बडे़ दारोगा की बेशर्मी : डीजीपी ने कप्‍तान को बर्खास्‍त करने की सिफारिश की

मेरा कोना

: डीजीपी थे पीआर माथुर, पुलिस महकमे में सबसे गंदा चेहरा : जब परिवार का मुखिया ही अपने नवजातों से अन्‍याय करेगा, तो संतान भी साथ छेड़ देंगीं : छेड़ दीजिए ना कहने के अधिकार का आन्‍दोलन : शिवपाल अब एकांत में-तीन :

कुमार सौवीर

लखनऊ : अब आगे सुनिये। अभी यह हो ही रहा था कि अचानक लखनऊ से आदेश मिला कि कप्‍तान को दस दिन के लिए नैनीताल ट्रेनिंग कालेज में पहुंचना है। तत्‍काल। कप्‍तान नैनीताल रवाना हो गया। और जैसे ही वह नैनीताल पहुंचा तो पता चला कि उसका तबादला आजमगढ पीएसी में कमाण्‍डेंट के तौर पर हो गयी है। कप्‍तान ने अपने परिवार को लाने की इजाजत दी तो डीजीपी ने साफ इनकार कर दिया। ट्रेनिंग से वह कप्‍तान अभी लौट कर आजमगढ की ओर जा र‍हा था कि पीलीभीत के करीब उसने अमर उजाला में छह कॉलम में छपी एक खबर पढी:- अक्षम और डरपोक है वह अफसर।

यह बयान था प्रदेश के तब के पुलिस महानिदेशक पीआर माथुर का। अब कहने की जरूरत नहीं कि यह पुलिस महानिदेशक और कानपुर के वह डीआईजी जैसे बड़े दारोगा की करतूत पुलिस विभाग के चेहरे पर एक जोरदार तमाचा से कम नहीं थी। कहने की जरूरत नहीं कि पीआर माथुर की इस करतूत ने यह साबित कर दिया कि पुलिस का सबसे बड़ा दारोगा इस लायक नहीं था। खास तौर पर तब, जब कि उसे अपनी अधीनस्‍थ नये जुझारू अफसरों को प्रश्रय देने के बजाय खुद को राजनीतिज्ञों के सामने घुटने टेकने में ही जीवन-ध्‍येय सफल दीखता हो।

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शिवपाल सिंह यादव

खैर, उधर 13 अप्रैल को मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी गयी। जांच के नाम पर बरसों बिताने वाली सीबीसीआईडी ने बीस दिन बाद ही रिपोर्ट दे दी जिसमें कप्‍तान को ही बर्खास्‍त किये जाने की सिफारिश की गयी थी। उसके बाद की कहानी यह है कि इसके बाद उस आईपीएस के अनेक सीनियरों ने उसकी बेहद मदद की। कानूनी दांव-पेंच वाले पापड़ बेले गये और आखिरकार इस अफसर पर मंडरा रहे खतरों के बाद छंट गये।

लेकिन इस समाधान होने के बाद यही शख्‍स प्रदेश के निहायत संवेदनशील और अहम पदों पर रहा, कानून-व्‍यवस्‍था की बारीकियों को माद्दा जितना इस अफसर के बारे में कहा जाता है, उतना किसी और में नहीं। अपने सर्वोच्‍च नियुक्ति के तौर पर यह व्‍यक्ति प्रदेश के पुलिस महानिदेशक के पद पर भी रहा। उसके बाद उसकी नियुक्ति सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक तक के पद पर समझी गयी। हालांकि बदले राजनीतिक माहौल के चलते इस अधिकारी को बीएसएफ के महानिदेशक पद पर ज्‍वाइनिंग नहीं हो पायी।

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बड़ा दारोगा

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