: अफसर मौज लेते रहे, उमड पडे हजारों ताजियादार कानून-व्यवस्था ध्वस्त : माइक पर चिल्लाये कि मैं बेकार डीएम हूं, मैं बेकार डीएम हूं : पत्रकार को क्यों डांटा, शहर में चर्चा का विषय :
कुमार सौवीर
जौनपुर : घोडे की पिछाडी और अफसर की अगाडी वाली हालत हमेशा आगे-पीछे लगे लोगों पर भारी पडती है। जौनपुर के पत्रकारों पर यह कहावत बिलकुल सटीक बैठने लगी है। अपने एक पत्रकार को पिछले दिनों जिस तरह यहां के जिलाधिकारी ने सरेआम बेइज्जत किया, उसने साबित कर दिया है कि पत्रकारों को अपने व्यवहार की समीक्षा करने का सटीक वक्त आ चुका है।
मामला है 31 अगस्त का। घरों में रखी हजारों ताजियों को कर्बला जा कर उन्हें सिपुर्द ए खाक करने की परम्परा इस बार पूरी नहीं हो पायी। सरकारी आदेश के चलते लोगों में खासा आक्रोश फैला हुआ और शियाओं के सभी घरों में रखी ताजिया जस की तस रखी गयीं। शिया समुदाय को इस बात का दुख था कि ताजिया दरअसल मैयत की तरह होती है, जिन्हें कर्बला में दफन करने की ही परम्परा है लेकिन सरकारी हुक्म से ताजिया घरों में रखी रहीं। आखिर किसी लाश को कब तक घर में रखा जा सकता था, सवाल उठाते हैं शिया समुदाय के वरिष्ठ सामाजिक नेता और नागरिक।
सूत्र बताते हैं कि 29 अगस्त को शहर कोतवाली में जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक ने मुस्लिम समुदाय के लोगों से बातचीत की। बताते हैं कि इस मामले में एक वरिष्ठ अजादारी कौंसिल के पूर्व अध्यक्ष मोहम्मद हसन बोले कि ताजिया तो लाश की मानिंद है, उसे विसर्जित किया ही चाहिए। वे चाहते थे कि प्रशासन ताजियों को दफन करने की इजाजत दे दे। वहीं मौजूद एक अन्य व्यक्ति ने इस पर आपत्ति की, तो अचानक बैठक में तनाव गया। बैठक उस तरह की सौहार्द्रता के साथ नहीं निपट पायी, जिस तरह अतीत में होती रही थी। एक पत्रकार ने दोलत्ती को बताया कि इस बैठक के बाद डीएम अपने इर्दगिर्द आसपास मंडराने वाले पत्रकारों के जरिये हालचाल ले रहे थे। कहने की जरूरत नहीं कि शहर में इन पत्रकारों के साथ डीएम के रिश्ते काफी प्रगाढ और आत्मीय माने जाते हैं।
लेकिन 29 अगस्त की रात कोतवाली में हुई बैठक के दौरान डीएम द्वारा की गयी अपील का असर 30 अगस्त मोहर्रम के दिन तो दिखा, लेकिन अगले दिन ताजिया दफन नहीं हो पाने का मलाल लोगों के चेहरे और व्यवहार पर साफ दिखने लगा था। अचानक एक अधिवक्ता समेत दो लोगों ने अपना ताजिया लेकर कर्बला का रास्ता पकड लिया, लेकिन रास्ते में पुलिसवालों ने ऐतराज कर दिया। उनका कहना था कि ताजिया के जुलूस पर चूंकि सरकार का आदेश है, इसलिए यह जुलूस नहीं निकाला जा सकता है। लेकिन इन दोनों ताजियादारों ने तर्क दिया कि महज दो लोगों के ताजिया ले चलने को जुलूस नहीं माना जा सकता है, लेकिन पुलिसवालों ने इस तर्क को खारिज कर दिया।
इस पर इन दोनों ताजियादार अपने ताजिया लेकर नदी की ओर चल पडे। मकसद था कि कर्बला में जगह न मिल पाने के चलते उन ताजिया को नदी में प्रवाहित-विसर्जित कर दें। लेकिन नदी के पास पहुंचने से पहले ही वहां के पुलिसवालों ने इन लोगों से साफ कह दिया कि ताजिया नहीं ठण्डा किया जा सकेगा। तब वक्त हो चुका सुबह सवा दस बजे।
