साहित्यकार शंकर सुल्तानपुरी बीमार, स्थिति ठीक नहीं

बिटिया खबर
: उनका लिखा छाप कर जाने कितने प्रकाशक लखपति बन गए लेकिन 500से अधिक पुस्तकें रचने तथा दूरदर्शन के लिए कई सीरियल आदि लिखने वाले श्री शंकर सुल्तानपुरी आज भी किराए के मकान में रह रहे हैं :

नवेद शिकोह

लखनऊ : कहा जाता है कि साहित्यकार अतिरिक्त संवेदनशील होता है । मैं भी मन में यह भ्रम पाले हुए था। लेकिन अब यह भ्रम टूट गया है। गत 15 नवंबर की रात मुझे 80 वर्षीय साहित्यकार श्री शंकर सुल्तानपुरी की तबियत अत्यधिक खराब होने की सूचना मिली थी। 16 नवंबर को सवेरे उनके आवास पर गया और उन्हें लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया। वह पूरे ग्यारह दिनों तक भर्ती रहे किंतु दो लोगों के अतिरिक्त किसी भी अन्य साहित्यकार ने उनकी सुध लेने की जहमत नहीं उठाई। उनकी सभी आवश्यक जांच तथा इलाज करा कर ग्यारह दिन बाद उन्हें घर ले जाया गया।
घर जाने के बाद तीसरे ही दिन से पुनः उनकी तबियत बिगड़ने लगी। पहले घर पर डॉक्टर बुला कर दिखाया गया। फायदा नहीं होने की दशा में फिर से उन्हें 2बजे दिन मे लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया।
उल्लेखनीय है कि श्री शंकर सुल्तानपुरी दम्पत्ति निःसंतान है। उनकी खोज-खबर लेने वाला कोई नहीं है।दूसरी खास बात यह है कि वह मसिजीवी साहित्यकार हैं। हिन्दी भाषा विग्यान जैसे कठिन विषय मे एमए शंकर सुल्तानपुरी इलाहाबाद में अपने छात्र जीवन में ही निराला, पंत, महादेवी वर्मा, फिराक और बच्चन आदि के सम्पर्क में आ गए थे। लेखन का ऐसा नशा चढा कि उन्होंने आजीवन साहित्य सेवा का संकल्प ले लिया और कई मिल रही नौकरियों को ठुकरा दिया। सारी उम्र बस लिखते रहे।
बाल साहित्य तथा प्रौढ़ साहित्य की हर विधा मे लिखा है उन्होंने। उनका लिखा सीरियल “मुखडा क्या देखे दर्पण में” अपने समय में दूरदर्शन का सर्वाधिक लोकप्रिय सीरियल था। उनका लिखा छाप कर जाने कितने प्रकाशक लखपति बन गए लेकिन 500 से अधिक पुस्तकें रचने तथा दूरदर्शन के लिए कई सीरियल आदि लिखने वाले श्री शंकर सुल्तानपुरी आज भी किराए के मकान में रह रहे हैं। सीधी सी बात है कि जब देने के लिए उनके पास कुछ नहीं है तो सगे संबंधियों ने भी किनारा कर लिया है। उनकी समवयस्क पत्नी अपने को अकेला पा कर परेशान हो जाती हैं।
ऐसे में क्या हम कलमकारों का अपने एक बुजुर्ग कलमकार के प्रति कुछ फर्ज नहीं बनता?
यह जानकारी मुझे मेरे मित्र अखिल चौधरी ने भेजी तो मैं सक्रिय हुआ। मैं उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का शुक्रगुजार हूँ कि संस्थान से 50 हजार की आर्थिक सहायता मुहैया कराई गई है। शंकर सुल्तानपुरी जी फिलहाल इंदिरा नगर मकान नंबर- 13/362 में लौट आए हैं। यदि प्रबुद्ध वर्ग द्वारा और शासन से मदद हो जाती तो इन वयोवृद्ध साहित्यकार के साथ कुछ अच्‍छा हो जाता।

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