लालू यादव बनाम तबला-हारमोनिया: एक रायशुमारी

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: जेल में तबला-सारंगी बजा कर अपनी सर्दी दूर करने की सलाह पर यूपी हाईकोर्ट के वकीलों की राय अलहदा : हल्‍की-फुल्‍की बातचीत होना सामान्‍य, मियाद पर राय अलग : कद्दावर शख्‍सियत हैं लालू, लहजा उचित नहीं रहा : लालू का अब तक का लहजा देखिये न, बहुत हल्‍के तरीके से भी कह जाते हैं लालू :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सर्दी लगे तो कोई बात नहीं। जाइये, जेल में सर्दी से निपटने के लिए अपना वक्‍त तबला-सारंगी और हारमोनियम बजा कर कीजिए। यह अथवा ऐसी ही टिप्‍पणियां लालू यादव की ताजा जेल-डायरी में अब यह जरूर दर्ज किया जाएगा कि सजा सुनाते वक्‍त लालू पर कड़े कटाक्ष भी सहने पड़े थे, जब उन्‍होंने जेल में चल रही कड़ाके की सर्दी से निजात दिलाने की गुजारिश की हो। हो सकता है कि ऐसे कटाक्ष लालू और जज के बीच हुई चर्चा की तुर्की-ब-तुर्की अंदाज में हुआ हो। हो सकता है कि लालू ने अपनी चिर-परिचित शैली में एक कटाक्ष किया हो, और उसका जवाब देते हुए उन्‍होंने लालू को तबला-सारंगी बजाने की सलाह दे दी हो।

सीबीआई के विशेष जज द्वारा देवघर कोषागार में हुए चारा-घोटाले के मामले में बिहार के मुख्‍यमंत्री और राष्‍ट्रीय जनता दल के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष लालू यादव पर सजा देते वक्‍त जो टिप्‍पणी की थी, उसको लेकर यूपी के चंद बड़े वकीलों की राय अलग-अलग है। प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम के संवाददाता से बातचीत में इन वकीलों ने अलग-अलग रौशनी में इस पूरे प्रकरण को देखा, समझा और उस पर अपनी राय जाहिर की है।

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जस्टिस और न्‍यायपालिका

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खण्‍डपीठ के वकील और अवध बार एसोसियेशन के पूर्व महामंत्री आरडी शाही के अनुसार लालू यादव के साथ जज द्वारा किया गया यह व्‍यवहार पूरी तरह निंदनीय है। कोर्ट रूम में तो किसी के साथ भी ऐसा नहीं होना चाहिए। कोर्ट रूम की अपनी एक खास अहमियत होती है। और फिर लालू यादव के साथ जो हुआ, वह और ज्‍यादा इसलिए गम्‍भीर हो जाता है क्‍योंकि वे लालू यादव हैं, और फैसला सुनाने वाला शख्‍स जज है। जज को देखना-समझना चाहिए इस तथ्‍य को। खास तौर पर तब, जबकि उस शख्‍स के साथ जिसकी एक बड़ी कद्दावर राजनीतिक हैसियत हो।

आरडी शाही इस मामले पर सामान्‍य से अलग नजरिया रखते हैं। उनका कहना है कि लोग अमर सिंह को नहीं कहेंगे, क्‍योंकि वे ठाकुर हैं। लेकिन लालू चूंकि यादव हैं, इसलिए उनको गरियाएंगे। शाही को दुख है कि लालू यादव के साथ यह व्‍यवहार अनुचित ही हुआ। हम यह सत्‍य बात भूल गये कि एक बड़ी हैसियत हैं लालू यादव। लेकिन कितना भयावह और अराजक लहजा है यह सब, कि ऐसी हरकतें हमारी प्रवृत्ति ही बनती जा रही है। लालू को सम्‍मान दिया जाना चाहिए। सजा होना या न होना तो न्‍यायिक प्रणाली का अंग होता है, लेकिन उसमें ऐसे कटाक्ष करना???? वे लालू यादव हैं, राजद के अध्‍यक्ष हैं, कई बार मुख्‍यमंत्री रह चुके हैं। ही डिजर्व्स रिस्‍पेक्‍ट।

लेकिन अवध बार एसोसियेशन के अध्‍यक्ष लालताप्रसाद मिश्र की राय बिलकुल अलहदा है। रांची के कोर्ट रूम में हुई उस घटना में श्री मिश्र कोई खास ऐतराज नहीं देखते हैं। वे कहते हैं कि यह तो एक सहज हास्‍य है। पूरी तरह सहज और सामान्‍य। बहुत ज्‍यादा हुआ तो यह हो सकता है कि उन्‍होंने लालू यादव की खिल्‍ली उड़ाने की कोशिश की होगी। लालू यादव ने भी अपने चिर-परिचित अंदाज में जज से कोई कटाक्ष या हास्‍य भाव प्रदर्शित किया होगा। और नतीजे में जज ने भी उसी चुटीले भाव का प्रदर्शन कर दिया होगा। यह भी हो सकता है कि जाओ जब करम किया है, तो उसे अब हंसी-खुशी भोगने की कोशिश करो। परेशान मत हो। मौज लो। कर्म का फल चखो। मेरा मानना है कि यह सारी बातचीत बेहद लाइटर अंदाज में हुई होगी। हम सामान्‍य तौर पर भी ऐसा ही करते रहते हैं। चूंकि कोर्ट का माहौल थोड़ा तनाव पूर्ण रहा होगा, उसे जज ने लाइटर कर दिया। हल्‍का हो गया। दुख को हल्‍का किया, तो इसमें बुरा क्‍या हुआ।

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लर्नेड वकील साहब

वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता आईबी सिंह भी लालताप्रसाद मिश्र की राय से काफी कुछ सहमत हैं। उनका कहना है कि कोर्टरूम में यह सब होता ही रहता है। इसमें कोई खास बात नहीं। चुटीले किस्‍सा-गाथा सुनाना, यानी जोकिंग करना लालू यादव की एक खास शैली है। आप देखिये न लालू यादव का अब तक का लहजा। बहुत हल्‍के तरीके से भी लालू यादव बहुत बड़ी बात कह जाते हैं। उनका हाव-भाव का अंदाज भी ऐसा ही होता है, वहां भी हुआ होगा। जवाब ऐसा ही हो गया जज की ओर से। हां, यह जरूर है कि जज को कमेंट नहीं करना चाहिए था। यह इनअप्रोप्रियेट एक्‍शन है। लेकिन कोई बड़ी बात नहीं है। हो नहीं होना चाहिए, लेकिन हो गया तो कोई पहाड़ नहीं टूटा। इससे कुछ ज्‍यादा नहीं।

लालू यादव को साढ़े तीन साल की सजा पर कुछ मसले उठ रहे हैं, जो इस मसले पर यूपी के वरिष्‍ठ वकीलों ने जाहिर किये। अदालत-परिसरों के अलावा भी समाज के विभिन्‍न क्षेत्रों-कॉर्नर्स पर भी लालू चर्चाओं के केंद्र में हैं। उनके जेल जाने से चारा-घोटाला से जुड़े मामले का पहला चरण भले ही खत्‍म हो गया है, लेकिन उसके बाद अब राजनीतिक भूचाल जरूर खड़ा हो गया है। हमारा यह आलेख ऐसी ही कॉर्नर्स से रायशुमारी कर रहा है। इसकी बाकी कडि़यों को देखने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

लालू-चालीसा

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