ब्रेन-सर्जन बनना चाहते हो ? डोंट वरी, जागरण वाले चुटकियों में बना देंगे

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: पाठकों को खबर नहीं, ब्रेन-सर्जरी सिखा दिया दैनिक जागरण ने : ऐसी-ऐसी क्लिष्‍ट शब्दावली का प्रयोग किया कि पाठक का दिमाग ही चकरगिन्नी हो जाए : लालटेन दिखा कर बता दिया कि मरीजों के लिए डॉक्‍टरों की प्राइवेट-प्रैक्टिस वाली डगर कौन सी है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : खुशखबरी, खुशखबरी, खुशखबरी। अगर आप अपनी निजी परेशानियों से बेहाल हैं। आर्थिक संकट है, पैसों-रूपयों का टण्‍टा है। भविष्‍य की चिंता है। पढ़ाई में मन नहीं लगता। किताब-कॉपी का नाम सुनते ही जूड़ी-बुखार चढ़ जाता है। लेखन का कौशल उत्‍तरपुस्तिका के बजाय सुलभ-शौचालय की दीवारों पर उभर जाता है। परीक्षा में जीरो बटा बण्‍डा आ जाता है। मां डांटती है, बाप कूटते हैं। प्रेमिका को घुमाने-गोलगप्‍पा खिलाने की औकात नहीं रहती है। जेब में पर्स तो है, लेकिन उसकी छुच्‍छी निकल चुकी है। बाइक का पंक्‍चर बनाने तक की औकात नहीं बची है। लेकिन ख्‍वाहिशें बेहिसाब हैं

तो परेशान क्‍यों हैं। हम आपको रास्‍ता बताते हैं, जहां से आपको घर बैठे डॉक्‍टर बन जाने का सुनहरी मौका मिल जाएगा। डॉक्‍टर भी ऐसा-वैसा नहीं, बल्कि सीधे सुपर-स्‍पेशियलिटी योग्‍यता रखने वाला। मसलन ब्रेन-सर्जन। चुटकियों में। जी हां, आपकी इन समस्‍याओं का समाधान के लिए दैनिक जागरण समाचार पत्र ने सिंगल-विंडो सिस्‍टम लागू कर दिया है। जहां आप जादू से भी तेजी फुर्ती से अपने सपने पूरे कर सकते हैं। तो जाइये, सबसे पहले दैनिक जागरण की प्रतियां मंगवाइये। आपको हर रोज एक-न-एक ऐसी खबरें जुगाड़ू खबरें मिल जाएंगी, जिनके बल पर आप किसी भी विषय के विशेषज्ञ बन सकते हैं।

जी हां, अब न कोई तेल चलेगा, न कोई फुलेल। न गैसोलीन की जरूरत, न पेटसफा की गोली। न कोई वर्द्धक-यंत्र, न 32 जीबी का मेमोरी-कार्ड। न कोई पावडर की जरूरत, न कोई टेबलेट। न जोंक का तेल चाहिए, या न साण्‍डहा तेल। बस चार रूपयों का खर्चा बर्दाश्‍त कीजिए, और सीधे ब्रेन-सर्जन वाली डिग्री हासिल कर सीधे ऑपरेशन करना शुरू कर दीजिए। दैनिक जागरण वाले आपको दिला देंगे एक ही दिन में थ्‍योरी में मास्‍टर। बाकी प्रैक्टिकल सीखने के लिए आपको थोड़ी प्रैक्टिस जरूर करनी पड़ेगी। धीरे-धीरे आप कुशल सर्जन बन जाएंगे, और जो चाहें हासिल कर सकते हैं। अपनी सारी ख्‍वाहिशें पूरी हो जाएंगी। पैसों का संकट दूर हो जाएगा। अरे उसमें क्‍या है, सिर्फ मरीज को ऑपरेशन-टेबुल पर लिटा कर उसकी खोपड़ी खोलनी ही तो होगी। फिर उसके बाद से आप जितना भी खर्चा बताते रहेंगे, मरीज के तीमारदार उसे पूरा करते ही रहेंगे। अब आप डॉक्‍टर होंगे, भगवान तो होंगे नहीं कि मरीज की जिन्‍दगी की सांसें बढ़ा दें या कम कर दें। फिर क्‍या है ऐश कीजिएगा।

पत्रकारिता से जुड़ी खबरों को देखने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

पत्रकार

28 नवंबर को लखनऊ वाले दैनिक जागरण के 5 नम्‍बर पन्‍ने पर एक बड़ी खबर छापी है। खबर का शीर्षक है:- पैर की नस से रोकी ब्रेन की ब्‍लीडिंग। अब जरा इस खबर को पढ़ लीजिए, तो आपका दिमाग घूम जाएगा। इस खबर को देख कर लगता ही नहीं है कि इस खबर को किसी रिपोर्टर ने लिखा है, जिसका मकसद अपने पाठकों को सुपाच्‍य समाचार परोसना होता है। बल्कि इस खबर में तो ऐसा लग रहा है कि जैसे किसी कुशल प्रोफेसर अपनी क्लास में ऑपरेशन टेबल पर लेटे मरीज के ऑपरेशन की एक-एक गतिविधि और उसके बारीकियां आपने मेडिकल छात्रों को बता रहा हो।

अब यह खबर पढने की कोशिश कीजिए, और उसमें शब्‍दों का अर्थ समझने की कोशिश कीजिए।

पत्रकारिता में प्राइवेट-प्रैक्टिस का धंधा इधर बहुत तेजी से पनप रहा है, जहां रिपोर्टर और सम्‍पादक अपने पाठकों को खबर परोसने के बजाय, अपनी मूर्खताओं का प्रदर्शन करने लगा है। जाहिर है कि ऐसी खबरें केवल अनुचित लाभ हासिल करने के लिए ही लिखी और लिखायी जाती हैं। जहां डॉक्‍टर से उपकृत रिपोर्टर-सम्‍पादक ठीक वही लिखता है, जो डॉक्‍टर मनचाहे तरीके से उसे भरना-ठूंसना चाहता है, भले ही रिपोर्टर की समझ में कुछ आये भी या नहीं। इस झक्‍कास धंधेगिरी में पाठक तो गया भाड़ में।

पत्रकारिता की इस नयी प्रवृत्ति पर अगले कुछ दिनों तक हम आपको वह सामग्री पेश करेंगे, जो ऐसी दलाल और मूर्खतापूर्ण रिपोर्टरों-सम्‍पादकों की ठस-बुद्धि का परिचायक होकर पत्रकारिता को कलंकित कर उसे माखौल बना डालती है। इसके अगले अंकों को पढ़ने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

ऑपरेशन-टेबल पर पत्रकारिता

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *