पापा ! मैं साक्षात बुद्ध हूं, बुद्धू हर्गिज नहीं

बिटिया खबर

 

: तो लो मित्रों, मैंने अपने पिता स्‍वर्गीय सियाराम शरण त्रिपाठी का श्राद्ध आखिरकार बिहार की मोक्ष-भूमि नामक किंवदंती पर कर ही दिया : शापित हो चुकी फाल्‍गु नदी नामक कलंकित और नदी-नुमा अभद्र-नीच बना डाली नाला-धारा पर पिता की स्‍मृति-शेष विसर्जित :

कुमार सौवीर

गया : मैं एक नायाब बुद्ध हूं, बुद्धू हर्गिज नही। यानी:- आत्‍मम् शरणम् गच्‍छामि। वे गधे हैं जो बुद्धम् शरणम् गच्‍छामि वाला सी-पों सी-पों चिल्‍लाते-करते-कहते घूमते रहते हैं।
तो लो मित्रों, मैंने अपने पिता स्‍वर्गीय सियाराम शरण त्रिपाठी का श्राद्ध आखिरकार बिहार की मोक्ष-भूमि नामक किंवदंती पर कर ही दिया। शापित हो चुकी फाल्‍गु नदी नामक कलंकित और नदी-नुमा अभद्र-नीच बना डाली नाला-धारा पर पिता की स्‍मृति-शेष विसर्जित करने के बजाय मैंने तीस साल पहले लखनऊ की भैंसा-कुण्‍ड चिता पर अपने पिता की पार्थिव-देह को अग्नि के सिपुर्द कर दिया गया था। याद आज आयी तो फौरन श्राद्ध कर डाला।
पिछले कई दिनों से सोच रहा था कि गया मैं अपने पुरखों की आत्‍माओं को शांति देने का प्रयास करूंगा। मेरा छोटा बेटा-भतीजा तो वाकई बेवफा निकला। कई बार उसके कई फोन नम्‍बरों पर फोन किया, लेकिन उसने अपनी व्‍यस्‍तता के चलते न तो फोन उठाया और न ही उसके तीन दिनों तक जवाब। मैं समझ सकता हूं कि प्रशासनिक अफसरों की व्‍यस्‍तता होती है। दरअसल, अफसर बनते ही कोई भी इंसान कभी भी इंसान बन ही नहीं सकता। न भावुक बचती है, और न ही संवेदनशीलता। लेकिन अपने पिताओं के प्रति याद तो उन्‍हें होना ही चाहिए था। खैर, मैं अपने अपने पूर्वजों का श्राद्ध करना चाहता हूं, अपने बच्‍चे के प्रति निंदा-गीत नहीं। मेरी संतानें मेरा भविष्‍य होती हैं, निंदा की शोक-गीत नहीं।
खैर, गया पहुंचते ही सारा गया-वया हो गया। जो समझना चाहता था, वह गड़बड़ा हो गया। धत्‍तेरे की। गया में गया-गया के बजाय अब मैं नया गीत रचूंगा, तय कर लिया। मगर मजा बदल गया। खरामा-खरामा, आखिरकार मैं गया के चैतन्‍य-श्‍मशान पर पहुंच गया। लगा, कि यही तो यही मेरी ही नहीं, बल्कि मेरे पूर्वजों की शांति-भूमि बन सकती है। मैं मुस्‍कुरा उठा। और हंस पड़ी वहां कफन वगैरह बेचने वाली एक बूढी महिला भी। हमारे दोस्‍त तो हमारे हर कदम के साथ हम-कदम थे।
तो विदा, अलविदा मोक्ष-भूमि गया। अब वह मेरे जीवन से हमेशा-हमेशा के लिए चला गया।
मैं तो अब पूरी जिन्‍दगी भर दुनिया के श्‍मशान-भूमि पर अट्ठहास करता हुआ अपने ही नहीं, अपने वंशजों की आत्‍माओं के लिए भी शांति की प्रार्थना हर शव-भूमि पर करता ही रहूंगा। लाशों की धूनी पर अब हमेशा खुद को भूनता रहूंगा। और पॉप-कॉर्न की तरह अपनी जीतों-सफलताओं और पराजयों पर खूब फूलता रहूंगा। अपने स्‍पष्‍ट और निष्‍पाप भाव से मैं तुमसे आह्वान कर कर रहा हूं कि:- हे सनातन और जीवन-दायी अग्नि! मैं तुम्‍हारा आह्वान कर रहा हूं कि आगे बढ़कर मेरी हवि को सम्‍भाल कर मुझे पूर्णता प्रदान कर दो। मुझे तुच्‍छ-निजता के बजाय सीधे ब्रह्माण्‍ड-व्‍यापी बना डालो।
और लीजिए, गयाजी की भूमि में मेरे पिता, मेरे दादा, दादी, नाना, नानी और मामा के साथ ही साथ मेरी प्‍यारी बिटिया ऋचा और चचेरे भाई अनिल समेत सभी पूर्वजों की शांति के लिए यज्ञ सम्‍पन्‍न हो ही गया। फतेहपुर-चारासी वाले अपनी बेटियों के परदादा-दादी तक की आत्‍मा के लिए मैं यहां प्रार्थना कर चुका हूं। इसी पवित्रतम श्‍मशान-भूमि पर। साथ ही मैंने अपने, निजी के लिए भी, यहां का अपना अंतिम श्राद्ध करवा ही लिया है।

