ब्रजलाल। नाम एक बहादुर पुलिस अफसर का

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: सपा सरकार में जितनी छीछालेदर हो सकती थी, ब्रजलाल ने सब झेली : इटावा से हटने के बाद से ही ब्रजलाल पर प्रताड़ना का कहर टूटना शुरू हो गया था : बड़े अफसर ही अधीनस्‍थों की जड़ खोदने में जुटते हैं : छेड़ दीजिए ना कहने के अधिकार का आन्‍दोलन : शिवपाल अब एकांत में-चार  :

कुमार सौवीर

लखनऊ : जी हां, अब आप अगर यह समझ चुके होंगे कि यह पूरा किस्‍सा ब्रजलाल के इर्द-गिर्द ही है, तो सच है। कहने की जरूरत नहीं कि ब्रजलाल का स्‍थान हाईस्‍कूल में 43 वीं, इंटर में दसवीं और बीएसएसी में 66 वी थी। कुल 22 साल की उम्र में नौकरी में आने वाले ब्रजलाल अपनी सेवा में चौथे स्‍थान पर आये थे। साहस और कर्तव्‍यशीलता के मामले में श्रेष्‍ठतम स्‍थान पाये सरकारी अफसरों की सूची में ब्रजलाल शीर्षतम ही रहे हैं।

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लेकिन इटावा में हुई अपनी छीछालेदर से ब्रजलाल तनिक भी नहीं कांपे। उन्‍हें खूब अहसास हो चुका था कि जिस बर्रे के छत्‍ते में उन्‍होंने अपना हाथ लगाया है, वहां विषैले लोग ही बसते हैं। इसलिए आजमगढ़ में उन्‍हें जब 24 घंटों में ज्‍वाइन करने का आदेश दिया गया, तो वे बेहिचक रवाना हो गये। यह जानते हुए भी कि वहां उनके रहने तक की कोई पर्याप्‍त सुविधा नहीं थी। उसके बाद तो ब्रजलाल पर प्रताड़ना का कहर टूटना शुरू हो गया, जिसमें उनके वरिष्‍ठों ने बढ़-चढ़ कर नेताओं और आला अफसरों के जमकर तलवे चाटे।

ब्रजलाल पर आरोप है कि बसपा सरकार में उन्‍हें ज्‍यादा तरजीह दी गयी। लेकिन यह कहने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि उसी समय में ब्रजलाल के पंख कतर दिये गये थे। उन्‍हें मिला गया एडीजी-कानून-व्‍यवस्‍था का पद दो फाड़ कर दिया गया। और दूसरा हिस्‍सा एक ऐसे शख्‍स एके जैन को थमा दिया गया, जो चंद बेहूदा-दलाल पत्रकारों और नेताओं के इशारे पर प्रशासन चलाना अपनी काबिलियत माना करते थे। उसी एके जैन के एडीजी कानून-व्‍यवस्‍था के दौर में ही रीता बहुगुणा जोशी का घर फूंक दिया गया था, जो प्रदेश कांग्रेस की तब की अध्‍यक्ष हुआ करती थीं।

बहरहाल, बसपा सरकार में ब्रजलाल डीजी पद तो हासिल कर पाये, लेकिन अगली सपा-सरकार में उनके दुर्दिन आ गये। उन्‍हें बीएसएफ के मुखिया के तौर पर चयनित कर लिया गया था। लेकिन अखिलेश सरकार ने उन्‍हें रिलीव नहीं किया। प्रताड़ना के तहत उन्‍हें मुरादाबाद ट्रेनिंग सेंटर पर भेज दिया गया। उनकी सुरक्षा भी खत्‍म कर दी गयी। तब, जबकि खालिस्‍तान आंदोलन और उसके बाद से ही ब्रजलाल पर जान लेवा हमले की धमकियां देना शुरू हो गया था। लेकिन ब्रजलाल उस पर कत्‍तई हताश नहीं हुए। ब्रजलाल मानते हैं कि इस प्रकरण में शलभमणि त्रिपाठी नामक एक नामचीन पत्रकार ने उनकी बहुत मदद की, और उन्‍हें वापस लखनऊ लाने के लिए मुलायम सिंह यादव से बातचीत की। बातचीत रंग आ गयी।

ब्रजलाल का कहना है कि:- हम तो केवल आम आदमी की सुरक्षा के लिए समर्पित हैं। हमें शुरू से ही, बल्कि ट्रेनिंग के समय से ही बताया, समझाया जाता है कि हमें केवल आम आदमी और कानून के प्रति ही आस्‍था रखनी है। चाहे वह आईपीएस हो, पीपीएस हो या फिर कोई अन्‍य अधीनस्‍थ कर्मचारी-अधिकारी, यह सीख और उसकी ट्रेनिंग हमें इसी बात की होती है। बताया जाता है कि भूल कर भी कोई काम नहीं करना है, जो अवैधानिक हो। लेकिन कष्‍ट इस बात की है हम ट्रेनिंग स्‍कूली से बाहर निकलते ही इस सीख को भूल जाते हैं। जो दायित्‍व हमें दिये जाते हैं, उसे हम अपने आला अफसर और राजनीतिक आकाओं के पैरों पर अर्पित कर देते हैं।

यानी असल समस्‍या तो यही है कि आखिरकार हम ऐसा क्‍यों करते हैं। केवल पैसा और ऐश्‍वर्य ही चाहिए हो आपको। तो कोई दूसरा रास्‍ता खोजिये, पुलिस को क्‍यों गन्‍दा कर रहे हैं।

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