: बहमन के बारह बुधि, क्षत्रिय के छह, अहिरे के एक बुधि ढेर बोल्बे त मारब : इंदिरा, संजय, केजरीवाल और प्रशांत भी तो यादव नहीं हैं, विह्वल होकर कहता है एक ब्यूरोक्रेट : एक चैनल में इस बुद्धिजीवी के तर्क देखिये, तो बुद्धिजीवी होने से विश्वास उठ जाएगा :
लखनऊ : मिथकों के सहारे जातियों के गुण और उनका शोषण भारतीय समाज का अभिन्न अंग है, जहाँ आपके तमाम तर्क और व्यक्ति के रूप में आपकी निजी क्षमता को आपके जातीय सन्दर्भ में बखूबी बढाया-घटाया जा सकता है.
कल रात उत्तर प्रदेश के राजनैतिक घटनाक्रम प एक बड़े चैनल की बहस में एक जाने माने बुद्धिजीवी ने कहा की “आपसी दंगल और झगडा तो यादवों के अन्दर होना ही है और उन्होंने ५००० साल के इतिहास को इसकी (द्वारिका के मिथक) साक्ष्य पुष्टि में रखा.” उस बुद्धिजीवी के घटिया जातीयता के तर्क पर दुःख नहीं, पर अफ़सोस हुआ उस टीवी एन्कर पर जिसने इस तर्क को माना…. इस बहस ने अचानक बचपन से कालेज तक के तमाम घटनाओं की स्मृतियाँ याद दिला दीं….’अहिरा को बुधि नहीं होती…’; ये बहुत दुःख नहीं पहुंचाता था, पर ‘अहिरा .#दलस भयल तमाशा” कह जब बच्चे चिढाते तो मैं परेशां हो जाता था और फिर एक दिन मेरे हम उम्र ममेरे रिश्ते के भाई ने मुझे कई जबाबी कहावते सिखा दी जिनमें दो सर्वाधिक प्रिय थीं…पंडितजी ..ल …ल, पैसा मांगे गोल गोल, गां# …दिखाए खाए खोल खोल….और “बहमन के बारह बुधि, क्षत्रिय के छह, अहिरे के एक बुधि ढेर बोल्बे त मारब” !
छात्र जीवन के अरसे बाद मुझे चैनल के उक्त बुद्धिजीवी की बातों से ये दोनों याद आ गयीं.. ! क्या सभी ब्राह्मणों को रावन की तरह राक्षस मान लूं….राम और भरत तो यादव नहीं थे…इंदिरा और संजय गाँधी भी यादव नहीं थे…जहाँ तक मेरी जानकारी है केजरीवाल और प्रशांत भी यादव नहीं….देश और दर्शकों को रास्ता दिखानेवाली मिडिया से विनम्र अनुरोध है की जातिय कुंठाओं से ग्रसत कथित बुद्धिजीयों के लिए अपने प्लेटफार्म का दुरुपयोग रोकने की कोशिश करें और अपने एंकर को भी थोडा तार्किक और संवेदनशील बनाने पर विचार कर लें. व्यक्तिगत रूप से मैंने सिर्फ घटनाक्रम और समस्या को उजागर करने के लिए कुछ कहावतें दृष्टान्त के रूप में रखीं, जिनपे मेरा कोई विश्वाश नहीं और न ही मैं इनका लेश मात्र भी समर्थक हूँ बल्कि इन सबकी निंदा करता हूँ जो व्यक्ति को उसकी जाति के सन्दर्भ में गढ़ती हैं…यदि किसी को ठेस पहुंची है तो हृदय से माफ़ी मांगता हूँ.
न्यूज चैनलोंं में जातीय विद्वेष की घटिया नजीरें किसी भी जागरूक शख्स को विह्वल कर सकती हैं। इसी मसले पर यह टिप्पणी अनुराग यादव की है। जेएनयू में पढ़े अनुराग यूपी के एक आईएएस अफसर हैं। लखनऊ, जौनपुर और झांसी के जिलाधिकारी रह चुके अनुराग इस समय लोकनिर्माण विभाग में सचिव के पद पर तैनात हैं।