लंदन को पता नहीं, लखनऊ में रेल-अंडरपास बनाया हिन्‍दुस्‍तान अखबार ने

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: भांग छान कर पत्रकारिता करते हैं विचित्र-वर्द्धक यंत्र विज्ञापनपत्र वाले : रिपोर्टर तो दूर, सम्‍पादक भी पिनक की गद्दी पर बिराजमान, देखो तो कि क्‍या छाप दिया : भारत में पहली ट्रेन सन-1853 में मुंबई से थाणे तक 34 किमी की दूरी के बीच चली :

कुमार सौवीर

लखनऊ : पहले यह मजाक सुन लीजिए। वैसे यह मजाक नहीं है, बल्कि हिन्‍दुस्‍तान अखबार की खिल्‍ली भर ही है। तो खबर यह है कि यह तब की घटना है, जब भारत में अंग्रेजों की हुकूमत भी नहीं थी। केवल ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारी ही भारत में अपना धंधा पानी फैला रहे थे। यह तब की बात है जब दुनिया में पहली बार लंदन में एक प्रेम ट्रेन चली थी। लेकिन यह केवल लोगों की गलतफहमी ही है, या फिर इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने वालों की साजिश, यह तो पता नहीं है। लेकिन सच बात यही है कि दुनिया में सबसे पहले भारत में ट्रेन चली थी, और वह भी लखनऊ से श्री गणेश हुआ था रेलवे का। कोई भी यकीन नहीं करेगा कि यह तब की घटना है जब दुनिया को रेल के बारे में कोई जानकारी तक नहीं थी। अलहाम तक नहीं था दुनिया को इस बारे में। भारत ही नहीं, बल्कि लखनऊ में ट्रेन की सीटी चारों ओर बज रही थी। पटरिया बिछ चुकी चुकी थीं। धड़धड़ाती ट्रेनें दौड़ रही थीं, यात्रियों की धमाचौकड़ी चल रही थी। और इतना ही नहीं, लखनऊ के जलालपुर गांव के आसपास के लोगों की सुविधा के लिए रेलवे ने एक अंडरपास तक बना दिया था।

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पत्रकार

जी हां, इस बारे में कोई भी खबर लोगों को पता ही नहीं है। और तो और, सरकारी दस्तावेजों में भी यह कोई भी तथ्‍य दर्ज नहीं है। लखनऊ वालों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं। और दूर क्यों जाते हैं, अकेले रेलवे विभाग तक को इस बारे में कोई खबर तक नहीं मिल सकी है। मगर जो सच है, वह तो सच ही है। ठीक उसी तरह बाबा राम देव ने लाखों-करोड़ों पुराने सेंधा नमक के पहाड़ को खोज लिया था, और उसकी पैकिंग में लिख दिया था कि उसकी एक्‍सपायरी जनवरी-18 तक ही रहेगी। वह तो गनीमत थी कि टाइम पर ही बाबा रामदेव यह पहाड़ खोद लाये, वरना एक्‍सपायर हो चुका होता यह पहाड़। हा हा हा

मगर विचित्र लिंग-यंत्र वर्धक यंत्र विज्ञापन पत्र के तौर पर पूरी तरह स्‍थापित हो चुके हिन्‍दुस्‍तान अखबार के संपादक और रिपोर्टर को इस बारे में पूरी जानकारी है। आपको अगर यकीन नहीं है तो कल 29 नवंबर-17 वाले दिन का हिंदुस्तान अखबार बांच लीजिए जिसमें साफ-साफ लिखा है कि लखनऊ में अंग्रेजों ने 200 साल पहले एक अंडरपास बनाया था। इस अंडरपास के ऊपर से ट्रेने धड़धड़ाती हुई  आती जाती थी। इस अंडरपास के बगल में ही सिविल लाइन में भी बीत गई इतना ही नहीं यह अंडरपास बनने के कुछ ही बरस बाद पूरी तरह पट कर गायब हो गया। मगर अब उस का प्रकटीकरण हो गया है अरब यात्री ऊपर नीचे उतर है

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अब जरा पढ़ लीजिए वह सच, जो रेल के इतिहास में दर्ज है। विकीपीडिया भी इस सच की तस्‍दीक कर रही है। तो सच यह है कि भारत में रेलों का आरम्भ 1853 में अंग्रेजों द्वारा अपनी प्राशासनिक सुविधा के लिये किया गया था। परंतु आज भारत के ज्यादातर हिस्सों में रेलवे का जाल बिछा हुआ है और रेल, परिवहन का सस्ता और मुख्य साधन बन चुकी है। सन् 1853 में बहुत ही मामूली शुरूआत से जब पहली अप ट्रेन ने मुंबई से थाणे तक (34 किमी की दूरी) की दूरी तय की थी, अब भारतीय रेल विशाल नेटवर्क में विकसित हो चुका है। इसके 115,000 किमीमार्ग की लंबाई पर 7,172 स्‍टेशन फैले हुए हैं।

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