: अफसर-गाह में लाखों का काम फंसता है, तो पांव पखारते हैं पत्रकारों का। वह भी फ्री-फण्ड में : 25 हजार की पेशकश एसडीएम ने खारिज की, डीएम ने एक लाख को दुत्कारा : पत्रकारों से हजार में टरका देना चाहते हैं होशियार लोग : पत्रकार उल्लू के पट्ठे- एक :
कुमार सौवीर
लखनऊ : कुछ दिन पहले ही अचानक एक सुबह-सुबह मेरा मोबाइल फोन बजा। उंघाते हुए फोन उठाया और फोन करने वाले को जवाब में आवाज दी:- नमस्ते। कुमार सौवीर बोल रहा हूं।
सर प्रणाम। सो रहे हैं क्या?
नहीं, नींद टूट चुकी है। अब चैतन्य हूं, अब आप आदेश कीजिए: मैंने जवाब दिया।
अरे सॉरी सर, सॉरी। आपको डिस्टर्ब किया।
नहीं कोई बात नहीं। मैंने कहा न कि मैं अब चैतन्य हो चुका हूं।
ओ हो। बस यूं ही आपकी याद आयी। सो फोन कर लिया। सोचा आपसे बातचीत हो जाएगी।
कोई वजह भी तो होगी।
न न न न। सिर्फ यह बताना था कि मैं जब से मैंने आपकी खबरों को पढ़ना शुरू किया है, दिमाग का दही जम गया। क्या तेवर है। साहस का तो कोई जवाब ही नहीं। किसी से भी नहीं डरते हैं आप सर। होना भी चाहिए। पत्रकार भी क्या, जो डर-डर कर लिखे। फिर तो वह दलाल हुआ। और जो दलाल है, वह पत्रकार कैसे हो सकता है। है कि नहीं?
जी
सर मैं तो अपने सारे मित्रों तक को बता चुका हूं कि आप क्या-क्या कमाल की बातें लिखती हैं। पढ़ते ही लोगों की तो वॉट ही लग जाती होगी आपकी मैग्जीन मेरी बिटिया डॉट कॉम का नाम सुनते ही। खि खि खि। है कि न सर?
यह मैग्जीन नहीं, पोर्टल है।
पता है सर, पता है। नाम याद है, देखा आपने, याद है मुझे सब। लेकिन आपसे एक निवेदन है, रिक्वेस्ट कि कभी आइये आप मेरे यहां। आप तो आ चुके हैं न मेरे यहां
जी
फिर क्या, आइये। प्लीज। मेरी विनती है आपसे।
आऊंगा
कब?
देखिये, आपके यहां आने का मतलब होता है कम से कम पांच-सात हजार का खर्चा। ऐसे में मैं गरीब पत्रकार इतना खर्चा कैसे उठा पायेगा। और आप लोग बातें तो बहुत करते हैं, कभी मेरी बिटिया डॉट कॉम को भिक्षा भी तो दिया कीजिए।
अरे कसम से सर, मैं तो इसीलिए तो फोन किया है आपको, सिर्फ इसी बात के लिए। कसम से कहता हूं सर कि पिछले पांच बरस से लगातार सोच रहा हूं कि आपकी मैग्जीन के लिए सहयोग के लिए देना ही है, देना है तो देना ही है। इसके लिए एक हजार रूपया तब से ही अलमारी में सुरक्षित रख रखा है। बोलिये कि कब आ रहे हैं?
जब भी आया, बता दूंगा
बड़ी कृपा होगी, सर इसी बहाने आपसे बात भी हो जाएगी और आपको सहयोग राशि भी अदा कर दूंगा। जो दायित्व मेरा है, वह देना है। है कि नहीं। हा हा हा खिखिखि।
ओ के। बता दूंगा। और कुछ खास बात तो नहीं
नहीं सर, नहीं। सिर्फ आने से दो-एक दिन पहले खबर दे दीजिएगा मुझे।
ओके, बाय
अररररररररररर्रे सर। आपसे एक बात भी कहनी है।
तो फिर अब तक क्यों नहीं बताया। बोलिये, बताइये।
सर एक समस्या में पड़ गया हूं। आप चाहेंगे तो उसका निवारण हो जाएगा। बड़ी कृपा होगी आपकी। बस आपका एक इशारा हुआ तो समझिये कि गंगा स्नान हो जाएगा मेरा।
अरे अपनी समस्या तो बताइये
समस्या नहीं, समस्या नहीं। एक चिरकुट प्राब्लम है।
क्या?
प्राब्लम नहीं सर, आपके लिए तो चुटकी भर का इशारा जैसा है। हां, हम जैसों के लिए — मर जाती है इसी दिक्कतों से।
अरे बात तो बताइये
सर, बात यह है कि हमारे यहां के एसडीएम और डीएम को मुझसे कोई नाराजगी है। मेरी —- मैं डण्डा डाल रखा है इन हरामजादों ने। बेहाल कर दिया मुझको इन लोगों ने। अब आप ही मुझे इस समस्या से बचा सकते हैं सर।
और उसके बाद जो किस्सा मुझे उन सज्जन ने मुझसे बयान किया, जरा उस पर एक नजर डालने की जहमत फरमाइये। फिर सोचिये कि इसमें कौन में से कौन हरामी है, एसडीएम, डीएम, वकील, पत्रकार, या फिर यह वही सज्जन जो बाकी लोगों को हरामी करार देने पर आमादा हैं। उस घटना को तफसील से पढ़ने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:-
(अपने आसपास पसरी-पसरती दलाली, अराजकता, लूट, भ्रष्टाचार, टांग-खिंचाई और किसी प्रतिभा की हत्या की साजिशें किसी भी शख्स के हृदय-मन-मस्तिष्क को विचलित कर सकती हैं। समाज में आपके आसपास होने वाली कोई भी सुखद या घटना भी मेरी बिटिया डॉट कॉम की सुर्खिया बन सकती है। चाहे वह स्त्री सशक्तीकरण से जुड़ी हो, या फिर बच्चों अथवा वृद्धों से केंद्रित हो। हर शख्स बोलना चाहता है। लेकिन अधिकांश लोगों को पता तक नहीं होता है कि उसे अपनी प्रतिक्रिया कैसी, कहां और कितनी करनी चाहिए।
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