कहानी राजा उड़ान-छल्‍लों की, जिन्‍होंने सपा में छेद कर दिया

मेरा कोना

: डिरेबर बनाम डिरेबर के झगड़े में लफड़झण्‍डू बन गयी बड़े-बड़े बाबुओं की बड़ी-बड़ी बाबूगिरी : छेद दर छेद, छेदाछेदउव्‍वर बिलौटों ने सपा में छप्‍पन छेद जरूर कर दिया : मेरी जान सो जा मेरे पहलू में, जैसे बेईमान अफसर अपने आकाओं की छाती से लिपट कर सोते है : कहानियां उड़ान-छल्‍लों की, जिसने सपा में छेद कर दिया -एक :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यह नौटंकी है। पुरानी तर्ज पर नयी नौटंकी। जिसमें एक टिड्डा तो आसमान की बुलंदियों तक पहुंच जाता है, लेकिन दूसरा कौवा लाख कोशिशों के बावजूद सूरज की तपिश का सामना नहीं कर पाता। ऐसे में वह उड़ान-छल्‍लागिरी छोड़ कर हिरन बनने की कोशिश करता है। लेकिन चूंकि बन-कूकुर से लेकर बब्‍बर शेर तक उसकी घात में लगे हैं कि कब मौका मिले, उस निवाला बना दें। ऐसे में वह कौवा भूगत मार्ग अख्तियार करता है। बिल दर बिल, बिलबिलउव्‍वर। खुदाई दर खुदाई, खुदाखुदउव्‍वर। छेद दर छेद, छेदाछेदउव्‍वर। लेकिन इसके बावजूद इसकी ऐसी शातिराना हरकतें जगजाहिर हो ही जाते हैं। ऐसे में वह बेनकाब हो जाता है। लेकिन तब तक अब बिलौटा सपा में छप्‍पन छेद जरूर कर देता है।

तो दोस्‍तें: अब यह नौटंकी शुरू होती है।

क्‍या कर रहे हो मेरी नींद के चुम्‍मा-छीन?: नटी

अरे कर क्‍या रहे हैं, अक्‍लेस को कोस रहा हूं, और क्‍या !: नट

उससे क्‍या होगा डिप्‍टी राजा?: नटी

होगा क्‍या, उसकी कहानी बिगाड़ूंगा और ताकि उसकी कहानी संवारूंगा: नट

किसकी कहानी मेरे करेजऊ?: नटी

सुपाल की कहानी, अक्‍लेस की कहानी। सपा के बलसफा की कहानी, मुलायम-मुलायम किस्‍सों के सफाचट होने की कहानी, नपुंसकों के मर्द बरास्‍ते नामर्द बनने की कहानी। भांड़ों की अमर-कहानी: नट

वह कैसे मेरे राजा?: नटी

भाग ससुरी। टेंसन मती दे। जा मुझसे नहीं, उस डिरेबर से पूछ। उसी ने तो कहानी गड़बड़ा दिया था: नट

कौन डिलेबर मेरी रात के राजा, दूध-पिपने?: नटी

चोप्‍प्‍प। वरना अभी सरकारी मोबाइल के चुआ-चोप, चुआ-चोप टोन में गाना शुरू कर दूंगा: नट

तो मैं भी 1090 डायल कर दूंगी। वहां मुआ केकड़ा फोन उठायेगा, तो उसे लिपट जाऊंगी: नटी

रूक रूक। मतलब यह कि तू मुझसे उगाही करायेगी? मान जा मेरी जान, मैं सुनाता हूं वह किस्‍सा, तोता-मैना इष्‍टैल में: नट

तो सुन, एक डिरेबर था। स्‍टेट प्‍लेन उड़ाने की नौकरी मिल गयी। सीधे ससुरा कैबिनेट सेक्रेटरी बन गया। आइएएस का बाप बन गया। मैडम के साथ बायीं ओर कार में पूरी ठसक में  बैठता था, जबकि चीफ सेक्रेट्री किसी बकलाेल की तरह उस कार के पीछे अम्‍बेदकर पार्क में दौड़ता-फिरता था। हांफता-खांसता हुआ। इस टिड्डे ने ऐसे-ऐसे सरअंजाम किये कि बड़े-बड़े बाबुओं की बाबूगिरी दक्खिन हो गयी। पायलेट से आका बन गया। सीधे प्रमुख सचिव। वक्‍त-बे-वक्‍त लपडि़याना शुरू कर दिया उसने बाकी अफसरों को।

