इंडिया टुडे के प्रभु चावला को मां-बहन तौलते रहे अमर

दोलत्ती

: दलाल कभी झगड़ा नहीं मोल लेता, लेकिन अमर सिंह तो अमर थे : प्रभु चावला सत्‍ता के गलियारे में, अमर घर से सत्‍ता सम्‍भालते थे : दलाल बनाने में इंडिया टुडे का बड़ा योगदान था :

कुमार सौवीर

लखनऊ : जहां तक मुझे याद आ रहा है, इंडिया टुडे ने करीब तीन दशक पहले अपनी एक कवर स्‍टोरी में सत्‍ता के दलालों पर खबर तैयार की थी। इसमें पत्रकारों समेत कई दीगर क्षेत्रों के बड़े दलालों पर तो विस्‍तार से जिक्र था ही, लेकिन अव्‍वल नम्‍बर था अमर सिंह का। उस स्‍टोरी में कुछ इस तरह दर्ज था कि बड़े नेताओं-नौकरशाहों की पार्टियों में विदेशी कपड़े से तैयार अपने गले बंद के कोट-पैंट की ऊपरी जेब में मोंट-ब्‍लैंक का बेशकीमती पेन खोंसे हुए, आंखों पर रेबैन का कीमती काला चश्‍मा चढ़ाये, और शैम्‍पेन का ग्‍लास थाम कर थोड़ी-थोड़ी देर में लोगों के कान में खुसफुस करने वाले शख्‍स को आसानी से पहचाना जा सकता है कि वह वह आदमी अमर सिंह है, जो सत्‍ता के शीर्षस्‍थ दलाल की होड़ में हैं।
लेकिन यह एक निगेटिव स्‍टोरी नहीं थी, जिससे अमर सिंह की छवि पर कोई प्रतिकूल या नकारात्‍मक प्रभाव पड़ पाता, और उनकी छवि हमेशा-हमेशा के लिए मिटियामेट हो जाती।

कहने की जरूरत नहीं कि पहली नजर में ही कोई अनजान व्‍यक्ति भी इंडिया टुडे की इस खबर को फौरन पहचान सकता था कि वह एक प्‍लांटेड स्‍टोरी थी। इसी स्टोरी ने अमर सिंह को दलाली के ऊंचे पायदान तक पूरी तरह स्‍थापित कर दिया था। एक झटके में ही इस खबर से रातोंरात अमर सिंह की पहचान सत्‍ता के एक सफल दलाल की बन गयी थी। और पत्रकारिता, अफसरशाही और राजनीति से जुड़े या उसकी समझ रखने वाले लोगों को खूब पता होता है कि ऐसी स्‍टोरी बाकायदा लिखवायी जाती हैं। और उसे लिखवाने में मोटी रकम खर्च की जाती है। यानी अमर सिंह ने अपनी छवि को पुख्‍ता करने के लिए इस खबर के लिए मोटा भुगतान किया होगा। यानी अमर सिंह को खूब पता था कि नकारात्‍मक खबरों को कैसे अपने पक्ष में मोल्‍ड किया जा सकता है। फिर तो मान लीजिए कि अमर सिंह एक चमत्‍कारिक दलाल था, जिसका दिमाग पत्रकारों से भी ज्‍यादा चलता था और इस तरह वह दलालों का भी सिरमौर था।

अपने इसी गुण के बावजूद अमर सिंह सिर्फ एक लोंदा-महादेव ही नहीं था, जिसकी रीढ़ ही नहीं होती। यानी अमर बोन-लेस नहीं था। महान दलाल होने और अभूतपूर्व गुण-सम्‍पन्‍न होने के बावजूद दलाल को गुस्‍सा भी आता था। मेरे पास ऑडियो क्लिप है, जिसमें दो दिग्‍गज लोगों की बातचीत चल रही है। यह बातचीत दो दिग्‍गज शख्सियतों के बीच की है। इसमें एक तो देश के सबसे बड़ों में से एक पत्रकार था, जबकि दूसरा दलाली की दुनिया का सिरमौर लेकिन राजनीति, नौकरशाही, पत्रकारिता, फिल्‍म और फर्जी धंधों के शाहंशाहों का सबसे बड़ा गॉडफॉदर था। यह पत्रकार तब इंडिया टुडे और आजतक न्‍यूज चैनल का संपादक प्रभु चावला था, जबकि दूसरा अमर सिंह खुद को उद्योगपति बताता था, जहां एक कील तक नहीं बनती। प्रभु चावला की पहुंच सत्‍ता की गलियारों में खासी धंसी हुई थी, जबकि अमर सिंह अपने मोबाइल और अपने घर से ही सत्‍ता, पत्रकारिता, अफसरशाही, फिल्‍मकारों और उद्योगपतियों को अपनी उंगलियों से नचाया करता था।

बहरहाल, यह घटना तब की है जब अमर सिंह का सूरज देश की राजनीति में दहकता था। यानी करीब 15-20 बरस पहले। एक दिन प्रभु चावला ने अमर सिंह को फोन किया। नाम पूछने के बाद ऑपरेटर ने फोन को अमर सिंह के फोन पर फॉरवर्ड कर दिया। करीब 15 मिनट की प्रतीक्षा के बाद अमर सिंह लाइन पर आये। प्रभु चावला ने नमस्‍ते किया, तो अमर सिंह ने आव देखा न ताव, दनादन गालियों की बौछार फेंकना शुरू कर दिया। प्रभु चावला गिड़गिड़ाते रहे, और अमर सिंह गालियां देते रहे। दरअसल, प्रभु चावला नहीं चाहते थे कि उस दिन शाम चार बजे होने वाली अपनी प्रेस-कांफ्रेंस में अमर सिंह बोलें। सच तो यही था कि उस दिन अमर सिंह तो प्रभु चावला और इंडिया-टूडे को नंगा करना चाहते थे, और प्रभु चावला गिड़गिड़ा रहे थे। उस वक्‍त अमर सिंह किसी दलाल की तरह नहीं, बल्कि आक्रोश से भरे एक इंसान की तरह दिख रहे थे। उस प्रभु चावला को नंगा कर रहे थे अमर सिंह, जिसके सामने गिड़गिड़ाते हुए प्रभु चावला ने अपनी छवि एक महान सत्‍ता के दलाल को स्‍थापित करती स्‍टोरी प्‍लांट करवायी हुई थी।

अमर सिंह के बारे में लोग चाहे कुछ भी कहते रहें, लेकिन मेरे अनुभवों के हिसाब से एक बेमिसाल शख्सियत थे अमर सिंह। ऐसे वक्त में जब राजनीति और नौकरशाही ही नहीं, पत्रकारिता भी एक घिनौनी दलाली से कम नहीं रह गयी है, अमर सिंह वाकई एक श्रेष्ठ दलाल थे। राजनीति, नौकरशाही और पत्रकारिता तो केवल अपनी तिजोरी भरने में जुटी रहती है, बेशर्मी और बेहयाई के साथ। मगर खुद का आँचल और पिंडलियाँ छुपाने के अभिनय के साथ। लेकिन अमर सिंह सीना ठोंक कर दलाली करते थे। लेकिन सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि अपने मित्रों के लिए जिये। उन मित्रों के लिए, जो कभी भी अमर सिंह के हितैषी या मित्र ही नहीं बने। या सिर्फ अमर सिंह को कंडोम की तरह इस्‍तेमाल करते रहे।

अमर सिंह को श्रद्धांजलियां के तौर पर अगले अंक में हम आपको बतायेंगे कि क्‍या जीवन था अमर सिंह का।

 

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