: हिंसा के पक्षधर रहे सुभाष सन-41 को जेल में गांधीवादी अनशन पर बैठ गये थे : मत भूलिये कि हिटलर से मिलने नेताजी जर्मनी तक चले गये थे : पर महान स्वतंत्रता सेनानी थे सुभाष जी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : देश की आजादी में अग्रणी लेकिन स्वतंत्रता-आंदोलन में गरम-दल वाले गुट के महान नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयन्ती है आज। आज से ठीक सवा सौ बरस पहले उनका जन्म कटक में हुआ था। आजादी दिलाने के अभियान में अगुवा रहे गांधी जी और नेता जी में एक मूलभूत फर्क था। गांधी जी का इकलौता मार्ग अहिंसा था, जबकि नेताजी का विश्वास था कि अहिंसा से एक तिनका भी नहीं डोलेगा। आजादी चाहिए तो उसके लिए केवल और केवल हिंसा ही एकमात्र मार्ग है। अपनी आस्थाओं के चलते गांधी जी चौरीचौरा कांड होते हुए अपना देशव्यापी आंदोलन बिना शर्त वापस ले लिया था। हालांकि इसके चलते देश भर में गांधी जी की जमकर निंदा और थू-थू हुआ। मगर गांधी जी अपने विश्वास और आस्थाओं पर अडिग रहे और आखिरकार वे ही जीते। किसी महानतम निष्काम, अडिग, जुझारू और नि:स्वार्थ योगी की तरह, जिसके नाम पर आज भी दुनिया अपना शीश झुकाती है।
जबकि नेता जी सुभाष चंद्र बोस आनन-फानन जीत हासिल करना चाहते थे। इसके लिए वे रक्तपात की ही जरूरत महसूस करते थे। इतना ही नहीं, अपने हिंसक आंदोलन के बल पर अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ कर भारत को स्वतंत्रता हासिल कराने के लिए किसी भी का सहयोग लेना अनाचार नहीं मानते थे। अपने इसी हिंसक विचारधारा से वशीभूत होकर नेता जी सुभाष बोस ने मानव इतिहास में पतित से भी पतित व्यक्ति और दुनिया के सबसे बड़े नरसंहार के नायक माने गये एडॉल्फ हिटलर तक से हाथ मिला लिया था।
1921 से 1941 के बीच नेताजी को भारत के अलग-अलग जेलों में 11 बार कैद में रखा गया। 1940 में जब हिटलर के बमवर्षक लंदन पर बम गिरा रहे थे, ब्रिटिश सरकार ने अपने सबसे बड़े दुश्मन सुभाष चंद्र बोस को कलकत्ता की प्रेसिडेंसी जेल में कैद कर रखा था। अंग्रेज़ सरकार ने बोस को 2 जुलाई, 1940 को देशद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार किया था। 29 नवंबर 1940 को सुभाष चंद्र बोस ने जेल में अपनी गिरफ़्तारी के विरोध में भूख हड़ताल शुरू कर दी थी। इसी तथ्य से साफ पता चलता है कि सुभाष चंद्र बोस भले ही हिंसक आंदोलन का सहारा ले रहे थे, लेकिन जेल में जब उन्हें बंद किया गया, तब उन्होंने गांधी जी के अहिंसा-मार्ग को ही चुना और अनशन पर बैठ गये थे।
लेकिन एक सप्ताह बाद ही 5 दिसंबर को गवर्नर जॉन हरबर्ट ने एक एंबुलेंस में बोस को उनके घर भिजवा दिया ताकि अंग्रेज़ सरकार पर यह आरोप न लग पाये कि उनकी जेल में बोस की मौत हुई है। लेकिन वहां भी पर कड़ी निगरानी रखी जाने लगी। नजरबंद करके रखा गया था, जहां से उन्होंने अपना वेश बदला और फ्रंटियर मेल पकड़ कर पेशावर भाग निकले। अपना नया परिचय उन्होंने मोहम्मद ज़ियाउद्दीन, बीए, एलएलबी, ट्रैवलिंग इंस्पेक्टर, द एम्पायर ऑफ़ इंडिया अश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, स्थायी पता, सिविल लाइंस, जबलपुर.’ के तौर पर प्रचारित किया। पेशावर से वह काबुल पहुंचे और फिर काबुल से जर्मनी रवाना गये। यहीं पर उनकी मुलाकात दुर्दांत एडॉल्फ हिटलर से हुई थी।
और आखिरकार 18 अगस्त 1945 को ताइपे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु विमान दुर्घटना के चलते हो गई। लेकिन इस मौत पर भी खूब विवाद भड़के। एक विवाद तो विमान दुर्घटना पर खड़ा हुआ, तो दूसरा विवाद फैजाबाद से भड़का। दरअसल, सवाल यह उठे कि क्या फैजाबाद में बरसों तक गुमनामी की जिन्दगी खपाते व्यक्ति ही वही नेताजी सुभाष चंद्र ही तो नहीं थे, जिनकी ख्याति गुमनामी बाबा के नाम पर है। प्रदेश सरकार ने कुछ बरस पहले इस मामले की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग गठित किया था। इस आयोग के अध्यक्ष थे जस्टिस विष्णु सहाय। हालांकि इस आयोग का कार्यकाल छह महीना ही तय किया गया था, लेकिन जस्टिस विष्णु सहाय ने मामले को जांच में पूरे तीन बरस लगा दिये। आयोग की जांच का नतीजा यह सामने आया कि गुमनामी बाबा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस अलग-अलग शख्सियत हैं।
इस मसले पर मैंने साकेत पीजी कालेज के प्रिंसिपल प्रो वीएन अरोड़ा से लम्बी बातचीत की। youtube पर dolatti चैनल पर आप यह वीडियो-इंटरव्यू देख सकते हैं। इस बातचीत में प्रो वीएन अरोड़ा ने नेताजी को लेकर गुमनामी बाबा के रिश्तों और समानताओं को लेकर कई खुलासे किया हैं।
लेकिन अंध-भक्तों की नजर पर पड़ा अन्धत्व का जाला इतना गहरा छाया हुआ है कि वे जांच निष्कर्षों को अपने पैरों से कुचल रहे हैं और केवल अपनी आस्थाओं पर ही अडिग हैं। इससे अधिक सोच पाना उनके वश की बात ही नहीं। इस वीडियो पर करीब 70 हजार लोगों ने देखा है, लेकिन अधिकांश ने मुझे केवल गालियां ही दी हैं। बहुत कम ही लोगों ने मेरे इस इंटरव्यू की तारीफ की।
बहरहाल, मैं अपने इन सारे विरोधियों को भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की इस सवा सौ साल जयन्ती पर शुभकामनाएं समर्पित करता हूं। और इस महान स्वतंत्रता सेनानी के समझ सिर झुकाता हूं।
फैजाबाद में गुमनामी बाबा में क्या वाकई नेताजी सुभाषचंद्र बोस ही छिपे हुए थे, इस सवाल को छानने की कोशिश के लिए हमने साकेत पीजी कालेज के प्रधानाचार्य रह चुके प्रो वीएन अरोड़ा से बातचीत की थी।
नेताजी बनाम फैबाजादी गुमनामी बाबा
गुमनामी बाबा: जस्टिस सहाय ने किया लफड़ा खत्म
गुमनामी बाबा: नेताजी को लेकर बेशुमार गालियां