ललई ने सपा-सरकार बनवाई, पारस ने ललई को छीला

दोलत्ती

: हरेक संभावित नेता को चबा डाला पारसनाथ यादव की चालों ने : क्‍या जगदीश सोनकर, और क्‍या केपी, और क्‍या ज्‍वाला। सब ढक्‍कन ही रहे : कसक बनी रही कि बेटे लकी को विधानसभा नहीं पहुंचा सके :
कुमार सौवीर
लखनऊ : एक थे हाजी अफजाल अहमद। सन-95 में नगर सीट से एमएलए बने, लेकिन अगले ही दौर में उनकी राजनीतिक हमेशा-हमेशा के लिए खत्‍म होने की गोटियां पारसनाथ ने चित्रगुप्‍त से लिखवा लिया। उधर दो मंत्री रह चुके दीपचंद सोनकर शाहगंज की सीट में पारसनाथ के दांवों में ऐसा पटका कि वे न घर के रहे न घाट के। माना जाता है कि पारस के दांव ने दीपचंद को पोलिटिकल-कोमा में डाल दिया।

बताते हैं कि दीपचंद्र की इस राजनीतिक हत्‍या में शहर नगर पालिका के सभासद और नगर सपा कमेटी के उपाध्‍यक्ष मकालू चौरसिया ने पारसनाथ और शिवपाल सिंह यादव के साथ न जाने क्‍या खेल किया कि दीपचंद की अच्‍छी-खासी चमकती-दमदमाती ढिबरी अचानक साजिशों की एक ही फूंक में बुझ गयी। और इस तरह खानपुर-कुत्‍तूपुर ग्रामसभा के प्रधान जगदीश सोनकर को सपा का टिकट दे दिया गया।

अब यह दीगर बात है कि जगदीश लगातार चुनाव तो जीतते रहे, लेकिन कभी भी वे सपा की राजनीतिक घेरे को तोड़ नहीं पाये। या यूं कहें कि उनमें साहस या क्षमता भी नहीं थी। जगदीश सोनकर को यह भी लगता रहा कि उन्‍हें जो भी मिल गया है, वही बहुत है। न उनको उससे ज्‍यादा के सपने थे, न साहस। उनकी पूरी राजनीति अब तक तो कुत्‍तूपुर और आसपास तक ही सिमटी हुई दिखती है। और सिर्फ इतना ही नहीं, इस इलाके में जमीन पर कब्‍जा को लेकर जगदीश सोनकर के परिवारीजनों ने अभी कुछ ही समय बाकायदा कहर बरपाया था। महिलाओं को इन गुंडों ने बुरी तरह डंडों से पीटा और बंदूकों से ठेलते हुए गालियां भी दीं। स्‍थानीय लोगों के मुताबिक जगदीश सोनकर की हैसियत समाजवादी पार्टी में एक बबुआ से ज्‍यादा हरगिज नहीं है। उनकी रंगबाजी केवल अपने घर के आसपास तक ही सिमटी रहती है।

