बाढ़-निरीक्षण मंत्री में, और मूली घुसेड़ो संपादक की गॉंव में

बिटिया खबर

: करीना कपूर के यहां मूली उखाड़ना सबसे बड़ा पत्रकारीय-दायित्‍व समझते हैं हिन्‍दुस्‍तान के महान वैशाख-नंदन : नरक कर रखा है बिड़ला जी के हिन्‍दुस्‍तान अखबार ने : बाढ़ निरीक्षण करा देते हैं मंत्री जी के भीतर, तो स्‍थगित कर देते हैं अंबेदकर की मूर्ति : वैशाख-नंदनों यानी गदहों की ही ढेंचू-ढेंचू का समवेत गायन :

कुमार सौवीर

लखनऊ : महान उद्योगपति रहे बिड़ला जी ने जिस अखबार की स्‍थापना की थी, वह आज सबसे निकृष्‍ट समाचारपत्र बनता जा रहा है। दुर्दशा तो तब फैली जब शशि शेखर इस अखबार की ऐसी की तैसी करने यहां समूह संपादक बन कर घुसे। उसके बाद से ही हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स में केवल वैशाख-नंदनों यानी गदहों की ही ढेंचू-ढेंचू का समवेत गायन प्रसारित हो रहा है। इसमें अव्‍वल है हिन्‍दुस्‍तान अखबार। इस अखबार ने तो पराड़कर की आत्‍मा को ही निचोड़ डाला है। क्‍या दिल्‍ली, लखनऊ या बनारस, बिहार तक में हिन्‍दुस्‍तान अखबार में पत्रकार का जामा पहने गदहों ने भाषा ही नहीं, बल्कि समाचार को भी चरना शुरू कर दिया है।
बनारस से छपने वाले हिन्‍दुस्‍तान के संस्‍करण में मिर्जापुर की खबर को आप पढ़ लें तो मन करेगा कि फौरन जूता उतारें और उसके संपादक की खोपड़ी पर रसीद कर दें। दरअसल, केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बाढ़-प्रभावित इलाकों का निरीक्षण और दौरा किया था। लेकिन उस पर जो खबर छपी, उसकी हेडिंग छापी है संपादक ने कि, मंत्री में बाढ़ प्रभावित गांवों में किया दौरा। कहने की जरूरत नहीं कि संपादक को यह तक समझ में नहीं आता है कि दौरा मंत्री करते हैं, या फिर मंत्री के भीतर किया जाता है दौरा। यह इस “में” शब्‍द ने इस खबर और इस अखबार की छीछालेदर कर दिया। पूरा मामला ही संपादक पर थूकने पर बन गया। लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि हिन्‍दुस्‍तान के इन वैशाख-नंदनों को वाकई भाषा का ज्ञान नहीं है, या फिर उन्‍होंने जान-बूझ कर ही मंत्री अनु्प्रिया पटेल की खबर को इस तरह मजाक उड़ाने की अश्‍लील शैली में पेश कर दिया। कुछ भी हो, यह घटना तो शर्मनाक ही है।
आप इस अखबार के बिहार के संस्‍करणों को देख लीजिए, तो आपका मूड इतना बिगड़ जाएगा कि इन संपादकों को फौरन जुतिया दिया जाए। वे कौवा को कौये लिख कर अपनी पीठ ठोंकेंगे, यह अम्‍बेदकर की प्रतिमा को स्‍थापित करने के बजाय उसे स्‍थगित करने में मर्दानगी दिखाते हैं, तो कभी बाढ़ का पानी फैलने के बजाय पैलने जैसी हरकतें पेल देते हैं। बेशर्मी की हालत तो यह देखिये कि इन संपादकों को इतनी भी शर्म नहीं होती है कि वे अपनी गलती पर खेद-प्रकाश कर सकें। दरअसल वे पाठकों को इसी तरह की बकवास पेश करते हैं और दावा करते हैं कि उनके पाठक ही बकवास और मूर्ख हैं, तो उनकी रुचि की ही तश्‍तरी परोसी जानी चाहिए।
यह वह अखबार है जो भाषा और खबरों पर चौकसी करने के बजाय अब करीना कपूर के बेटे तैमूर द्वारा उखाड़ी गयी मूली को खबर के तौर पर पेश करने में अपनी बहादुरी, पत्रकारिता और संवेदनशीलता दिखा रहा है। लखनऊ के पत्रकार पवन कुमार सिंह ने इस पर एक बड़ी टिप्‍पणी कर दी है कि, “पत्रकारिता की पूरी तरह से नसबंदी कर दी गई है….ये रोज आम आदमी के तरबूजों में जो लड्ढ रेला जा रहा है वो खबर नहीं…मूली तोड़ी ये खबर है…..मन कर रहा तैमूर से यही मूली लेकर संपादक जी की…..में ठोंक दूं…..”

 

 

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