: बड़े संतों में एक, पूर्व सांसद, पूर्व केंद्रीय गृहराज्यमंत्री चिन्मयानन्द का काला-चिट्ठा है चिदर्पिता की अर्जी में : किशोर लड़कों के साथ भी रिश्ते रखते थे स्वामी चिन्मयानन्द : आश्रम में महिलाओं से तेल मालिश कराना खास शगल था चिन्मयानन्द का : सपनों पर सवार तितलियां अपने होश बेकाबू हो जाती हैं, श्रंखला- तीन :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अपने सपनों को फड़फड़ाने की कोशिश करने वाली हौस्लेमंद युवतियों के प्रति खूंख्वार शिकारियों की करतूतों को सुन कर आप दहल सकते हैं। आम तौर पर तो ऐसे हादसे किसी ख्वाहिशमंद युवती की जान ले लेते हैं, या फिर उसे हमेशा-हमेशा के लिए उसका जीवन खत्म कर देते हैं। लेकिन साध्वीर चिदर्पिता ने स्वाडमी चिन्मेयानन्द् की सारी की सारी करतूतों का खुलासा कर दिया। उसने एक संत, एक नेता और एक केंद्रीय मंत्री पद सम्भाल चुके इस शख्सत को कठघरे में खड़ा कर दिया। अपने मामले को चिदर्पिता ने उस मामले को अदालत तक घसीटा और अब वह चाहती है कि ऐसे वहशियों का हर कीमत पर सजा मिले।
आइये, अपने साथ हुए उस हादसे के बाद साध्वी चिदर्पिता ने पुलिस को क्या बयान दिया ताकि उसका मुकदमा दर्ज किया जा सके। हालांकि साध्वी चिदर्पिता का आरोप है कि प्रशासन और सरकार ने इस मामले पर राजनीतिक गोटियां खेली हैं, वरना चिन्मयानन्द न जाने कब का जेल में होता। बहरहाल, चिदर्पिता की अर्जी यूं है:-
प्रार्थना पत्र, सेवा में, श्रीमान पुलिस अधीक्षक महोदय, शाहजहांपुर।
विषय:- शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व सामाजिक शोषण कर जीवन बर्बाद करने वाले स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत कर कार्रवाई करबाने के संबंध में।
महोदय, निवेदन है कि प्रार्थिनी साध्वी चिदर्पिता गौतम हाल निवासिनी एफ-14, फेस-2 श्रीराम नगर कालोनी बदायूं उत्तर प्रदेश, दिल्ली की मूल निवासिनी है। पारिवारिक पृष्ठ भूमि व व्यक्तिगत रुचि आध्यात्मिक और राजनैतिक होने के कारण परिवार में आते-जाते रहने वाले स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती निवासी मुमुक्षु आश्रम जनपद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश राजनैतिक व आध्यात्मिक ज्ञान लेने को प्रेरित करने लगे। उनके उत्कृष्ट विचारों का प्रार्थिनी के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और वर्ष 2००1 से उनके संपर्क में आने के बाद उनके दिल्ली स्थित सांसद निवास में रह कर राजनैतिक व आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित करने लगी। इस दौरान उनके साथ कई कमेटी दौरे और धार्मिक स्थलों की यात्रा पर गई, जिससे प्रार्थिनी को वास्तव में एक अलग अनुभव व ज्ञान मिला।
वर्ष 2००4 तक वह गुरु की ही तरह प्रार्थिनी को सिखाते रहे और प्रार्थिनी भी उन्हें संरक्षक मानते हुए शिष्या की ही तरह सीखती रही, उन पर प्रार्थिनी को भाई या पिता से भी अधिक विश्वास हो गया, तभी वर्ष 2००4 में वह प्रार्थिनी को जप-तप और धार्मिक अनुष्ठान कराने के लिए पे्ररित कर हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम में ले आये। यहां उन्होंने ज्ञान बर्धक बातें सिखाई भीं, लेकिन अचानक प्रार्थिनी को उनकी नियत में परिवर्तन दिखने लगा, जिससे प्रार्थिनी किसी तरह से निकलकर भागने की मन ही मन युक्ति सोच ही रही थी कि तभी वह वर्ष 2००5 में अपने व्यक्तिगत अंगरक्षकों के बल पर अपनी गाड़ी में कैद कर शाहजहाँपुर स्थित मुमुक्षु आश्रम ले आये और आश्रम के अंदर बने दिव्य धाम के नाम से बुलाए जाने वाले अपने निवास में लाकर बंद कर दिया।
