: धन्नू की जुबान में है सिर्फ बयानों का सुरमा : गौशालाओं में हो रहा है गायों का नरसंहार : वेतन समय से न देने वाले जिम्मेदार अफसरों की तन्ख्वाह रोको, अपना भी :
कुमार सौवीर
जौनपुर : धन्नू भइया ! नमस्ते। कैसे हो और कैसी चल रही है तुम्हारी अफसरगिरी ?
सुइथाकला वाले गौशाला में तो ढेरों गऊ मइया मरी थीं। है न ? टोटल कितनी माताजी मरी ? यह भी बताते जाओ कि पूरे जिले में कितनी गऊ माता जी लोगों को मरघट पर पहुंचाया, और कितनों को तुम्हारे कारकूनों ने इधर-उधर निपटाया ?
नहीं, नहीं। कोई बहुत जल्दी नहीं है यार। तुम पहले अपने 70 आशा कार्यकर्ताओं को बर्खास्त कर लो। स्कूलों के बच्चों से पहाड़ा सुन लो। अपने घर में अविवाहित लड़के लड़कियों की शादी-विवाह निपटा लो। उनके बाल-बच्चे पैदा हो जाएं। सारे नाती-पोते पकइया-पकइया चलने लगें। तुम भी घोड़ा हाथी पालकी जय कन्हैया लाल का जयजयकारा चिल्लाना शुरू कर दो। उनके सूसू-पॉटी साफ करा लो। चाटुकार पत्रकारों को अपने बगल में बिठाकर फोटू-शोटू खिंचवा लो। ठेंगे पर रख दो योगी को और मुख्यसचिव के आदेशों को, अपना सरकारी सीयूजी नंबर अपने अर्दली को थमा कर इधर-उधर जहां-तहां सटक लो, मौज लेते घूमो।
कौन बोलेगा तुमको ? पत्रकार तो तुम्हारी जेब में हैं। उनको चाय-नाश्ता कराते रहो। जो खबरें तुम्हारी मर्जी के हिसाब से नहीं छपी हैं, उन्हें इधर-उधर खंडन करते रहो। इधर-उधर बयान देते रहो। जहां-तहां महफिल सजाओ। डमरु बजाओ, डम्म डम्माडम्म। कान में फंसी अधजली बीड़ी टटोलो, तहमद के भीतर लंगोट के आसपास भखर-भखर खुजलाओ, और फिर जोर से बोलो:- बच्चों मारो ताली।
फिर देखना कि जमाना तुम्हारे डमरू की आवाज में कैसे नाचता है। जादू चलाते रहो, जनता को धन्य और मस्त करते रहो।
वैसे एक बात जरूर है कि तुम आदमी हो बड़ा कारसाज। पत्रकारों ने गौशालाओं की सीवन उधेड़ना शुरू कर दिया तो तुम्हारे कदमों से तले जमीन सरकने लगी। ऐसे में आनन-फानन तुमने खंडन भेज दिया कि यह फर्जी खबर है। सारी गायें मस्त है, मौज में हैं, घाम खा रही हैं, डांस कर रही हैं। लेकिन वहां गौशाला में चल रहा सरकारी फर्जीवाड़ा का खेल पत्रकार तब तक समझ चुके थे। पूरी सुइथाकलां में हल्ला हो गया था कि गौशाला में सारी सरकारी तामझाम फर्जी था। टीन-शेड की छत और पिलर ढह गये थे, सफाई का कोई नामोनिशान नहीं था। गायें मरी पड़ी थीं। संभालने के लिए आदमी नहीं था। आखिर कोई आदमी बेगारी में कैसे काम करता। लेकिन जहां-तहां बिना पगार के काम कर रहे थे।
10 महीना से तुमने वहां गौशाला में तैनात दोनों कर्मचारियों को उनका मेहनताना तक नहीं दिया। शर्म नहीं आई तुमको ? उन मजदूरों को सिर्फ दो हजार रूपया महीना देने का झांसा दिया था तुमने। लेकिन अपना वह वायदा भी ठेंगे पर रख दिया। तुम खुद को बड़ा कारीगर मानते हो, लेकिन तुम्हारी सारी कारीगरी यहां के पत्रकारों ने कैच कर ली। पूरे मामले का वीडिया बना डाला। अब बताओ, तिल्ली-लिल्ली भों।
जब मामला तूल पकड़ा, तो तुमने अपने अधीनस्थों पर पूरा मामला ठोंकना शुरू कर दिया। जब मामला भड़का तो तुम्हारे लोगों ने आधा-अधूरा भुगतान दिया। भला क्यों? और इतना हि नहीं, उस भुगतान की सूचना भी तुम्हारे लोगों ने उन कर्मचारियों को नहीं भेजी। तुमने एक बार भी नहीं पूछा कि कर्मचारियों से, कि बिना वेतन के वे सब कैसे जी रहे होंगे?
धन्नू भइया। तुम वाकई बेशर्म हो। काम धाम तो धेला भर नहीं करते हो तुम, दिनभर केवल घूस-कमीशनखोरी के चक्कर में रहते हो। तुम्हारा वेतन अगर एक दिन भी लटक जाए, तो तुम और तुम्हारे लोग हंगामा खड़ा कर देते हैं। यूनियन बना कर लखनऊ तक में नौटंकी करना शुरू करते हो। आंदोलन छेड़ने की बात करते हो। तब तुम्हारी समझ में नहीं आया महज दो हजार रूपया महीना पाने वाले कर्मचारी और उसके बच्चों-बीवी मां-बाप के पास भी पेट होता है, जहां की आंतें भूख से बिलबिलाती रहती हैं?
और उन कर्मचारियों की तन्ख्वाह पिछले 10 महीने तक रोके रखे। बेशर्म कहीं के। तुम्हारी दारू का एक दिन का खर्चा भी दो हजार रूपया से ज्यादा ही होगा। बताओ कि बाकी पैसा कब दोगे और बताओ कि अब तक भुगतान क्यों नहीं दिया गया? जब इन गायों को खाने पिलाने और देखभाल कराने के लिए तुम्हारे पास मद ही तय नहीं हो पा रहा था तो तुमने इतना बड़ा बयाना काहे ले लिया? सारे टीनशेड वगैरह का भुगतान तुम लोगों ने इसलिए करा दिया कि उसमें मोटी रकम कमीशन में मिलती है। लेकिन गायें भूखों मरती रहीं, और कर्मचारी बिना वेतन में काम करते रहे। तुम्हें शर्म नहीं आई?
मैं जानता हूं कि तुम्हें शर्म जरूर आई होगी। तो अब ऐसा करो कि इन कर्मचारियों का वेतन समय से न देने वाले जिम्मेदार अफसरों का ही नहीं, तुम समेत सभी लोगों का वेतन तब तक रोक दो जब तक तुम्हारे साथ सारे नैतिक और शासकीय मानवीय दायित्व पूरे ना हो जाएं।
और उसके बाद बयान देना। वरना बड़ी-बड़ी बातें करना बंद करो।