अपनी बिटिया-सी कुतिया ट्रिक्‍सी के लिए भी तैयारी मैं करवा चुका हूं। मेरे बाद कोई भी काम न बचे, इसके लिए हर सम्‍भव तैयारियां मैं करवा चुका हूं। इसी पवित्रतम श्‍मशान-भूमि पर।
बोधगया में बुद्ध के अनुयाइयों को भले ही बुद्धत्‍व नहीं मिल पाया हो, लेकिन मैं खुद को इतना संतुष्‍ट कर सकता हूं कि खुद अपना निज-कमाया एक नायाब बुद्ध हूं, बुद्धू हर्गिज नही:- आत्‍मम् शरणम् गच्‍छामि।
मैं खुद को किसी और के पास नहीं खोजता हूं, बल्कि लोग खुद मुझमें खोजने की व्‍यर्थ कोशिशें करते हैं और इसी प्रयास में अपनी की ऐसी की तैसी कर देते हैं।
मोको कहां खोजे रे बंदे, मैं तो तेरे पास रे।

2 thoughts on “पापा ! मैं साक्षात बुद्ध हूं, बुद्धू हर्गिज नहीं

  1. एक परिपूर्ण बुद्ध – कुमार सौबीर
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    भावनाओं से परिपूर्ण हृदय से, अपने को इस अभिव्यक्ति के लिए विवश पाकर ईश्वर की साक्षी में मैं आपको एक बुद्ध पुरुष के रूप में स्वीकार करता हूं। हर रिश्तों के प्रति समर्पित आप का जीवन आज के समाज के लिए अनुकरणीय है।
    आज आपने पूज्य पिता जी का श्राद्ध किया, वह भी समस्त दायित्वों से निवृत्त होकर…!
    मुझे २० वर्षों पूर्व में जौनपुर के हिन्दुस्तान समाचार पत्र के सम्पादक श्री कुमार सौबीर बरबस याद आ गए, जिन्होंने हमें १० बजे रात को फोन किया कि शशिकांत भूख लगी है, घर में कुछ खाना मिल जाएगा ?
    आप ११ बजे रात भुख को चेहरे से दर किनार करते हुए ठहाके मारते हुए नौ दस रोटियां हरी मिर्च और नमक के साथ खा गए, आप काफी भूखे थे, शायद सुबह से अखबार के काम में व्यस्त रहने के कारण कुछ भी नहीं खाया था, और हमारे अनुमान है कि आप के पास होटल में खाना खाने के लिए पैसे भी नहीं थे….!
    उस समय हमनें आपको एक झक्की इमानदार ही समझा था…!
    इस कठोर और झक्की व्यक्तित्व में एक ऐसी भाव संवेदनाओं की गंगोत्री हिलोरें लेती है, इसे बहुत बाद में समझ पाया…!
    तमाम प्रतिकूलताओं के साथ अपने पेशे के प्रति पूर्ण न्याय करते हुए अपनी दो पुत्रियों का मांगलिक परिणय एक आर्थिक निर्धन पिता कैसे करता है, इसका अद्भुत उदाहरण अभी कुछ दिनों पूर्व ही हमनें अनुभव किया…!
    पूज्य पिता जी के श्राद्ध का समाचार जानने के बाद आज ऐसा लग रहा है कि जिस व्यक्ति को मैंने कभी कर्मकाण्ड पूर्वक पूजा-अर्चना करते कभी नहीं देखा वह भीतर से ऋषि परम्पराओं के प्रति भी इतना संवेदनशील है कि अपने पूज्य पिता का श्राद्ध विधि विधान पूर्वक पितरों के तीर्थ गया जाकर मां फाल्गू के पावन तट पर सम्पन्न किया…!
    आज मैं यह गर्व से कहता हूं कि आपने अपने हर रिश्तों के प्रति पूर्ण न्याय किया है…!
    दादा तुम्हारा शिवतत्व से परिपूर्ण व्यक्तित्व देख कर मेरा हृदय तुम्हारे चरणों की वंदना कर रहा है और कह रहा है कि आप वास्तविक बुद्ध हो…!!

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