एक पत्रकार ने बताया कि इसी बीच अफवाह फैली कि एक सिपाही ने ताजिया के साथ छेडखानी की है। फिर क्या था, देखते ही देखते घटनास्थल पर हजारों की तादात में स्त्री-पुरुष पर जुट गये और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करना शुरू कर दिया। लेकिन करीब ढाई घंटों तक यह हंगामा चलता रहा, मगर न मौके पर जिलाधिकारी पहुंच पाये और न ही कप्तान पहुंचे। और जब यह दोनों अफसर पहुंचे, तब आक्रोश काफी बढ चुका था। सूत्र बताते हैं कि डीएम और कप्तान मौके पर पहुंचे, लेकिन उनका लहजा बहुत आक्रामक दिख रहा था। इतना ही नहीं, एक पत्रकार ने बताया कि डीएम को गुस्सा तो पत्रकारों पर उमड रहा था। न जाने क्यों, बजाय इसके कि यह अफसर पुलिस, अभिसूचना और प्रशासन की लापरवाही मान कर मामले को निपटाने की कोशिश करते, डीएम ने मौके पर खबर कवर कर रहे पत्रकारों के साथ अचानक सामने दिख पडे पत्रकार आरिफ हुसैनी पर सारा गुस्सा उगल दिया। आरिफ को अनावश्यक बुरी तरह डांटते हुए डीएम ने यहां तक कह दिया कि तुम यहां मुअज्जिम बने घूम रहे हो। मौके पर मौजूद एक पत्रकार का कहना था कि किस तरह का लहजा डीएम ने अख्तियार किया वह बेहद आपत्तिजनक था, जो न केवल एक डीएम की गरिमा के अनुकूल था, और न ही एक पत्रकार के साथ सभ्यता का प्रतीक भी नहीं रहा। कानून-व्यवस्था को सुचारु रूप से निभाना अफसरों का जिम्मा था, जबकि घटनाओं की तोहमत पत्रकारों पर थोपना निहायत दुखद था।
दोलत्ती संवाददाता ने इस मामले पर पत्रकार आरिफ हुसैनी से बातचीत की। आरिफ दूरदर्शन और न्यूज 18 नेशनल चैनल के प्रतिनिधि हैं। आरिफ ने माना कि जिलाधिकारी ने उनके साथ अभद्र व्यवहार किया और इस घटना से वे काफी आहत हैं। उनका कहना था कि वे उस वक्त अपने चैनल के लिए खबर को कवर कर रहे थे। ऐसी हालत में मुझे किस आधार या कि तर्क पर मुझसे अपमानजनक व्यवहार किया, यह समझ से परे है।
इस घटना के बाद जिले के पत्रकारों में काफी आक्रोश है। एक पत्रकार ने दोलत्ती संवाददाता को बताया कि डीएम ने न केवल अपने पद के साथ अराजक व्यवहार किया है, बल्कि आम आदमी तथा पत्रकारिता को भी कलंकित किया है। इस पत्रकार का आरोप है कि जिले की कानून-व्यवस्था को सम्भाल पाने में असमर्थ रहे डीएम ने पत्रकार पर अपना ठीकरा फोडा है।
दरअसल, यह पूरा कांड ही प्रशासन और पुलिस की लापरवाही और जिद के चलते हुआ। यह जानते हुए भी मोहर्रम का महीना चल रहा है, सात मोहर्रम के दिन कप्तान ने शहर कोतवाल को बदल दिया। नाम है संजीव मिश्र। नये कोतवाल भी गजब इतिहास रखते हैं। लाइन बाजार के बहुचर्चित महालक्ष्मी ज्वेलर्स में हुई डकैती में लापरवाही के मामले में संजीव लाइन हाजिर हो चुके थे। यह डकैती कप्तान के कार्यालय के निकट ही हुई थी। एक अन्य मामले में संजीव मिश्र जब सराय ख्वाजा एसओ थे, उस वक्त भरेठी गांव में दलितों के मकानों में मारपीट, लूट और आगजनी का मामला हुआ था। इस मामले में मुख्यमंत्री योगी ने इस मामले को संज्ञान में लिया और शासन के स्तर पर कडी कार्रवाई करते हुए इस इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर दिया था। वहीं कुछ दिन पहले कप्तान ने सीओ सिटी का भी तबादला कर दिया गया था।
कुछ भी हो, इस घटना के बाद पत्रकारों को अपने गिरहबान में झांकने की जरूरत तो महसूस ही होनी चाहिए, जो अफसरों के आगे-पीछे घूमने को ही अपना पत्रकारीय दायित्व पूरा महसूस कर गौरवान्वित होते रहते हैं। और ऐसी कवायदों में उनके खाते में केवल इसी तरह के अपमान ही हासिल हो पाते हैं।
दूसरी बात यह कि इस कांड के बाद जाहिर है कि पत्रकारों का रवैया प्रशासनिक अधिकारियों के प्रति मोहभंग के स्तर तक पहुंचने लगेगा। और जाहिर है कि यह स्थिति अफसरों और पुलिस के लिए काफी नुकसानदेह हो सकती है।