल करना कोई हंसी-ठिठोली नहीं होता। लेकिन रुशिदा फरहीन हैं ही बिलकुल अलहदा। चुटीली और चुलबुली भी। व्‍यवहार में मेधा भी निहाल कर देने वाली।

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