यहाँ कई दिनों तक प्रार्थिनी पर शारीरिक सम्बन्ध बनाने का दबाव बनाया गया, जिसका प्रार्थिनी ने विरोध किया, तो उन्होंने अज्ञात असलाहधारी लोगों की निगरानी में दिव्य धाम में ही कैद कर दिया, पर प्रार्थिनी शारीरिक सम्बन्ध बनाने को किसी भी कीमत पर तैयार नहीं थी, लेकिन अपने रसोईये के साथ साजिश कर खाने में किसी तरह का पदार्थ मिलबा कर उन्होंने प्रार्थिनी को ग्रहण करा दिया, जिससे प्रार्थिनी शक्तिहीन हो गयी। उसी रात शराब के नशे में धुत्त स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती प्रार्थिनी पर टूट पड़े। विरोध करने के बावजूद वह प्रार्थिनी के साथ बलात्कार करने में कामयाब हो गये, लेकिन उनके दिव्य धाम स्थित निवास में कैद होने के कारण प्रार्थिनी कुछ नहीं कर पायी। बलात्कार करते समय उन्होंने वीडियो फिल्म बना ली थी, जिसे दिखा कर बदनाम करने व जान से मारने की धमकी भी दी, तभी दहशत के चलते उनके कुकृत्य की किसी से चर्चा तक नहीं कर पाई।
उस एक दिन के बाद वह जब मन में आता, तब प्रार्थिनी का शारीरिक व मानसिक शोषण करते। यह सिलसिला अनवरत सालों-साल चलता रहा और प्रार्थिनी नरक से भी बदतर वह जिंदगी मजबूरी में इसलिए जीती रही क्योंकि चौबीस घंटे उनके द्वारा छोड़े गये असलाहधारी लोगों की निगरानी में रहती थी। इस बीच दिव्य धाम से बाहर भी गयी तो उनके लोग साथ ही जाते थे, जिन्हें उनका स्पष्ट निर्देश रहता था कि किसी से बात तक नहीं करने देनी है और न ही कहीं प्रार्थिनी की इच्छानुसार ले जाना है। शहर में रहते हुए लंबे समय बाद प्रार्थिनी को लगने लगा कि अब उसकी जिंदगी यही है तो स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती को मन से पति रूप में स्वीकार करते हुए प्रार्थिनी भी उसी जिंदगी में खुश रहने का प्रयास करने लगी। महोदय इसी बीच प्रार्थिनी दो बार गर्भवती भी हुई।
प्रार्थिनी बच्चे को जन्म देना चाहती थी, लेकिन स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती ने प्रार्थिनी की इच्छा यह कहते हुए ख़ारिज कर दी कि उन्हें संत समाज बहिष्कृत कर देगा, जिससे सार्वजनिक तौर पर मृत्यु ही हो जायेगी। ऐसा होने से पहले या तो वह आत्म हत्या कर लेंगे या फिर प्रार्थिनी को मार देंगे। इतने पर भी प्रार्थिनी गर्भपात कराने को तैयार नहीं हुई तो उन्होंने अपने ऊँचे राजनैतिक कद का दुरुपयोग करते हुए पहले बरेली स्थित अज्ञात अस्पताल में और दूसरी बार लखनऊ स्थित अज्ञात अस्पताल में जबरन गर्भपात करा दिया, जिससे दोनों बार प्रार्थिनी को बेहद शारीरिक और मानसिक कष्ट हुआ और महीनों बिस्तर पर पड़ी रही।
