बीमार जज ने दिया इस्‍तीफा। इलाज सरकार से नहीं, मैं खुद कराऊंगा

सक्सेस सांग

: राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग के वरिष्‍ठ सदस्‍य आलोक बोस बन गये लाजवाब नजीर : इसके पहले सरकार ने आलोक को प्रदेश के उप-लोकायुक्‍त पद पर तैनाती की सिफारिश भी की थी :  सरकारी सेवा तो सरकारी दायित्‍व-निर्वहन के लिए है, निहित-स्‍वार्थों के लिए नहीं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सरकारी मलाई चाटने की आदत किसी अफीम की तरह होती है। प्राण निकल जाए, मगर आदत छूटती ही नहीं। वजह है मोटी तनख्‍वाह, गाड़ी-घोड़ा, नौकर-चाकरों का फौज-फाटा, फोन-शोन, फर्शी सलाम का मजा, हुक्‍म करने का घमण्‍ड, ऊपरी कमाई और बीमारी-शीमारी के वक्‍त सरकारी खजाने से निकालने की सहूलियतें। बस यही सब तो वह मजा-मस्‍ती होती है, जिसकी लालच में सरकारी अमले के किसी भी कर्मचारी-अफसर अपने आप को सरकारी खजाने के खूंटे से बांधे रखता है। किसी लतिहड़ मदकची-अफीमची की तरह।

लेकिन आलोक बोस उनमें से शामिल नहीं हैं। जिन्‍दगी भर उन्‍होंने अपने कर्तव्‍य को तनिक भी मजाक बनाने नहीं दिया। जो तयशुदा सरकारी रकम और सुविधाएं उन्‍हें अनुमन्‍य थीं, उससे तनिक भी टस-से-मस नहीं किया आलोक ने। और आज अपनी जिन्‍दगी के 65 वें बरस में भी वे अपने नियम-निष्‍ठा से तनिक भी नहीं खिसके हैं। ताजा खबर है कि उन्‍होंने राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग से त्‍यागपत्र दे दिया है। वजह है उनकी बीमारी। अपने इस्‍तीफे में आलोक बोस ने साफ लिखा है कि वे इस समय वे बीमार हैं, और ऐसी हालत में वे अपने सरकारी दायित्‍वों का निर्वहन कर पाने में खुद को असमर्थ समझ रहे हैं। नतीजा, सरकार ने उनका इस्‍तीफा मंजूर कर लिया है।

जी हां, न्‍यायपालिका ही नहीं, सरकार और प्रशासनिक दायरों में भी आलोक बोस का नाम खूब जाना-पहचाना जाता है। न्‍यायपालिका में ज्‍यूडिशियल मैजिस्‍ट्रेट से लेकर बाराबंकी के जिला और सेशंस जज से लेकर हाईकोर्ट के रजिस्‍ट्रार जैसे ओहदे पर अपना नाम खूब कमाया है आलोक ने।

सन-12 में वे बाराबंकी के जिला जज के पद से सेवानिवृत्‍त हो गये। इसके बाद 11 मार्च-13 उन्‍हें राज्‍य सरकार ने राज्‍य उपभोक्‍ता प्रतितोष आयोग के सदस्‍य के पद पर नियुक्‍त किया, जिसे सामान्‍य बोली में उपभोक्‍ता फोरम कहा जाता है। पांच साल के सेवा-अवधि वाले इस दायित्‍व वाले इस पद पर उन्‍होंने 13 मार्च-13 को ज्‍वाइनिंग दी। अपने इस नये कार्य-दायित्‍व के दौरान आलोक बोस ने कई ऐसे फैसले दिये जो माइल-स्‍टोन माने जाते हैं।

फ्रेंट-कट दाढ़ी रखने वाले आलोक बदन से भी लम्‍बे-तगड़े, दुबले-पतले और मजबूत कद-काठी के रहे हैं। लेकिन हाल ही उन्‍हें हृदय रोग हो गया। अपनी सारी जांचें कराने के बाद आलोक बोस को पता चल गया कि इस रोग का इलाज लम्‍बा चलेगा और उस पूरे दौरान वे अपने शासकीय दायित्‍वों को पूरी ईमानदारी से नहीं निपटा पायेंगे। ऐसी हालत में उन्‍होंने तय किया कि वे अपने पद से इस्‍तीफा दे दें। उन्‍होंने अपना त्‍यागपत्र दे दिया, जिसे हाल ही राज्‍य सरकार ने उनका इस्‍तीफा मंजूर कर लिया है।

कहने की जरूरत नहीं कि इस्‍तीफा देना आलोक बोस की नैतिक जिम्‍मेदारी थी। वे चाहते तो अवकाश पर जा सकते थ‍े, अवकाश न होता तो वे लीव-विदाउट पे पर जा सकते थे। उस के बाद उनके इलाज पर आने वाला सारा खर्चा सरकार ही उठाती।

लेकिन आलोक बोस ने ऐसा नहीं किया।

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