: एक महीना से फरार, कोर्ट कर चुका कड़ी टिप्पणी, एसटीएफ बेबस और राजभवन के कान में तेल : बहुत ऊंचे तक गहरे रिश्ते हैं प्रो विनय पाठक के, राजभवन के कानों में तेल : विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह ऐतिहासिक रूप से रद, पर कुलपति बरकरार : अराजकता, मनमर्जी और बेईमानी में छीछालेदर हो चुकी विश्वविद्यालय की :
कुमार सौवीर
लखनऊ : घर का बड़ा जिम्मेदार सदस्य पिछले लापता महीने से लापता है, लेकिन घर के मुखिया तक को जानकारी नहीं। जिम्मेदार सदस्य बाकायदा भगोड़ा साबित हो चुका है जिसके चलते हैं पूरे घर में छीछालेदर, भागदौड़ और उठापटक चल रही है, लेकिन घर का पुरखा इस ओर अपनी आंखें ही बंद किये बैठा है। ध्यान ही नहीं दे रहा है अब तो। घर में होने वाला सबसे बड़ा समारोह की तारीख तय हो गयी, यह निर्धारण जिम्मेदार व्यक्ति ने ही तय की, जिसमें घर के मुखिया को आमंत्रित कर लिया गया था। लेकिन ऐन वक्त पर वह जिम्मेदार व्यक्ति ही खुद कहीं भाग कर भगोड़ा बन गया है। लेकिन हैरत की बात है कि घर के पुरखा ने उसको खोजने के बजाय, उस समारोह को ही बंद कर दिया। कोई और होता तो घर का मुखिया उस जिम्मेदार व्यक्ति पर कड़ी कार्रवाई कर बैठता, लेकिन न जाने क्या वजह है कि किधर का मुखिया ही अपनी आंखें बंद किये बैठा है। पूरा मामला ऑस्ट्रिच बिहेवियर जैसा हो गया है। छीछालेदर पूरे मोहल्ले में हो रही है।
यह हालत है उत्तर प्रदेश राजभवन का। कहने की जरूरत नहीं कि राजभवन में सूबे की राज्यपाल रहती हैं और प्रदेश भर के राज्य विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्रणाली उत्कृष्ट का सुधार ही नहीं, बल्कि वहां कुलपतियों की नियुक्ति भी वही करती हैं। अब यह दीगर बात है कि उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों में जो अराजकता हो रही है उसका परोक्ष निशाना ही नहीं बल्कि अब सीधा हमला सीधे राज्यपाल पर ही पड़ने लगा है। अब हालत यह है कि यूपी में न तो उच्च शिक्षा, न शिक्षा व्यवस्था और न ही प्रशासनिक व नियंत्रण बच रहा है। कानपुर के छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय का भगोड़ा कुलपति प्रोफेसर विनय पाठक न केवल भ्रष्ट भगोड़ा साबित हो चुका है, बल्कि अपने विश्वाद्यालयों के प्रति जिम्मेदार रह गया है।
बेहद शर्मनाक हालत है कि आज पूरा एक महीना हो गया है प्रोफेसर विनय पाठक को सरकार की पुलिस से बचते हुए, लेकिन राजभवन ने इस पर कोई भी संज्ञान अब तक लिया हो, ऐसा हरगिज़ नहीं दिख रहा है। हालांकि ताजा घटना है कि इस विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को रद्द कर दिया गया। खास बात तो यह है कि प्रदेश के उच्च शिक्षा जगत के इतिहास का यह पहला मौका है जब किसी विश्वविद्यालय में होने वाला दीक्षांत समारोह को किसी राज्यपाल ने रद्द कर दिया हो।
आपको बता दें कि आगरा विश्वविद्यालय का अतिरिक्त प्रभार रखें प्रो विनय पाठक पर गंभीर आरोप लग चुके हैं। इस विश्वविद्यालय के कामकाज और ठेका किसी गैरजिम्मेदार फर्म को देने के लिए सैकड़ों करोड़ों रुपयों का कमीशन अदा हो चुका है। इनमें से काफी हिस्सा तो सीधे रंगदारी के तौर पर वसूला गया है। पुराने काम का भुगतान करने के एवज में भारी रंगबाजी उगाही गयाी है। विनय पाठक वाले इस मामले का खुलासा तब हुआ जब एक फर्म ने विनय पाठक और उनके कुछ करीबी चालान लोगों पर एफआईआर दर्ज कर दी गयी। मामला एसटीएफ को दिया गया लेकिन आज तक एसटीएफ इस पूरे मामले पर क्या कर चुकी है, इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि एसटीएफ अब तक विनय पाठक की परछाई भी नहीं पकड़ सकी। कोर्ट ने भगोड़े कुलपति को जमीन ने निगल कर लिया है, या आसमान लील गयी है, यह फिलहाल तो गर्त में ही है।
हैरत की बात है कि विनय पाठक 2007 से लेकर आज तक लगातार 6 विश्वविद्यालयों का कुलपति का प्रभार संभाले रहा है लेकिन इसकी करतूतों का खुलासा तभी हुआ था जब आगरा विश्वविद्यालय में विनय पाठक पर रंगदारी वसूलने का एफआईआर दर्ज हो पाया। इसके साथ ही साथ छत्रपति शिवाजी महाराज विश्वविद्यालय और उसके पहले अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी में रहकर अपने कार्यकाल में भी विनय पाठक और उसके करीबी लोगों पर बेहद शर्मनाक आरोप लगते रहे हैं। विनय पाठक की जड़ खोदने वाले लोग तो अब पाठक में कुलपति का पदभार सम्भाल चुके बाकी अन्य विश्वविद्यालयों मैं उनके द्वारा किए गए वित्तीय करतूतों का खुलासा करने में जुटे हैं।
अदालत ने भी इस पूरे मामले को बहुत गंभीरता के साथ लिया है। अदालत का साफ कहना है कि प्रथमदृष्टया ही नहीं, यह तो पूरा मामला ही विनय पाठक की बेईमानी और अन्य अराजक करतूतों का प्रमाण है। और जाहिर है कि यह अपराध है और इस पर केवल कानूनी और सामाजिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक स्तर पर भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन उसे क्या कहा जाए कि इतना बड़ा कांड हो गया है, उच्च शिक्षा के चेहरे पर कालिख पुत चुकी है, लेकिन पुलिस, प्रशासन और सरकार ही नहीं, बल्कि राजभवन भी अब तक खामोश ही बना रहा है।
आज पूरा एक महीना हो गया है जब छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय का कुलपति अपने घर व दफ्तर को छोड़कर बाकायदा फरार और भगोड़ा हो चुका है और इस तरह प्रशासन, सरकार और सरकार को भी ठेंगा दिखा रहा है, लेकिन उस पर कोई ठोस कार्रवाई अब तक नहीं हो पाई है। इतना ही होता तो भी गनीमत थी, लेकिन समस्या तो तब विकराल होती जा रही है कि एक महीने तक अपने भगोड़ेपन को साबित कर जाने के बावजूद उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति राज्यपाल आनंदीबेन ने विनय पाठक पर कोई भी सीधा कार्रवाई करने की आवश्यकता ही नहीं समझी है। जबकि कम से कम उनके स्थानापन्न के लिए उनको उस विश्वविद्यालय में विनय पाठक जैसे भगोड़े की जगह पर उसी दिन से ही किसी अन्य प्रभारी अथवा कार्यकारी कुलपति बना दिया जाना उचित होता। लेकिन चर्चाओं के अनुसार राजभवन ने इस बारे में कोई भी कार्रवाई अब तक नहीं की है। और इसी के चलते अब प्रत्येक विश्वविद्यालय में अराजकता, मनमर्जी की हालत प्रशासनिक स्तर पर पैदा हो गई है। इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि अभी 3 दिन पहले ही इस विश्वविद्यालय में होने वाले दीक्षान्त समारोह को ही रद्द कर दिया गया। आश्चर्य की बात है कि इसके पहले प्रदेश के किसी भी विश्वविद्यालय में उसके अपने दीक्षांत समारोह को अब तक कभी भी रद्द नहीं किया गया है। यह पहला मामला है जहां पर कुलपति तो भगोड़ा और फरार है, जबकि एसटीएफ लाचार है राजभवन कान पर तेल डाले बैठे है।