उस समय प्रार्थिनी की देखभाल करने वाला तक कोई नहीं था। स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती प्रार्थिनी को अपने लोगों की निगरानी में छोडक़र हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम में जाकर रहने लगे। प्रार्थिनी कुछ समय बाद स्वत: ही स्वस्थ हो गयी और स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के वापस आने पर दोनों बार प्रार्थिनी ने जबरन कराये गये गर्भपात का जवाब माँगा तो उन्होंने प्रार्थिनी को दोनों बार बुरी तरह लात-घूंसों से मारा-पीटा ही नहीं, बल्कि एक दिन गले में रस्सी का फंदा डाल कर जान से मारने का भी प्रयास किया और यह चेतावनी देकर जान बख्शी कि जीवन में पुन: किसी बात को लेकर सवाल-जवाब किया तो लाश का भी पता नहीं चलने देंगे, तो दहशत में प्रार्थिनी मौन हो गयी और डर के कारण उसी गुलामी की जिंदगी को पुन: जीने का प्रयास करने लगी। इसी तरह उनके अन्य दर्जनों बालिग, नाबालिग व विवाहित महिलाओं से नाजायज संबंध हैं।
प्रार्थिनी को सामान्य देखकर स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती ने प्रार्थिनी को कुछ समय पश्चात मुमुक्षु आश्रम के साथ दैवी सम्पद संस्कृत महाविद्यालय का प्रबंधक व एसएस विधि महाविद्यालय में उपाध्यक्ष बनवा दिया और पुन: प्रार्थिनी का भरपूर दुरुपयोग करने लगे, क्योंकि वह प्रार्थिनी से एक बार में लगभग सौ-डेढ़ सौ कोरे कागजों पर जबरन हस्ताक्षर करवाते और उनका अपनी इच्छानुसार प्रयोग करते, जिस पर प्रार्थिनी को आशंका है कि उन्होंने हस्ताक्षरों का भी दुरुपयोग किया होगा, लेकिन प्रार्थिनी ने सभी दायित्वों का निष्ठा से निर्वहन किया। इसके साथ ही स्वयं को व्यस्त रखने व मानसिक संतुलन बनाये रखने के लिये प्रार्थिनी ने आगे की शिक्षा भी ग्रहण की।
प्रार्थिनी को हालात से समझौता करते देख वर्ष 2०1० में श्री शंकर मुमुक्षु विद्यापीठ का प्रधानाचार्य भी नियुक्त कर दिया गया। प्रार्थिनी मन से दायित्व का निर्वहन करने लगी थी तो अब उनके असलाहधारी लोगों की निगरानी पहले की तुलना में कम हो गयी और प्रार्थिनी मोबाईल आदि पर इच्छानुसार व्यक्तियों से बात करने लगी। इस बीच बदायूं निवासी पत्रकार बीपी गौतम और प्रार्थिनी के बीच संपर्क स्थापित हुआ। प्रकृति व व्यवहार मिलने के कारण विवाह कर लिया, जिससे स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती बेहद आक्रोशित हैं, जिसके चलते वह प्रार्थिनी को धमका रहे हैं और उसका बकाया वेतन भी नहीं दे रहे हैं।
प्रार्थिनी ने जब उनसे मोबाईल पर वेतन देने की बात कही तो काफी दिनों तक वह आश्वासन देते रहे, लेकिन बाद में स्पष्ट मना करते हुए धमकी भी देने लगे कि वह उसकी जिंदगी बर्बाद कर देंगे और पति को सब कुछ बताकर वैवाहिक जीवन तहस-नहस करा देंगे, साथ ही चेतावनी दी कि किसी से उनके बारे में चर्चा तक की तो चाहे तुम धरती के किसी कोने में जाकर छिप जाना, छोडेंगे नहीं। महोदय स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती के पास आपराधिक प्रवृति के लोगों का भी आना-जाना है, जिससे प्रार्थिनी उनकी धमकी से बेहद डरी-सहमी है, क्योंकि वह कभी भी कुछ भी करा सकते है, इसलिए प्रार्थिनी को सुरक्षा मुहैया कराते हुए उनके विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत कर कड़ी कानूनी कार्रवाई करबाने की कृपा करें। प्रार्थिनी, (साध्वी चिदर्पिता गौतम), पत्नी श्री बीपी गौतम, निवासी-एफ-14, फेस-2, श्रीराम नगर कालोनी-बदायूं। ( क्रमश: स्वामी चिन्मयानंद की यह कहानी अभी जारी है)
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