छोडि़ये जज साहब, आपका न्‍याय हम सीतापुर में देख चुके

बिटिया खबर
: जिला जज के सामने पिटता रहा इंस्‍पेक्‍टर और जज साहब खामोश रहे : स्‍यू मोटो शब्‍द तो आपके ही शब्‍दकोष में है न, तो उसका प्रयोग क्‍यों नहीं किया आपने : जज आप ही भयभीत या प्रभावित होंगे, तो आम आदमी का क्‍या होगा :

कुमार सौवीर
सीतापुर : जिला जज ने मॉनिटरिंग के लिए प्रशासन को बुलाया था। पुलिस कप्‍तान प्रभाकर चौधरी और उनके अंगरक्षक तथा पीआरओ बेहिचक उस मीटिंग में पहुंचे। बेधड़क। कोई फोर्स भी साथ नहीं लाये थे यह लोग। यकीन था कि वे इसी न्‍याय-मंदिर के पीठाधीश के बुलावे पर उनके मंदिर में जा रहे हैं, जहां न्‍याय के प्रति आस्‍थाएं मजबूत होने की हर पल नींव मजबूत करने के दावे सुने जाते हैं। जहां जज को भगवान और वकीलों को न्‍याय का पुजारी माना-कहा जाता है।

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लेकिन उस दिन सारी आस्‍थाएं चकनाचूर हो गयीं। भूमिकाएं बदल गयीं, निष्‍ठाएं बदल गयीं, व्‍यवहार बदल गये, दायित्‍व बदल गये, क्रिया-कलाप बदल गये, विश्‍वास खंडित हो गया। खुद को लर्नेड यानी पढ़े-लिखे पुकारे जाने वाले वकीलों का झुंड वहां था जो अपने ऑनरेबुल भगवान के सामने ही बाकायदा ऑनरेबुल भगवान के सम्‍मान को दो-कौड़ी का साबित करते हुए खुद के लर्नेड वाले चेहरे पर खुद ही अमिट कालिख पोत रहा था। गुण्‍डागर्दी पर आमादा थे सीतापुर के वकील। काला कोट और गले में वकालती बैंड टांगे उन अराजक-तत्‍वों की भूमिका उस वक्‍त किसी शातिर गिरोहबंद अपराधियों से कम नहीं थी।

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उस हादसे के बाद से ही लगातार देखता रहा कि शायद वकीलों या जजों की ओर से कोई ठोस स्‍पष्‍टीकरण आये। काश, उस हादसे से पुलिस भी अपनी भूमिका का छिद्रान्‍वेषण करे। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। हर कोना अपनी-अपनी पूंछ बचाने और तानने में जुटा है। हालत यह है कि इस हादसे की वजह खोजने और उसका निदान खोजने के बजाय सीतापुर तो दूर, आसपास के जिलों के वकीलों ने कोई ठोस समाधान न तो कोई समाधान खोजा और न ही कोई दिशा खोजी। इतना ही नहीं, तुर्रा तो यह हुआ कि इन जिलों के वकील भी कार्य-बहिष्‍कार पर चले गये। लखनऊ में तो कई दिनों तक हड़ताल चली। बेवजह, बेसबब।
लेकिन सबसे दु:खद व्‍यवहार तो सीतापुर के जिला एवं सत्र न्‍यायाधीश का दिख रहा है।

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वकील गुंडागर्दी पर आमादा थे। न्‍याय-परिसर में नहीं, बल्कि जिला जज के कक्ष में। कि अचानक वकीलों ने वहां एसपी के साथ आये पीआरओ इंस्‍पेक्‍टर को जूतों, लातों और थप्‍पड़ों से पीटना शुरू कर दिया। जिला जज अपने आसन पर बैठे रहे, और वकील और उनके उपद्रवी वकील-नेता लगातार गुण्‍डागर्दी करते रहे। पुलिस अधीक्षक से भी अभद्रता की इन काला-कोटधारी वकीलों ने।
यह एक दर्दनाक घटना थी। शर्मनाक भी। लेकिन उससे भी ज्‍यादा तो स्‍तब्‍धकारी थी, क्‍योंकि यह पूरा काण्‍ड जिला जज की मौजूदगी में हुआ और जिला जज ने उस वक्‍त या उसके बाद भी एक बार भी ऑर्डर-ऑर्डर की आवाज नहीं निकाली। वे खामोश रहे। तब भी जब यह सारा आपराधिक कृत्‍य खुद उनकी ही निगाह के सामने हुए। मां-बहन और बेटी को सम्‍बोधित करने वकीलों का झुंड किसी सड़कछाप गुंडों की तरह गालियां बक रहे थे, लात, जूता, थप्‍पड़ बरसा रहे थे। पुलिस कप्‍तान का मोबाइल छीनने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन जज साहब खामोश रहे।

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न्‍यायपालिका

जज साहब आपको उस वक्‍त किस चीज की जरूरत थी। पूरा घटनाक्रम आपके सामने किसी हॉरर-फिल्‍म की तरह चलता रहा था। सिसकता हुआ मुद्दई भी आपके सामने था, अपराधी भी आपके सामने अपनी शर्मनाक करतूतें कर रहा था। आपके सम्‍मान की धज्जियां आपके ही पुजारियों-वकीलों ने अपने हाथों से बिखेर दी थीं। सारे के सारे सुबूत आपने तो अपनी नंगी निगाहों से देख ही लिया था।
फिर आप खामोश क्‍यों थे योर ऑनर। स्‍यूमोटो तो आपकी ही डिक्‍शनरी में पैदा हुआ था। बाकी तो उस शब्‍द का इस्‍तेमाल ही नहीं करते, उन्‍हें जरूरत ही नहीं पड़ती है इस शब्‍द की। लेकिन आप ने न तो उस दिन डिक्‍शनरी में उस शब्‍द को खोजने की तनिक की भी कोशिश नहीं की, और न ही उसके बाद ही उसके प्रयोग की आवश्‍यकता समझी। फिर आपके ऐसे शब्‍द किस मतलब के हैं जज साहब।
हम ही नहीं, पूरा सीतापुर, पूरा यूपी और पूरी देश-दुनिया भी देख चुकी है कि उस दिन उपद्रवियों-गुंडों के साथ कौन-कौन खड़ा था।
अब सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि जज साहब, कि उस हादसे के बाद न्‍यायपालिका भी गुंडों-बदमाशों के खिलाफ कार्रवाई के लिए नैतिक-बल खो चुकी है।

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जन-हंता पुलिस

1 thought on “छोडि़ये जज साहब, आपका न्‍याय हम सीतापुर में देख चुके

  1. पी आर ओ से झगड़ा किस बात पर हुआ था उसका उल्लेख नहीं किया आपने
    उसके बाद सीतापुर पुलिस कप्तान ने अपने पद का कैसे दुरपयोग किया ये भी नहीं लिखा
    कृपया पूरी जानकारी कर ले

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