अभी कोई चार बरस पहले सत्‍ता के नशे में चूर जगदीश सोनकर की एक जिप्‍सी ने जिला महिला अस्‍पताल की एक एचआईवी कौंसिलर डॉक्‍टर सीमा सिंह की एक्टिवा गाड़ी पर जोरदार टक्‍कर मार दी थी। यह जिप्‍सी जगदीश सोनकर के बच्‍चों को स्‍कूल और ट्यूशन पहुंचाने के लिए तैनात थी। लेकिन हैरत की बात है कि इस जिप्‍सी का नम्‍बर जौनपुर के बजाय उत्‍तराखंड के देहरादून का था। सूत्र बताते हैं कि एक ठेकेदार ने यह जिप्‍सी विधायक सोनकर को सप्रेम भेंट की थी। बहरहाल, यह मामला कोतवाली तक पहुंचा, लेकिन विधायक को मामला देख कर पुलिस ने कोई भी कार्रवाई नहीं की। बावजूद इसके कि यह घायल डॉक्‍टर कई दिनों तक बिस्‍तर पर रही।
उधर बताते हैं कि मडियाहूं में पारसनाथ यादव की नाल गड़ी हुई है। वजह यह कि उन्‍होंने अपनी राजनीति इसी गृह-क्षेत्र इलाके से की। सन-09 में पारसनाथ यादव सांसद चुने गये। वे चाहते थे कि उनकी खाली सीट पर उनके बेटे लकी को बिठा दिया जाए। लेकिन सूत्रों के अनुसार उस दौर में मडि़याहूं कोतवाली का एक कोतवाल ने खेल कर दिया। उससे शिवपाल सिंह यादव से खासी करीबी थी। उसने यहां की ब्‍लॉक प्रमुख श्रद्धा यादव को लेकर न जाने क्‍या समझा दिया शिवपाल सिंह यादव को, कि टिकट लकी यादव के बजाय श्रद्धा यादव को मिल गया। बुरी तरह तिलमिला पड़े पारसनाथ यादव। लेकिन पारसनाथ खून के घूंट पीकर रह गये, लेकिन तब तक पांसे बदले जा चुके थे। अगली बार लकी यादव को टिकट तो दिया गया, लेकिन श्रद्धा यादव बागी हो गयीं। नतीजा यह सीट अपनादल की डॉ लीना यादव के आंचल में चली गयी।
आपको बता दें कि 25 अगस्‍त-03 में खुटहन क्षेत्र के दबंग विधायक ललई यादव ने 18 बसपाई विधायकों को तोड़ कर सपा की सरकार बनवाई थी। ईनाम के तौर पर मुलायम ने ललई को राज्‍यमंत्री का ओहदा दे दिया। लेकिन हैरत की बात यह रही कि यह बात भी पारसनाथ को हजम नहीं हुई। उन्‍हें लगा कि इस तरह अगर ललई को तरजीह देती रही जाएगी, तो उनका कद ही दो-कौड़ी का हो जाएगा। इसलिए ललई की लाख छटपटाहट के बावजूद ललई को पारसनाथ यादव ने बोनसाई से ज्‍यादा बड़ा कद बढ़ाने का मौका नहीं दिया।
मछलीशहर में दो बार ज्‍वाला प्रसाद यादव सपा से विधायक बने। माना जाता था कि ज्‍वाला प्रसाद अगर मैदान में हैं, तो फतह सिर्फ ज्‍वाला की ही होगी। लेकिन पारसनाथ ने ज्‍वाला की ज्‍वाला को भी एक ही फूंक में बुता डाला। लल्‍लन प्रसाद यादव तो मुलायम-कृपांक से एमएलए बने थे। बताते हैं कि न तो लल्‍लन में क्षमता थी, और न पारसनाथ उनको भाव ही देते थे। इसी में खप गये लल्‍लन प्रसाद यादव।
अब बचे डॉ केपी यादव। बीएचयू से पढ़ेलिखे थे। जहीन, मिलनसार, और राजनीतिक समझदारी से लैस। युवा जोश भी बेहिसाब था। मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव का चरण-चुम्‍बन में भी कोई कोताही नहीं थी। लेकिन बात-बात पर दूसरों के साथ रिसियान मेहरारू यानी नाराज घरवाली की तरह का व्‍यवहार करना उन पर काफी भारी पड़ने लगा। कई और  गड़बड़ी भी रहीं। मसलन, डॉ केपी यादव का जौनपुर के बजाय सिर्फ बनारस में ही धोती-कुर्ता रखना नुकसान कर गया। और जब डॉ यादव ने जौनपुर की दहलीज में घुसने की कोशिश की, तो पारसनाथ ने उनकी राह में बबूल की पौधशाला ही खोल डाली। जवाब खोजने के लिए डॉ केपी यादव आप पार्टी में गये, लेकिन भारी रकम खर्च करने के बावजूद ढक्‍कन ही साबित हुए। नतीजा, यह कि वे आजकल फिर समाजवादी पार्टी की चाकरी में जुट गये हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि पारसनाथ सपा में पूर्वांचल में दिग्विजयी नेता था, लेकिन उनका जीवन भी यही कसक बनी रही कि वे अपने बेटे लकी को विधानसभा नहीं पहुंचा सके। इसके लिए जाहिर है कि लकी यादव का आपराधिक इतिहास ही जिम्‍मेदार है। वह किस्‍सा भी सुन लीजिए। सन-04 में तो जेसीज चौराहे पर एक ट्रक ड्राइवर को लकी यादव ने लाठियों से अधमरा कर दिया था। पारसनाथ तब मंत्री थे। सन-14 को लकी ने शराब में धुत्‍त होकर एक विवाह समारोह में आर्केस्ट्रा पार्टी में असलहे की तान पर डिस्को कर दिया। मनपसंद गाना ‘तमंचे पर डिस्को’ न सुनाए जाने से नाराज लकी यादव ने फायरिंग शुरू कर दी, जिससे एक 18 वर्षीय युवक दीपक यादव को गोली लग गयी। इसके पहले भी सन-12 में यहां के बीआरपी कालेज में एक दारोगा से भी लकी यादव ने मारपीट की थी।

