: नहीं नहीं, पहले तुम थूको, दीपक चाटेगा : नेताओं का ओलम्पिक में नया गेम शामिल कराया, फुल-टॉस थुक्का-फजीहत : अब तो झाड़-झंखाड़ में भी लहलहाएगी थूका-थूकी की बौर : थूकमथूकी की बम्पर फसल के आसार : खुलेगा बलगमी-थूक शोध संस्थान, शिलान्यास तो हो ही चुका :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अरे अक्लेस सर, आपने तो बिलकुल कमाल कर दिया। बाई गॉड की कसम, कितना मस्त-मस्त थूक मारा है आपने, कि पूरा जमाना हुर्रे हुर्रे कर बोल पड़ा है। ऐसा थूका है आपने मुख्यमंत्री आवास के सामने वाले गोल चौराहे के सामने अमरघिल्ले की खोपड़ी पर, कि मजा आ गया। आपका थूक न हुआ, दीपावली की चक्कर-घन्नी हो गया। बस हौले से आपने अपने रसीले होंठों को हल्की जुम्बिश क्या दी, कि छलछलउव्वा गोल-गोल थूक आपके मुंह से निकल कर अमरत्वशील खोपड़ी पर छन्न से ऐसा निकला, मानो कड़ाही पर तली जा रही फुलौरी-बरिया या कचौरी। प्रेशर इतना था कि दीपक का चिराग बुताय गया।
ही ही ही। अरे पत्रकार जी, यह मेरा राजसी थूक है।
लेकिन सर, आपका यह थूक तो बिलकुल चच्चा किसी शिव-माल्य पर बिलकुल सटीक पड़ा था। कोई प्रैक्टिस-शैक्टिस तो की ही होगी आपने। है कि नहीं
नहीं यार। यह थूकने की कला है। मुल्ला-बप्पा भी ऐसा किया करते थे, गेस्ट हाउस में तो उन्होंने वह थूक-बम दगाया था कि मत पूछो। वक्त-बे-वक्त आने वाली बयार-फिजां, माहौल और परिस्थितियों और लोगों के साथ रह रह कर यह सीखना ही पड जाता है। मैंने भी सीख लिया। सटीक निशाना है कि नहीं। हल्की सी खंखार खींचा, और थूक-आलूदा सीधे मुंह मे भर गया। मुंह में ही गोलियाया, और फिर आक्क्क्थू। थोड़ी सतर्कता की जरूरत होती है।
कैसी सतर्कता अन्नदाता?
हम जिन्दा कौम हैं, खुद को जिन्दा रखना और जिन्दगी में मस्ती सीखना भी चाहते हैं। मैं गोल्ड-मेडल हासिल कर चुका है, यह अमरघिल्लवा जैसे चोर-सियार की तरह नहीं, जो जहां भी जाएंगे, एड्स फैलायेंगे। अमरत्व के नाम पर दल्लागीरी और वसूली का धंधा
लेकिन आपने चचवा की हजामत काहे निबटा दिया?
करम ही ऐसे हैं इस चचवा के। हर बात पर लिबिर-लिबिर। न समझना, न बूझना। इत्ता भी सहूर नहीं कि पत्रकारों से क्या बोलना है। एक बार कैमरे पर बलबलाय गये कि अपराधी ओर आतंकवादियों पर सपा का विशेष समर्थन रहता है। हम उनके बल पर ही जिन्दा हैं। कई बातें गुपचुप बात होती है, उसे क्या कोई खुले-दस्त की तरह हग मारता है। परतिकवा को देखो, हम आज तक कुछ बोले, सिरफ काम लगाये हैं। हो हो हो हो। खैर, अब क्या। हमारे चच्चा हैं, हमने उनको 13 विभाग दे दिये हैं, वे गदगद हो गये हैं। लेकिन इत्ता नहीं समझ पाये हैं कि यह संख्या का क्या अर्थ होता है।
लेकिन गायत्री को काहे वापस ले लिया है आपने?
चूतिया हो तुम। बाबूराम को जानते हो न, बुआ को जब भी पैसे की जरूरत पड़ती थीं, खींच कर उसके पिछवाड़े पर चार लात रसीद करती थीं। धकाधक पैसा निकालना शुरू कर देते थे बाबूराम। गायत्री को भी अब ठीक से दुहा जाएगा, वो अब तक बिलकुल राइट-टाइम हो चुके हैं।
और दीपक?
वह तो दक्खिन हो गया
मतलब क्या आंध्रा या कर्णाटक भेज दिया?
ऊंह। उसकी दीपक-बाती सब बुताय दिया गया है। बहुत भभक-भभक करता था। नौकरी हमारी करता था, चाकरी अमरघिल्ले की करता था। अरे नौकर हो, तो नौकर की तरह रहो न। औकात भूल गया था वह ससुरा। बस, हमने खंखार कर क्या थूका, बिलकुल्लै टांग चियार के पहुड़ गया।
लेकिन सर, छुटकी अम्मा को लेकर काफी चर्चा हुई कि वह कैकेई बन गयी हैं।
उनका सारा प्रबन्ध कर दिया है मैंने। हम आधुनिक राम हैं। असली वाले मर्यादा पुरूषोत्तम। करेक्टर वाले। ऐरे-गैरे नहीं हैं हम। नये अंदाज के हैं हम। पुराने अंदाज के नहीं कि 14 साल तक प्रतीक्षा करते ही रहें। हमें प्रतीक की जरूरत नहीं। हिसाब करना हमें भी खूब आता है। बहुत कर चुके हैं उनके समधी जी चूसना आयुक्ती में। बहुत गन्ध मचा रखी है इसकी बेटी-दामाद ने। अब तो जवाब देने का वक्त आ गया है।
लेकिन सर….!
अबे चोप्प्पप। बहुत हो गयी बकबक। अब फिर कोई चूतियापंथी की तो शाहजहांपुर वाले जागेंद्र सिंह की गति बना दूंगा। चल, भाग्ग् यहां से