वेशभूषा से पशुओं को पहचानते हैं अमर उजाला के रिपोर्टर

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: हाथरस में पाये गये साढ़े तीन दर्जन गिनीपिग की पहचान के लिए तो संवाददाता ने नया रिकार्ड बना दिया : दावा किया नंगे गिनीपिग के कपड़ों से पहचानने का : जारऊ गांव के बाहर मिले थे यह गिनीपिग, कई जिन्‍दा निकले :

संवाददाता

हाथरस : अमर उजाला के रिपोर्टरों की काबिलियत को अगर देख लें तो आप उन्‍हें कोई राष्‍ट्रीय नागरिक सम्‍मान दिलाने के लिए प्राण-प्रण से जुट जाएंगे। वजह है प्राणियों की पहचान को लेकर उनके पास मौजूद अथाह ज्ञान-भण्‍डार, जो सामान्‍य नंगी आंखों से मुमकिन ही नहीं। लेकिन हाथरस में मौजूद अमर उजाला अखबार के रिपोर्टरों के पास उपलब्‍ध अलौकिक ज्ञान ने समाचार जगत में हंगामा खड़ा कर दिया है। चहुंओर जयजयकारा हो रहा है अमर उजाला के पत्रकारों का।

यह ताजा मामला है अमर उजाला के पत्रकारों का। दरअसल, 14 अप्रैल की सुबह यहां के जारऊ गांव के बाहर करीब चालीस प्राणी जमीन पर पड़े मिले थे। इनमें से कई का तो दम ही निकल चुका था, जबकि करीब एक दर्जन प्राणी जिन्‍दा ही मिले। शक्‍ल-सूरत से तो यह सारे प्राणी खरगोश ही लगे, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्‍होंने उन प्राणियों को खरगोश मानने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि यह प्राणी न तो खरगोश हैं और न ही खरहा।

इस घटना की खबर जंगल की आग की तरह आसपास के गांवों में फैल गयी। भारी भीड़ जुट गयी। इन प्राणियों की पहचान को लेकर अटकलें लगायी जाने लगीं। पत्रकार भी इसी बीच पहुंच गये, जिनमें से अमर उजाला के पत्रकर भी मौजूद थे। शुरूआत में तो पत्रकारों को जब किसी प्राणी की पहचान नहीं मिल पायी, तो अचानक अमर उजाला के रिपोर्टर ने हार कर अपने अपने दिव्‍य-ज्ञान के प्रकाश-सम्‍प्रेषण प्रक्रिया को अपनाया। इस प्रक्रिया के तहत उन्‍हें पता चल गया कि चूंकि इन प्राणियों की वेशभूषा अलग है, इसलिए उनकी वेशभूषा के आधार पर यह साबित कर दिया गया कि यह सारे प्राणी गिनीपिग ही हैं।

बाद में इस रिपोर्टर ने जब वन विभाग के अधिकारियों से बातचीत की तो पता चला कि यह जानवर खरगोश नहीं, बल्कि दक्षिणी अमेरिका में पाया जाने वाला विदेशी प्राणी गिनीपिग है। दक्षिणी अमेरिका में इसे पाला जाता है। अब यह प्राणी यहां कहां से आया और किसने इसे गांव तक पहुंचाया है, इसका जवाब विभागीय अधिकारियों के पास भी नहीं है। वनाधिकारी गौतम सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और देखा कि वहां पर करीब 28 गिनीपिग मृत अवस्था में पड़े हुए हैं, जबकि कुछ जीवित भी थे।

वनाधिकारी गौतम ने बताया कि यह प्राणी खरगोश नहीं, बल्कि गिनीपिग है और इन्हें खरगोश के नाम से ही लोग जानते हैं, क्योंकि यह प्राणी विदेशी है। इसे घरों में पाला जाता है। यह प्राणी वन्य जीव संरक्षण कानून के तहत नहीं आता। लिहाजा इसकी सूचना पशु चिकित्सा विभाग को दे दी गई। 10-12 की संख्या में जीवित बचे गिनीपिग को लोग पालने के लिए ले गए।

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