: पद्मिनी के बाद अब दुसहोबास पर जातीय-धर्म की आंच : तस्लीमा नसरीन का लिखे दुसहोबास सीरियल पर ममता बनर्जी सरकार ने बंगाल में रोकने की तैयारी शुरू की : पद्मिनी का प्रसारण बंगाल में करने पर आमादा बैठी हैं ममता बनर्जी :
कुमार सौवीर
कलकत्ता : मसला है दुसहोबास का। पूरी दुनिया में जिन दो लोगों का जीना हराम कर दिया गया हो, उसमें से एक हैं तस्लीमा नसरीन। खुद को धर्मनिरपेक्ष राज्य-राष्ट्र कहलाते नहीं भारत देश की सरकार ने नसरीना तस्लीम को अपने पांव टिकाने तक की इजाजत नहीं दी है। लेकिन अब कट्टर राष्ट्रवाद-विरोधी ममता बनर्जी ने भी अपना नकाब उतार कर अपना कट्टर राष्ट्रवादी चेहरा सावर्जनिक कर दिया है। खबर है कि तस्लीमा की लिखी कहानी पर तैयार और अब प्रसारण के आखिरी पायदान तक पहुंच चुके एक कार्यक्रम पर ममता बनर्जी सरकार पाबंदी लगाने जा रही है। सरकारी तेवर को देखते हुए इस कार्यक्रम के प्रचार का अभियान पूरी तरह ठप कर दिया गया है। जबकि पहले इसे तूफानी और ऐतिहासिक कार्यक्रम के तौर पर पेश किया जा रहा था। सूत्र बताते हैं कि बंगाल के कुछ मुस्लिम संगठनों की जुबान का जायका तस्लीमा नसरीना के नाम पर बिगड़ गया था, इसलिए ममता ने यह सीरियल रोक कर उनका मुंह मीठा करा दिया।
इस सीरियल का नाम है दुसहोबास, यानी ऐसा काम जो बेहद दुश्कर हो, और निपटा जा पाना सामान्य तौर पर नामुमकिन हो। खास तौर पर जब भारी विषम लैंगिक असमंजस की हालत हो। लेकिन राजनीति ऐसे हर दुसाध्य काम को पूरी तरह साध सकती है, जो सामान्य तौर निपटा जा पाना मुमकिन नहीं होता। खास तौर पर तब, जबकि ऐसी राजनीति में धार्मिक, साम्प्रदायिक और जातीय और क्षेत्रीय समस्याओं का पुट हो। भले ही ऐसे दुसहोबास को निपटाने में समाज में गहरी चोट-आहत भाव आर्तनाद कर बैठे, लेकिन राजनीति को इससे कोई परेशान नहीं होती। ऐसी राजनीति को केवल अपने मकसद से ही लेना-देना होता है, उसका क्या दूरगामी परिणाम पड़ेगा, राजनीति को इससे कोई भी लेना-देना नहीं होता।
पश्चिम बंगाल में आज यही हो रहा है।
आपको बता दें कि दुसहोबास का अर्थ होता है, दुश्कर या असाध्य, जिसका समाधान खोज पाना लगभग नामुमकिन हो। कानपुर देहात के माती केंद्रीय विद्यालय में प्रधानाचार्य रह चुकीं प्रीतिलता गोस्वामी बताती हैं कि इस कार्यक्रम के लिए तैयार किये गये होर्डिंग्स पर बिना किसी तामझाम के, और सहज और सुपाच्य भाव में लिखा गया है:- दु:सहवास।
इन होर्डिंग्स में उस शीर्षक के बाद केवल यही व्याख्या लिखी गयी है कि :- लड़ाई जारी रहेगी। जितने दिन नारी का निपीडन होता रहेगा, उतने दिन इसका प्रतिवाद करते रहेंगे हम। यह प्रतिवाद है, इसलिए हम जिन्दा हैं।
कहने की जरूरत नहीं यह सीरियल केवल कामकाजी ही नहीं, बल्कि घरेलू स्त्री की अस्मिता की लड़ाई की हिमायत करता है, पर अब बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के स्वार्थों खुद की लड़ाई लड़ने पर मजबूर कर दिया गया है । आपको बता दें कि जिस तरह करणी सेना के नाम पर चंद लोगों ने पद्मिनी फिल्म पर हंगामा खड़ा कर रखा है, ठीक उसी तरह इस दुसहोबास के खिलाफ आल इंडिया माइनॉरिटी फोरम ने अपना झंडा तान लिया है और वे उसे रोकने के लिए हर सीमा पार करने पर आमादा हैं।
पत्रकार शीतल पी सिंह बताते हैं कि पद्मिनी को बंगाल में रिलीज़ करने की दावत देकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चैंपियन बनी ममता बनर्जी ने तस्लीमा नसरीन के लिखे मेगा सीरियल “दुसहोबास” के बंगाल में प्रसारण पर रोक लगा दी है ! अभी औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है लेकिन चैनल समेत सभी पत्रकारों के इस बाबत सवाल पर गायब हैं ।
हालाँकि इस मेगा सीरियल के होर्डिंग्स आदि पर काफ़ी पैसा ख़र्च किया जा चुका है । FM और लोकल चैनलों पर भारी प्रचार हुआ पर कुछ मुस्लिम संगठनों ने तसलीमा नसरीन का नाम देखते ही “इस्लाम का अपमान” नोटिस कर लिया और ममता जी ने वही किया जिसके बारे में कोई शक नहीं !
यह सीरियल कामकाजी स्त्री की अस्मिता की लड़ाई कहता पर अब खुद की लड़ाई लड़ने पर मजबूर कर दिया गया है।