दो कौड़ी के अपराधियों को आईएस का कारिन्‍दा बना दिया पत्रकारों ने

सैड सांग

: मुंगेर की रद्दी पिस्‍तौलें बेचने वाले को आईएस का एजेंट करार दिया : हिन्‍दुस्‍तान ने शैलेंद्र को छापा, मगर बाकी ने परहेज किया : पत्रकारों से पूछिये कि उन्‍होंने क्‍यों गोल कर दिया शैलेंद्र का नाम : रिहाई मंच जैसे लोग भी लगे बंदरों की तरह खौखियाने :

कुमार सौवीर

लखनऊ : हद हो गयी है ऐसी रिपोर्टिंग की। पूरे देश को पता है कि मुंगेर में देसी पिस्‍तौलों की फैक्‍ट्री चलती है, जहां छिटभैया टाइप अपराधी अपनी साजिशें पूरा करने के लिए ऐसी घटिया पिस्‍तौलों को औने-पौने दामों में खरीदते हैं। जाहिर है कि ऐसी देसी पिस्‍तौलें दूर से और देखने वाले अनाडि़यों को तो निहायत खतरनाक असहला का अहसास कराती हैं, लेकिन इनकी क्षमता निहायत घटिया ही होती हैं। न जाने कब यह असफल हो जाएं, इनको बनाने वाले फैक्‍ट्री वालों को भी इसकी गारंटी नहीं होती है।

लेकिन लखनऊ में सैफुल्‍लाह नामक अपराधी को पुलिस एनकाउंटर में ढेर कर देने वाली घटना के बाद से ही तो पत्रकारों और अखबारों की पौ-बारह हो गयी है। जिसकी जो समझ में आ रहा है, वह अपनी दिमागी विष्‍ठा अपने पाठकों तक परोसने की होड में है। औरया से पकड़े गये एक शैलेंद्र सिंह की गिरफ्तारी के बाद जो हरकतें इन अखबारों ने की हैं, उसने पत्रकारों और उनके अखबारों की विश्‍वसनीयता पर गहरे सवाल खड़े कर दिये हैं।

हैरत की बात है कि शैलेंद्र सिंह की गिरफ्तारी और उसके साथी रॉकी राणावत के साथ सैफुल्‍लाह जैसे अपराधियों के रिश्‍तों पर राजधानी के अखबारों ने बेहद चिन्‍ताजनक चुप्‍पी साधे रखी है। हिन्‍दुस्‍तान अखबार ने शैलेंद्र सिंह को दबोचे जाने की खबर लिखी है, लेकिन उसमें आईएस के लड़ाकुओं को पिस्‍तौल मुहैया कराने की बात की है। यानी साबित कर दिया है कि सैफुल्‍लाह जैसे अपराधी कुख्‍यात आईएस के जंगजू लड़ाके हैं।

इस अखबार में जिस पिस्‍तौल के बारे में खबर छापी है, वह मुंगेर की है। घटिया और बेहद सस्‍ती। सवाल यह है कि आईएस क्‍या वाकई अपने खतरनाक मिशन के लिए ऐसी घटिया और सस्‍ती देसी पिस्‍तौलों का इस्‍तेमाल करेगा। जवाब है कि नहीं। हर्गिज नहीं। अगर इतना ही बचकाना निशाना होता आईएस का, तो वह पूरी दुनिया में आतंक का पर्याय नहीं बन पाता। लेकिन अखबारों ने इसमें बाजी मार दी और सैफुल्‍ला जैसे दो कौड़ी के अपराधियों को आईएस के स्‍तर पर पहुंचा कर लखनऊ और पूरे भारत को दहला देने की साजिश कर दी।

हिन्‍दुस्‍तान ने शैलेंद्र की गिरफ्तारी की खबर छापी है, विस्‍तार से। जागरण ने केवल पांच लाइनें छापी हैं, जबकि अमर उजाला समेत किसी भी प्रमुख अखबार ने इस खबर को तनिक भी तवज्‍जो नहीं दी।

चलिये, पूछिये इन अखबारों और उनकी पत्रकारों से, कि आखिर माजरा क्‍या है।

उधर अपराधियों को बेदाग, निरीह, निर्दोष और मासूम साबित करने वाली रिहाई मंच जैसी फैक्‍ट्री के लोग भी इस पूरे मसले पर ठीक उसी तरह पगलाये बंदरों की तरह खौखियाने लगे हैं, जैसी हरकतें इस मसले पर पत्रकारों ने दिखायी हैं।

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