: आइये, मैं बताता हूं कि शशि शेखर को क्या सवाल पूछना चाहिए रविशंकर प्रसाद से : जब मसला ईरान का हो तो तूरान पर चर्चा बकवास : एक मंत्री से जब सवाल उठेगा, तो सबसे पहले उसके कार्य-दायित्वों को लेकर : आप सम्पादक हैं या धंधेबाज खेल-खिलाडि़यों के कारिंदे ?: वाकई बदल रहा है हिन्दुस्तान अखबार का चरित्र-चार :
कुमार सौवीर
लखनऊ : सच कहना-लिखना एक हुनर है और अपने वरिष्ठ का सम्मान करना एक अलहदा मसला। आज मैं दैनिक हिन्दुस्तान के बारे में बात करूंगा। तो पहले मैं यह साफ कर दूं कि मैं मृणाल पाण्डेय की कलम की धुरंधर प्रशंसक हूं। शायद सर्वोच्च। उनकी तूलिका जिस तरह रंगों के साथ दौड़ती-कुलांचे भरती है, वह बेमिसाल है। वे साफ बोलती हैं, जिसे कुछ लोग उन्हें अक्खड़ कह देते हैं। लेकिन विशाल हृदय, बाप रे बाप। अब बात किया जाए अजय उपाध्याय पर। वे एक निहायत जहीन, सुशील, सौम्य शख्स हैं। बावजूद इसके कि मैंने उनके साथ कभी काम नहीं किया, हां, उन्होंने 20 साल पहले इंटरव्यू लेने के बाद मेरा चयन कर लिया था। इस मामले कोशिशें करने के संदर्भ में मैं हेमन्त शर्मा का भी शुक्रगुजार हूं।
इसके बाद नाम आता है शशि शेखर का। वे भी दूर-दृष्टि और बेहतरीन लेखक हैं। हालांकि मेरे मामले में वे कुशल प्रशासक के तौर पर खरे नहीं दिखे। और रविशंकर प्रसाद के इंटरव्यू के बाद तो उन्होंने अपनी शख्सियत के पांवों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार दी। यह होना ही था, जब कुछ बड़ा हासिल किया जाता है, तो उसके लिए छोटी-मोटी बलि तो देनी ही पड़ती है।
अब मैं आपको बताता हूं कि केंद्रीय कानून और सूचना तकनॉलॉजी विभागों के मंत्री रविशंकर प्रसाद से इंटरव्यू करने के लिए किन महत्वपूर्ण प्रश्नों की जरूरत थी।
पहली बात तो यह कि किसी महान समाचार समूह के शशि शेखर जैसे महानतम समूह-सम्पादक जैसे शख्स को रवि शंकर जैसे शख्स का इंटरव्यू ही नहीं लेना चाहिए था। अगर रविशंकर के पास उनका कोई काम-फांस फंसी हुई थी, तो उसके लिए वे अपने किसी विश्वसनीय रिपोर्टर से कह कर इंटरव्यू करवा लेते। रविशंकर की तेल-चांपन भी हो जाती, आपका काम भी निकल जाता, आपके उस रिपोर्टर से अधिक विश्वसनीय रिश्ते बन जाते, रिपोर्टर की भी धूम हो जाती कि वह रविशंकर प्रसाद का इंटरव्यू ले आया। लेकिन शशि शेखर ने सारी कडि़यां ही ध्वस्त कर डालीं। नतीजा, शशि शेखर की जो फजीहत इस इंटरव्यू को लेकर चल रही है, कभी नहीं हुई थी।
आम आदमी को इस बारीकी का अहसास भले न हो, भले ही आम पाठक किसी केंद्रीय मंत्री के साथ हुए अंट-शंट इंटरव्यू को गम्भीरता से देख रहा हो, लेकिन समाचार-संस्थानों में ऐसी महान बातचीत को पीपी के तौर पर देखा-समझा जाता है। पीपी का मतलब प्राइवेट-प्रैक्टिस। अब जो लोग इस पीपी इंटरव्यू और शशि शेखर को समझ रहे हैं वे खूब समझ चुके होंगे कि शशि शेखर के इस कृत्य ने उनकी प्रतिष्ठा की पूरी कमाई सड़क पर लुटा दी है। जो लोग प्राइवेट-प्रैक्टिस नहीं समझ पा रहे हों, वे किसी सरकारी अस्पताल के डॉक्टर या अन्य कर्मचारियों से बातचीत कर लें।
लेकिन असली सवाल अभी बाकी है। उसे पढ़ने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए :-दैनिक हिन्दुस्तान जी! राम नाम सत्त है