उधर एक अफसर था। प्राधिकरण से लेकर एग्रो, डंडी से लेकर मंडी तक। मिश्र-धातु था। कहीं भी फिट हो जाता था। बड़ा माल पेला। बिलकुल हनहनउव्‍वा। लेकिन वक्‍त से पहले ही उसे सरकारी उड़ान-छल्‍लों की अहमियत समझ में आ गयी। पता चल गया कि कैसे सरकारी हवाई जहाज चलाने के चक्‍कर में राजनीति का स्‍टेट-प्‍लेन उड़ाया जा सकता है। समझ गया कि पैसा सेकेंड्री होता है। असली जीत तो पॉवर होती है, पॉवर मिल जाए तो अच्‍छा खासा माल मिल सकता है। सत्‍ता की प्‍लेट चाटने में जो मजा है, वह किसी और रास्‍ते में नहीं। वरना पैसा लेकर‍ केवल इतना ही हो सकता है कि रिटायरमेंट के बाद किसी न किसी बिल्‍डर के यहां चिरकुट चाकरी करनी पड़े। हमेशा चप्‍पल, दोनों, पत्‍तल ही चाटना पड़ता है। डिरेबर बनने में आखिरकार प्रमुख सचिव बनने का सपना पूरा किया जा सकता है।

ऐसे में उसने अपने बेटे को अफसर बनाने के बजाय सीधे डिरेबर की टरेनिंग करा दिया। नौकरी भी करा दिया राज्‍य उड्डयन विभाग में। लेकिन पुराना डिरेबर ज्‍यादा चालाक था। वह इस अफसर की नीयत को सूंघ गया। जाहिर है कि वह दोनों ही घाघ थे, एक उस डाल तो वह उस पात। जान चुका था कि यह अफसर अपने डिरेबर को उड़ान-छल्‍ला सिखाने की जुगत में है। नतीजा यह हुआ कि उसने उसके बेटे की डिरेबर वाली नौकरी की फाइल को बत्‍ती गोल-गोल गोलियाया, और फिर ऐसी जगह पर रख दिया जहां केवल कानूनी बातचीत ही होती है।

लेकिन मेरी जान प्‍यारी नटी, कहानी यहीं पर खत्‍म नहीं होती है। अफसर भी घाट-घाट का पानी पी चुका था। उसने कानूनी दांव-पेंच चलाये, और कई बरसों की मेहनत के बाद नौकरी वापस करा दिया। लेकिन उस पुराने डिरेबर का खबर मिल गयी, तो उसने उस कौवे की ज्‍वाइनिंग से पहले ही एक नये गबरू उड़ान-छल्‍ले को सीनियर ग्रेड में ज्‍वाइन करा दिया। मामला फिर दक्खिन होता देख कर उसने फिर नुक्‍ताचीनी शुरू किया तो पुराने डिरेबर और उसके बाद की आका बनी अफसर ने भी उसकी पूंछ पर पैर रख दिया। एक रिटायर्ड पायलेट को विभागाध्‍यक्ष बना डाला।

इसे ही कहते हैं सपनों की भ्रूण-हत्‍या। वह अब न घर का रहा और न घाट का। पायंचा तल तो दूर, कोई उसे भूतल तक नहीं सहेटने लगा। ऐसे में, ऐसे में, ऐसे में, छोड मेरी जान। यह सब कुकुर-झौंझौं वाले किस्‍से कह-सुन कर मुझे झपकी आने लगी है। सो जा मेरे पहलू में, जैसे बेईमान अफसर अपने आकाओं की छाती से लिपट कर सोते हैं। (क्रमश:)

बड़े-बड़े बिलौटे टाइप कौवे-मूस मौजूद हैं इस कहानी में, जिन्‍होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए हर चीज को खोद डाला। एक बिल से दूसरे बिल तक। जहां खोदना चाहिए, वहां भी, और जहां नहीं चाहिए था वहां भी खोद डाला इन खुदासे चूहों-मूसों-बिलौटों-सियारों ने। इन लोगों ने अपने निजी कुत्सित लाभों के लिए सपा का बण्‍टाढार करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी। इस पूरी श्रंखला-बद्ध कहानी को सुनने-पढ़ने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:- कहानी राजा उड़ान-छल्‍ला की

समाजवादी पार्टी और उसकी अखिलेश सरकार से सम्‍बद्ध अन्‍य खबरें देखने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

कल मनमोहन, अब मोदी बचा रहे है मुलायम कुनबे को जेल जाने से?

बड़े सपाई नेताओं पर व्‍यभिचार का आरोप लगाने वाले रामगोपाल यादव को अमर सिंह ने नपुंसक बताया

कुनबे की बपौती वाले राजनीतिक स्‍खलन ने सपा की छीछालेदर करा डाली

मुगल-ए-आजम यानी सपा का फ्लॉप-शो जारी, जिन्‍दाबाद-मुर्दाबाद

यह झगड़ा है अपराधवाद बनाम पाखण्‍डवाद का

बुड्ढा-दल बनाम चुआ-चोप: शिवपाल को आज सत्‍ता चाहिए, और अखिलेश को अगले 40 बरस की चिंता

लंगोट के ढीले ! अरे यह लोग तो लंगोट पहनते ही नहीं

सपा में कलह: यह व्‍यभिचार का आरोप किस पर लगाया है रामगोपाल यादव ने

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *