पूर्वांचल विश्‍वविद्यालय, अब कुर्सी पर भी आरोप

बिटिया खबर

: खफा छात्रों ने कई दिनों तक यूनिवर्सिटी बंद कराया, जब परीक्षा ही नहीं तो कैसे फेल कर दिये गये छात्र : “कुलपति जब भी डरती हैं, पुलिस बुला लेती हैं” : विश्‍वविद्यालय में शिक्षकों के बीच परस्‍पर झोंटा-नुचव्‍वर सी हरकतें बेलगाम :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यूपी के वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्‍वविद्यालय की कुलपति की कुर्सी के लिए क्‍या तीन करोड़ रुपयों की खरीद-फरोख्‍त हुई है ? इसी विश्‍वविद्यालय के एक पूर्व डीन ने यह आरोप लगाया है। इस शिक्षक का कहना है कि जिस तरह की चर्चाएं चल रही हैं और जिस तरह की अराजकताएं इस यूनिवर्सिटी में चल रही हैं, उसने पूरे शिक्षा संस्‍थान को गर्त में फेंक दिया है।
अगर ऐसा है, तो यह अपने आप में एक अनोखे, अविश्‍वसनीय और अभूतपूर्व भ्रष्‍टाचार का मामला है, और ऐसी हालत में यह प्रकरण उत्‍तर प्रदेश के उच्‍च शिक्षा ही नहीं, बल्कि उच्‍च शिक्षा से जुड़े बड़े-बड़े मगरमच्‍छों को बिलकुल नंगा कर रहा है। इतना ही नहीं, अगर ऐसा है तो फिर भविष्‍य में ऐसी नीलामियों की आखिरी बोलियां लगातार उच्‍चतर स्‍तर तक उचकने लगेंगी। 
वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्‍वविद्यालय में फिलहाल जौनपुर, आजमगढ़, मऊ और गाजीपुर के करीब साढ़े सौ कालेज सम्‍बद्ध हैं। लेकिन लगभग सभी कालेजों में भयावह अराकता और लूट-पाट की नौबत आ गयी बतायी जाती है। हालत तो यह है कि कई कालेजों के सैकडों ने यूनिवर्सिटी के कार्यालय के दफ्तरों को कई-कई दिनों तक ताला-बंद कर दिया। बताते हैं कि यह छात्र खुलेआम नारे लगाते हैं कि, “कुलपति जब भी डरती हैं, पुलिस बुला लेती हैं।”
आपको बता दें कि प्रदेश की राज्‍यपाल आनंदी बेन ने कुछ ही महीना पहले वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्‍वविद्यालय के कुलपति के पद पर प्रो निर्मला एस मौर्या की नियुक्ति कर दी थी। प्रो निर्मला इसके पहले तमिलनाडु के चेन्‍नई में हिन्‍दी प्रसार केंद्र में प्रशासनिक अधिकारी नियुक्‍त थीं। लेकिन पिछले लम्‍बे समय से दक्षिण भारत के एक शिक्षा केंद्र से सम्‍बद्ध के बावजूद उनको पूर्वांचल विश्‍वविद्यालय की कुलपति के तौर पर तैनात करने को लेकर यूनिवर्सिटी में खासी चर्चाएं शुरू हो गयी हैं। सूत्र बताते हैं कि उनके पिता भी एक विश्‍वविद्यालय में कुलपति रह चुके हैं, और इस समय भी अरुणाचल में एक शिक्षा केंद्र के मुखिया भी हैं।
गौरतलब है कि पूर्वांचल विश्‍वविद्यालय अपने स्‍थापना के बाद से ही गहरे भ्रष्‍टाचार, जातीयता, और क्षेत्रवाद के आरोपों में गहरे तक धंसा रहा है। हालांकि शुरुआती दौर के एकाध कुलपतियों ने इस छवि को बदल कर उसे निखारने का भरसक प्रयास किया, लेकिन निर्माण में बेईमानी और नियुक्तियों में जातीय या गुट-बाजी हमेशा से ही इस विश्‍वविद्यालय की अभिन्‍न अमरबेल की तरह ही चिपका रहा है। हाल के बरसों में तो ऐसी नियुक्तियों की बाढ़ ही आ गयी। अपात्र और अकुशल लोगों को ही पिछले दरवाजे से नियुक्ति देकर उन्‍हें प्रोफेसर जैसे अहम पद तक थमा दिये गये। वह भी स्‍थाई नियुक्ति जैसी कृपा देकर। सेल्‍फ-फाइनेंस की योजना में शिक्षकों को न केवल स्‍थाई देकर नौकरी दे दी गयी, बल्कि उन्‍हें प्रोफेसर बना कर उनका भविष्‍य सुनहरा कर दिया। बावजूद इसके कि इस करतूत के चलते विश्‍वविद्यालय ने अपने चेहरे पर खुद ही कालिख पोत डाली।
यही वजह रही है कि इस विश्‍वविद्यालय में शिक्षकों के बीच परस्‍पर झोंटा-नुचव्‍वर जैसी हरकतें स्‍थापना से लेकर आज तक बेलगाम जारी है। एक ही विभाग के शिक्षक ही एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोला रहते हैं। ऐसे झगड़ों और आरोपों में एक दूसरे पर चारित्रिक आरोप, छात्राओं के साथ अश्‍लील हरकतें करने सम्‍बन्‍धी आरोप और एक-दूसरे की पत्नियों को लेकर भी बेहूदे आरोप खुलेआम लगाये जाते हैं। हालत यह है कि एक बार टूअर में गये छात्रों के साथ एक वरिष्‍ठ शिक्षक ने शारीरिक हरकतें कर दीं। इस पर एक शिक्षक ही इतने आहत हुए कि वे मौके पर ही बेहोश हो गये। इतना ही नहीं, ऐसे आरोप विश्‍वविद्यालय से लेकर विश्‍वविद्यालय से सम्‍बद्ध कालेजों और शहर-कस्‍बे तक प्रचारित-प्रसारित करने के तहत भी होते हैं। कुल मिला कर, लब्‍बोलुआब यह हालत इस विश्‍वविद्यालय के चरित्र को लगातार रसातल में ही धंसाता जा रहा है।
हालत यह हो चुकी है कि परीक्षा में गड़बडि़यों को लेकर सैकड़ों छात्र विश्‍वविद्यालय परिसर में पहुंच कर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। इन छात्रों ने तो कई दिनों तक विश्‍वविद्यालय के दरवाजों तक को बंद कर दिया। उनका आरोप बड़ा अजीब-ओ-गरीब है। उनका कहना है कि जब परीक्षा ही नहीं हुई है, तो किस आधार पर उन्‍हें फेल कर दिया है। छात्रों के मुताबिक यह उगाही का एक ऐसा धंधा है, जो है तो बहुत पुराना, लेकिन किसी कोरोना की तरह रोज-ब-रोज अपना चरित्र बदल रहा है।
इस यूनिवर्सिटी के अधिकांश शिक्षकों का स्‍तर देश के सबसे घटिया शिक्षा-संस्‍थानों से भी ज्‍यादा बदतर हो चुका है।
दोलत्‍ती डॉट कॉम ने वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्‍वविद्यालय की कुलपति प्रो निर्मला एस मौर्या से बातचीत करने के लिए कई बार प्रयास किया। इतना ही नहीं, कुलपति की निजी सचिव सुश्री लक्ष्‍मी को भी इस बारे में अवगत कराया, लेकिन प्रो निर्मला मौर्या ने दोलत्‍ती डॉट कॉम से बातचीत कर विश्‍वविद्यालय पर चल रहे आरोपों का स्‍पष्‍टीकरण देने का समय नहीं दिया।

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