सचिवालयकर्मी थी कल्‍पना, 1090 से गुहार करती रही, मार डाली गयी

सैड सांग

: वीमन हेल्‍पलाइन 1090 के भरोसे में ही आत्‍महत्‍या पर मजबूर हो चुकी है एक मेडिकल छात्रा : पिछले बरस इसी पखवाड़े 1090 की उदासीनता ने छीन ली दो युवतियों के जान : राजधानी की युवतियां तक असुरक्षित, बाकी जगह हालत भयावह :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सचिवालय की एक कर्मचारी कल्‍पना की लाश बरामद हुई थी। लेकिन अपनी मौत से पहले कल्‍पना ने वीमन हेल्‍प लाइन 1090 पर जमकर गुहार लगायी, लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया, नतीजा जीती-जागती कल्‍पना लाश में तब्‍दील कर दी गयी। इसके कुछ ही दिन पहले एक मेडिकल छात्रा ने पुलिस की उदासीनतता से त्रस्‍त होकर अपनी इहलीला खत्‍म कर दी।

यह पिछले साल के इसी पखवाड़े का हादसा था, जो उप्र में पुलिस और वीमन हेल्‍प लाइन 1090 की असलियत की धज्जियां उड़ा देता है।

अरे यही बात तो तब के मुख्‍यसचिव आलोक रंजन और मैं ही नहीं, पूरे राजधानीवासी और पूरा प्रदेश कह रहा है। इसमें अनोखी कौन सी बात है। निष्‍पक्ष जांच की बात तो ठीक है, कि यह है कि इस मामले में निष्‍पक्ष जांच की राह में अड़ंगा कौन लगा रहा है, जो निष्‍पक्ष जांच की बात चल रही है।

कुछ भी हो, मौजूदा पखवारे में यह दूसरा दर्दनाक हादसा है जब महिलाओं की सहायता के लिए बनायी गयी 1090 वीमन हेल्‍पलाइन की उदासीनता के चलते राजधानी में ही दो युवतियों की मौत हो गयी। इसके चंद दिन पहले एक मेडिकल छात्रा सारिका गुप्‍ता ने भी शोहदों से त्रस्‍त होकर पहले 1090 पर गुहार लगायी थी, लेकिन जब उसकी गुहार किसी के भी कान को नहीं हिला सकी, तो उसने आत्‍महत्‍या कर ली। सारिका बलरामपुर की रहनी वाली थी। शोहदों की शिकायतें कर-कर जब वह असहाय हो गयी, तो उसने पंखे से फंदा लगा दिया और झूल गयी फांसी पर।

बहरहाल, कल्‍पना के मामले में हकीकत तो यह है कि जिस व्‍यक्ति, थाना अथवा 1090 को इस मामले में हस्‍तक्षेप करना था, उसने कोई धेला भर काम नहीं किया। मेरा मतलब 1090 हेल्‍पलाइन। कल्‍पना चिल्‍लाती रही कि उन्‍नाव का एक युवक उसको खत्‍म करना चाहता है। लेकिन हेल्‍पलाइन ने उसकी अर्जी को लाइन पर लगाने की जहमत ही नहीं उठायी।

कल्‍पना को अपने पिता की मृत्‍यु के अनुकम्‍पा के तौर पर सचिवालय में नौकरी मिल थी। इसी 24 फरवरी को कलपना की शादी तय थी। लेकिन वह शोहदा उसकी जान का गाहक बनता जा रहा था। एक ओर शोहदे की धमकियां कि वह शादी तुड़वा देगा, दूसरी ओर 1090 की उदासीनता। कई बार की शिकायतें जब बेमतलब निकलीं, तो कल्‍पना—–

हैरत की बात है कि कल्‍पना के भाई ने जब कल्‍पना हत्‍याकांड में शोहदे का नाम देते हुए पुलिस थाना कोतवाल को एक तहरीर दी, तो कोतवाल ने उस तहरीर को लेने से ही इनकार कर दिया।

सवाल है कि आखिर ऐसा क्‍यों किया कोतवाल ने। मुख्‍यसचिव को तो चाहिए कि पहले इस मामले में 1090 और थाना से जुड़े दोनों पहलुओं के जिम्‍मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई करें। निष्‍पक्षता तो अपने आप ही सामने आ जाएगी। और अगर कोई कार्रवाई नहीं होना है, दोषियों को ही बचाना है, तो फिर इस तरह के बयान-दावे और घोषणाएं बन्‍द कीजिए। मरती रहने दीजिए यूपी की बेटियों को इसी तरह, ताकि वे बेलगाम कानून-व्‍यवस्‍था की बलिवेदी पर चढती रहें।

बोलिये है कि नहीं ?

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