: जो काम 30 दिन में होना चाहिए, उसमें नौ साल लगाया : किशोर बोर्ड की असल कमाई अपराधियों को नाबालिग साबित करने में : केवल रूपहली गड्डियां ही चाहिए किशोर बोर्ड के पदाधिकारियों को :
कुमार सौवीर
लखनऊ : गौरव शुक्ला् के मामले में खुले दिल से नोटों की बारिश हुई। लेकिन यह बारिश केवल उन्हीं लोगों को तरबतर कर पायी जो इस मामले से कहीं न कहीं जुड़े थे। और जाहिर है कि यह लोग ही गौरव शुक्ला को बचाने की हरचंद कोशिश कर रहे थे। लेकिन इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा मलाई काटी है किशोर न्याय बोर्ड से जुड़े पदाधिकारियों ने। चाहे कोई भी इस मामले में बोर्ड के अफसरों को बरी करने की पैरवी करे, लेकिन इस सवाल का जवाब आज तक कोई भी व्यक्ति नहीं दे रहा है कि किशोर न्याय बोर्ड ने इस मामले में इतना जघन्य विलम्ब क्यों किया।
आपको बता दें कि आज से करीब 11 साल पहले राजधानी के आशियाना इलाके में नागेश्वर मंदिर के ठीक सामने शाम करीब छह बजे छह से ज्यादा कुछ गुण्डों ने एक 13 बरस की बच्ची को सरेआम अपहरण कर लिया था। उस वक्त वह बच्ची अपने छोटे भाई के साथ अपने घर लौट रही थी। एक बेहद गरीब परिवार की यह बच्ची आसपास के कुछ मकानों में झाडू-पोछा लगा कर अपने परिवार के जीवन-यापन में मदद कर रही थी। आसपास के अपहरण के वक्त वहां मौजूद लोगों ने इस बारे में अपना मुंह ही बंद किये रखा। नतीजा यह हुआ कि अगले छह घंटों तक इस बच्ची के साथ उन सभी गुण्डों ने बारी-बारी से बलात्कार किया। इतना ही नहीं, इस बच्ची को अमानवीय प्रताड़ना देते हुए उसके शरीर को जगह-जगह लाइटर व सिगरेट वगैरह से जलाया गया।
इस काण्ड का खुलासा होने के बाद पुलिस ने जब उन सभी दुराचारियों को पकड़ा, तो उसमें से रसूखदार परिवार से सम्बन्ध गौरव शुक्ला को बचाने के लिए राजनीतिक गोटियां चलनी हो गयीं। सबसे पहले तो इस दुराचारी गौरव को झूठे कागजात तैयार कराते हुए उसे नाबालिग करार देने की कवायद छेड़ी गयी। और इसके बाद गौरव को किशोर सुधार गृह भेज दिया गया। हैरत की बात है कि किशोर न्याय बोर्ड ने गौरव को नाबालिग करने का फैसला इस हादसे के 15 दिन बाद ही कर दिया था।
लेकिन इसके बाद यह मामला तूल पकडे रहा। साझी दुनिया, एडवा और आधी दुनिया जैसे कई बड़े संगठनों ने इस बच्ची की लड़ाई और उसकी आवाज उठायी। लेकिन राजनीतिक कारणों से यह मामला लगातार दबा ही रहा। लेकिन आखिरकार इसके सात बाद हाईकोर्ट ने किशोर न्याय बोर्ड को आदेश दिया कि सामूहिक दुराचारी गौरव शुक्ला उस हादसे के वक्त वाकई बालिग था अथवा नाबालिग। मगर हैरत की बात रही कि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद यह तय करने में किशोर न्याय बोर्ड को दो और साल लग गये। लेकिन संतोष की बात रही कि बोर्ड ने गौरव को हादसे के वक्त नाबालिग होने की बात मंजूर कर दी। इसके बाद से ही गौरव की मुश्किलें बढ़तीं गयीं और आखिरकार गौरव को अदालत ने दस साल की सजा दे दी।
मगर इस पूरे प्रकरण में किशोर न्याय बोर्ड पूरी तरह नंगा हो गया। वजह यह कि किसी को भी नाबालिग करने के लिए जरूरी सारी तथ्यों का परीक्षण करने जैसी सारी कवायदों में अधिकतम तीस दिन का ही वकत लगना चाहिए। लेकिन किशोर न्याय बोर्ड ने अपनी बेशर्मी अख्तियार किये रखी और इसको अनावश्यक तौर पर दो अन्य बरस भी लगा दिये। जाहिर है कि इस विलम्ब के चलते ही गौरव शुक्ला की सजा का मामला भी लटका ही रहा। जानकारों का आरोप है कि इस पूरे मामले में गौरव शुक्ला के परिजनों ने एक मोटी-खासी रकम किशोर न्याय बोर्ड को थमायी थी।