काशी में पत्रकारों पर पैशाचिक दमन, मुकदमा

बिटिया खबर

: सच पर काशी-प्रशासन बौखलाया, पत्रकार पर मुकदमा : लॉकडाउन के दौरान भूख से बिलखते लोगों की सचाई जगजाहिर की थी सुप्रिया शर्मा ने, प्रशासन ने पत्रकार मुकदमा दर्ज कर दिया :
बनारस : डोमरी गांव में कोविड-19 के दौरान हुए लॉकडाउन के दौरान लोग भूखे रह गए थे। उस लेख में केस स्टडी के रूप में उल्लिखित डोमरी गांव की निवासिनी एक स्थानीय महिला माला देवी द्वारा स्थानीय पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि स्क्रॉल.इन ने उसकी टिप्पणी को गलत तरीके से प्रस्तुत किया। समाचार में डोमरी गांव के कई अन्य लोगों से भी बातचीत की गई है, लेकिन आपत्ति सिर्फ माला ने किया है। इस मामले की वाराणसी के प्रशासन की करतूत हैरतअंगेज है। फिलहाल, इस पूरे मामले पर आवाज पर दमन के तौर पर देखा जा रहा है। पूरे देश ही नहीं, बल्कि पत्रकारों के अंतर्राष्‍ट्रीय संगठन ने भी इस मामले पर प्रशासन को आड़े हाथों लिया है और पत्रकारों का दमन करने की कार्रवाई की कड़ी निंदा की है।
आपको बता दें कि समाचार पोर्टल ‘स्क्रोल डॉट इन’ के कार्यकारी संपादक और एडिटर-इन-चीफ के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामला दर्ज किए जाने के मामले में न्यूयॉर्क में एशिया महाद्वीप के लिए कार्यरत कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) की वरिष्ठ शोधकर्ता, आलिया इफ्तिखार ने कहा है कि इस आपराधिक मामले को तत्काल बंद किया जाना चाहिए। साथ ही उन पत्रकारों का कानूनी रूप से उत्पीड़न भी बंद किया जाना चाहिए जो ईमानदारी से अपनी पत्रकारीय जिम्मेदारी का निर्वाहन कर रहे हैं।

स्क्रॉल की वेबसाइट पर 8 जून को सुप्रिया शर्मा की एक रिपोर्ट छपी थी, जिसमें उन्होंने बनारस के कुछ स्थानीय लोगों से बातचीत के आधार पर यह बताया था कि लॉकडाउन के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी के गोद लिए गाँव में वो भूखे रहने को मजबूर थे। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि वाराणसी के डोमरी गांव में लॉकडाउन के दौरान कई लोगों के पास राशन कार्ड नहीं होने की वजह से उन्हें अनाज नहीं मिल पा रहा था। रिपोर्ट के मुताबिक, 17 अप्रैल को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के राशन कार्ड और आधार कार्ड के बिना भी जरूरतमंद लोगों को राशन किट दिए जाने की घोषणा के बावजूद वाराणसी के इस गांव में अनाज नहीं मिला।
स्क्रॉल की इस रिपोर्ट में कहा गया कि सीधे प्रधानमंत्री के साथ जुड़ाव होना या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संपर्क होना डोमरी के कई निवासियों को कुछ काम नहीं आया और ऐसी आपात स्थिति में उनके पास मदद नहीं पहुँच सकी। इतना ही नहीं, लॉकडाउन के दौरान पीडीएस लिस्ट में दो परिवार के सिर्फ 8 लोगों के नाम ही जोड़े गए।
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2018 में सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत डोमरी गाँव को गोद लिया। वाराणसी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से 2014 में जीतने के बाद यह चौथा गाँव था, जिसे पीएम मोदी ने गोद लिया। 2011 की जनगणना के अनुसार इस गांव की आबादी 5,000 थी, जो पिछले कुछ सालों में बढ़ी भी है।
सुश्री आलिया के अनुसार 13 जून को, वाराणसी की रामनगर थाना पुलिस ने स्क्रॉल.इन न्यूज़ वेबसाइट की कार्यकारी संपादक, सुप्रिया शर्मा पर जो मामला दर्ज किया है उसके मुताबिक़ उनपर एक तरफ मानहानि के आरोप हैं। दूसरी तरफ उन पर लापरवाही बरतने के भी आरोप लगे हैं। आलिया इफ्तिखार ने अपने बयान में यह भी कहा है कि प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में अपने काम को ईमानदारी से निर्वाह करने के लिये के एक पत्रकार के ऊपर जांच शुरू करना स्पष्ट रूप से डराने की रणनीति है। देश भर के पत्रकारों के लिए यह मामला एक हाड़ कंपा देने वाले संदेश सरीखा है। आलिया ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस को शीघ्र सुप्रिया शर्मा पर हो रही जांच को बंद कर देना चाहिये। उन्होंने उक्त समाचार को लिख कर कोई अपराध नहीं किया है और वे केवल एक पत्रकार के रूप में अपना काम कर रही थीं।
स्क्रॉल.इन के अनुसार, उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कानून के कथित उल्लंघन के इस मामले के लिये सुप्रिया शर्मा की जांच की जा रही है। यदि उन पर आरोप सिद्ध हो जाते हैं तो वह जमानत के लिए अयोग्य होंगी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कानून के मामले में दोषी पाये जाने पर उन्हें पांच साल तक की सजा हो सकती है। मानहानि का दोषी पाये जाने पर, उन्हें दो वर्ष तक की जेल और आर्थिक जुर्माना भी हो सकता है।
उधर, स्क्रॉल.इन द्वारा जारी एक आधिकारिक बयान में यह स्पष्ट किया गया है कि उनका संस्थान सुप्रिया शर्मा द्वारा लिखे गये समाचार के पक्ष में खड़ा है। यह जांच वास्तव में “स्वतंत्र पत्रकारिता को डराने और चुप करवाने का एक प्रयास है, जो कोविद -19 के दौरान हुए लॉकडाउन के दौरान कमजोर समूहों की स्थितियों पर समाचार एवं लेख लिख रहे हैं।”
सीपीजे ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में पत्रकारों पर हो रही पुलिस जांच के ढेर सारे अन्य मामलों का भी दस्तावेजीकरण किया है, खास तौर पर उत्तर प्रदेश राज्य में भी, जिसमें वाराणसी भी शामिल है। सीपीजे ने इस मामले पर टिप्पणी करने के लिए वाराणसी के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को ईमेल भी भेजा है, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।
द वायर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस मामले में वादी माला के फोन नंबर पर कॉल किया तो उनकी छोटी बहन ने फोन उठाया। एफआईआर के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने फोन काटने से पहले हिचकिचाते हुए कहा, ‘आप इस मामले में डीएम सर से बात कीजिए।’ इस बीच जनसंदेश टाइम्स ने भी माला से संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन उनका पक्ष नहीं मिला। अगर उनका पक्ष मिलता है तो उसे भी प्राथमिकता से प्रकाशित किया जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *