: सपा को मिला झुंझना, बेनी को रोजगार, बसपा की राह मजबूत और भाजपा को निठल्लई : मुलायम को आतंकियों को समर्थक बता चुके हैं बेनी प्रसाद वर्मा : जो खुद को नहीं जिता सका, वह सपा में क्या गुल खिलायेगा : अब कुर्मी वोटों के एकमेव ठेकेदार नहीं रह चुके हैं बेनी प्रसाद वर्मा : तराई में होती है गन्ना की बम्पर फसल, क्या कब कितना चूसना है बेनी को पता है :
कुमार सौवीर
लखनऊ : बाराबंकी वाले बेनी प्रसाद वर्मा ने सपा छोड़ने के बाद हर घाट का पानी पिया। लेकिन उनका यही घाट-घाट का अंदाज ही उन्हें ले डूबा। आखिरकार वे आज वापस समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये। इसके अलावा उनके पास कोई रास्ता ही नहीं था। बहरहाल, बेनी की सपा में वापसी की कवायद से केवल सपा और बेनी ही नहीं, बसपा, कांग्रेस और भाजपा में भी भारी हर्ष की लहर फैल गयी है। इसके अलग-अलग कारण हैं और उसके अलग-अलग स्वाद। लेकिन आनन्द सभी में है। बेहिसाब।
लेकिन पहले बेनी प्रसाद वर्मा को समझ लीजिए। खुद को समाजवादी आंदोलन का खांटी नेता समझते हैं बेनी प्रसाद वर्मा। मुलायम सिंह यादव के साथ उन्होंने लम्बी यात्रा की है, लेकिन अचानक अमर सिंह को लेकर दोनों के बीच खिचचिख बढ़ गयी। इतनी बढ़ गयी कि बेनी ने सपा और मुलायम का साथ ही छोड़ दिया। फिर एक पार्टी बनायी, लेकिन उसकी दूकान भी बस चंद महीने बाद ही बन्द हो गयी। उसके बाद कई महीनों तक बेनी ने बेरोजगारी झेली फिर कांग्रेस का दामन थाम लिया। लेकिन इसके साथ ही बेनी की जुबान बहुत तेज हो गयी। आरोप लगाना और वह भी अनर्गल लगाना, उनका शगल बन गया। खास कर तब, जब वे कांग्रेस सरकार में इस्पात मंत्री बन गये। कई बार उन्होंने दावे भी किये कि वे बाराबंकी और अमेठी में इस्पात की फैक्ट्रियां खुलवायेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
एक दौर में मुलायम सिंह यादव से बेनी के रिश्ते इतने ज्यादा बिगड़े कि उन्होंने यह तक आरोप लगा दिया कि मुलायम सिंह यादव आतंकवादियों के समर्थक हैं। इस पर जम कर हंगामा हुआ, और मुलायम सिंह यादव ने संसद में उनसे इस्तीफे की मांग तक कर ली थी। मुलायम सिंह यह तक कह चुके हैं कि मुलायम सिंह परिवारवादी व्यक्ति हैं और ऐसा व्यक्ति समाजवादी नहीं हो सकता है। इस पर मुलायम सिंह यादव ने जवाब दिया था कि जो आदमी अपने बेटे तक को चुनाव नहीं जितवा सका, वह अब राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के दावे कर रहा है। बेनी ने सलमान का एक बार बचाव किया, लेकिन यह बचाव कम, सलमान खुर्शीद की खाल खींचने जैसा ही था। फर्रूखाबाद में खुर्शीद की पत्नी, लुईस की एनजीओ पर उठे एक हंगामे पर बेनी बोले थे कि मैं नहीं मानता हूं कि सलमान खुर्शीद 71 लाख रूपयों का घोटाला कर सकते हैं। हां, अगर यह आरोप 71 करोड़ का होता तो मैं यह बात मान लेता।
कुछ भी हो, बेनी को पार्टी में लाने से आजम खान जरूर खुश हैं। उनको लगता है कि इससे अब अमर सिंह की सपा में वापसी असंभव हो जाएगी। बात तो यही है। बेनी की पार्टी से बाहर निकालने में अमर सिंह की कोशिशें सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी। आजम खान भी सपा से अपनी पिछली रूखसती का मूल कारण अमर सिंह को ही मानते हैं। दोनों ही लोग मुंहफट हैं, ऐसे में अमर सिंह के लिए सपा की कुण्डी खटखटा पाना अब नामुमकिन ही होगा।
बहरहाल, सपा अब बेनी को राज्यसभा सदस्यी थमाने जा रही है। वैसे भी पिछले चुनाव से वे बेरोजगार हैं। कीर्तिवर्द्धन सिंह ने उन्हें जबर्दस्त करारी शिकस्त दी थी। कीर्ति को पौने चार लाख वोट मिले थे, जबकि बेनी एक लाख दो हजार वोट पाकर चौथे स्थान पर थे। उनके बेटे की तो जमानत तक जब्त हो चुकी है। लेकिन इसमें गौरतलब बात यह है कि बेनी लखीमपुर खीरी से लेकर सीतापुर, पीलीभीत, बाराबंकी, फैजाबाद, गोंडा, बहराइच, श्रीवस्ती, बलरामपुर, बस्ती, सिद्धार्थनगर समेत करीब दो दर्जन से ज्यादा जिलों में कुर्मी वोटों पर अपनी जागीर के तौर पर दावा करते हैं। पिछले विधानसभा चुपाव में उन्होंने कांग्रेस पर दवाब दिला कर प्रदेश की दो सौ से ज्यादा सीटें अपने लोगों तक लुटवायीं थी। लेकिन सब के सब तबाह हो गया। बेनी भी पैदल हो गये। उनका राजनीतिक कद ही निहायत बौना हो गया। ऐसे में अब सपा ही उनकी एकलौती थी, जो उनके सपनों को पूरा कर सकती थी। बेनी को राज्यसभा भेज कर वह अपनी पार्टी पर यह पोस्टर लगाना चाहती थी कि सपा के पास कुर्मी वोटों का भाण्डार है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार बेनी के पिछले प्रदर्शन को देख कर तो सपा का यह सपना ख्याली पुलाव ही लग रहा है।
उधर कांग्रेस खेमा बेनी की इस विदाई से खुशी मना रही है। उसका कहना है कि उनकी पार्टी से एक कोढ़ खत्म हो गया। बसपा यह सोच कर खुश है कि बेनी जैसा दगा कारतूस से तो वह खुद ही मजबूत होगी। भाजपा को चूंकि संघर्ष से कोई लेना देना ही नहीं है, इसलिए वह अपने में ही मस्त है। चारों ओर खुशी ही खुशी है। सब मस्त है, प्रसन्न हैं।
बात खत्म।