कुछ भी हो, पारसनाथ यादव में अपने लिए निष्‍ठुर राजनीति का सबक तो खूब सीखा, रूपया कमाने की अदा भी खूब समझ ली, मंचों पर मुलायम को अपना महबूब बोलने की शैली तो अपना ली, बेहिसाब जमीन कब्‍जाने की कला भी सीख ली। लेकिन पारसनाथ यादव अपने बेटे, अपने परिवार और अपने कुटुम्‍ब को तमीज और संस्‍कार नहीं दे पाये। इसकी जरूरत भी पारसनाथ यादव को नहीं थी। जब बिना संस्‍कार और शालीनता के ही दौलत और शोहरत मिल सकती है, तो ऐसी कोशिशें क्‍यों की जाएं। यही वजह है कि उनके तीन बेटों में से बड़ा लकी यादव वाकई मवाली बन गया। बचपन से ही उसका नामकरण पुलिस की डायरी में दर्ज हो गया। दूसरा बेटा वेद यादव क्रिकेट का शौकीन था। एक बार अपने मंत्री पिता के नाम पर उसने मेरठ जाने का सरकारी कार्यक्रम बनाया औरप्रोटोकॉल की सूचना भी मेरठ प्रशासन समेत सचिवालय के सभीसंबंधी कार्यालयों तक को भेज दी।
हैरत की बात है कि इस वेद यादव ने मेरठ पर पहुंच कर बाकायदा गार्ड ऑफ ऑनर ले लिया और बाद में अफसरों की मीटिंग भी ले ली। लेकिन इसी बीच एक अफसर ने यह हरकत का खुलासा मीडिया से कर दिया तो हंगामा खड़ा हो गया। नतीजा यह हुआ कि वेद यादव को वहां रिक्‍शें से अपना मुंह छिपा कर भागना पड़ा। लेकिन चूंकि मुलायम सिंह यादव की सरकार थी, इसलिए मामला निपटा लिया गया।
यह मामला ठीक उसी तरह निपटाया गया, जैसे लखनऊ के मोहनलालगंज के सरकारी स्‍कूल में एक महिला की नंगी लाश मिली और तब के एसएसपी नवनीत सिकेरा, डीजी सुतापा सान्‍याल और गृह सचिव समेत आला अफसरों तक ने मामला दबा दिया। ठीक उसी तरह जैसे नोएडा के एसएसपी वैभव कृष्‍ण का मामला दब गया। ठीक उसी तरह जैसे वैभव कृष्‍ण की शिकायत पर रूपयों कालेनदेन लेने वाले चार आईपीएस अफसरों का मामला दब गया। ठीक उसी तरह जैसे बुलंदशहर के जिलाधिकारी के घर से बरामद 49 लाख रूपयों की नकदी का मामला दब गया। ठीक उसी तरह जैसे देवरिया में गिरिजा तिवारी को वेश्‍यावृत्ति का सरगना साबित करने की साजिश करने वाले वाले रोहिन पी कनई को योगी आदित्‍यनाथ के हस्‍तक्षेप कर निपटा दिया गया। ठीक उसी तरह जैसे डीजीपी ओपी सिंह की करतूतों पर सरकार पर्दा डाले रही। ठीक उसी तरह जैसे लखीमपुर खीरी के दुधवा जंगल में रात के वक्‍त अपने दोस्‍तों के साथ शोर-शराबा, डीजी और मस्‍ती-हंगामा करने वाली डीएम किंजल सिंह का मामला दबा दिया गया। ठीक उसी तरह जैसे एपल कम्‍पनी के एरिया मैनेजर विवेक तिवारी को गोमतीनगर में पुलिसवाले ने गोली मार कर मार डाला, लेकिन तब का डीजीपी, एसएसपी और डीएम विवेक तिवारी की पत्‍नी और उसकी मासूम बच्‍ची को डांट-फटकार कर मामला दबाने की साजिश करता रहा। ठीक उसी तरह जैसे लखनऊ के दर्जनों पेट्रोल पंपों पर ईंधन चोरी करने वाले मामलों को दबा दिया गया है। ( समाप्‍त )

(पारसनाथ यादव, यानी पूर्वांचल का एक दिग्‍गज समाजवादी पार्टी का पहरूआ। छह बार विधायक, तीन बारमंत्री, और दो बार सांसद। आज खबर मिली है कि पारसनाथ यादव की मृत्‍यु हो गयी है। वे कैंसर से पीडि़त थे। लेकिन उनका जीवन पूर्वांचल में एक निहायत शांत-भाव में स्‍वार्थी राजनीति में कुटुम्‍ब की समृद्धि और उसके लिए जघन्‍य अपराधियों और शातिर बदमाशों को प्रश्रयदाता से ज्‍यादा नहीं रहा। राजनीति में अपनी दूकान चमकाने के लिए पारसनाथ ने एक दांव चलाया, जिससे सपा में बड़े नेता भी उनके दांव में चारोंखाने चित्‍त हो गये। एक नारा लगवा दिया कि पारसनाथ यादव यूपी के मिनी मुख्‍यमंत्री हैं।)

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