: अर्द्धनारीश्वर के शिव में नारी कहां बिलाय गयी है आजकल : पार्वती उन दुष्ट देवताओं को हमेशा-हमेशा के लिए नि:सन्तान हो जाने का श्राप दे देती हैं : व्रत पर पूछिये कि शिव-स्तुति पर ध्येय क्या है उनका, लालच क्या है : शिव-पुराण में विशालकाय शिश्न को देख कर मुनि-स्त्रियां मदमत्त हो जाती :
कुमार सौवीर
लखनऊ : नासा में होने वाले शोध और हिन्दू धर्म वाले सनातन-दर्शन की जानकारी मुझे नहीं है। लेकिन जीव-विज्ञान के मुताबिक और सामान्य तौर पर भी, स्त्री के मुकाबले पुरुष अपनी प्रवृत्तियों के मामले में पहलकदमी करने वाला, क्रूर और स्त्री के मुताबिक हठ, जिद या अहमन्यता की अधिकता रखता है। लेकिन इन प्रवृत्तियों को परिष्कृत, संतुलित और व्यवस्थित करने के बजाय पुरुष ने उन्हें क्रूरता के तौर पर लगातार कड़ा ही किया है। नतीजा मर्द इंसान बनने के बजाय, लगातार मर्द के तौर पर ही विकसित होता जाता रहा है। यही वजह है कि पुरुष की सोच, उसकी रणनीति, उसका अंदाज और उसका अंदाज़ बेहद क्रूर और हमलावर होता है।
आप दूर क्यों जाते हैं? धर्म को ही देख लीजिए, और खासकर शिवरात्रि भी। देख लीजिए न, कि एक उन्नत सभ्यता का जन्म सनातन धर्म के तौर पर तो जरूर हुआ, लेकिन आज उसकी हालत हिन्दू और कर्मकांड की दुकान में तब्दील हो गयी। अर्द्ध-नारीश्वर की मूल अवधारणा के बारे में तो अब कोई चर्चा ही नहीं करना चाहता है। अर्द्ध-नारीश्वर के महानतम वैचारिक दार्शनिक पक्ष के बजाय उसे देखने लायक दर्शन तक सिमटा दिया है। शिव अपने अवधूत और अघोरी प्रवृत्ति के बजाय शिव-पुराण में विशालकाय शिश्न तक सिमट गये, जिस को देख कर मुनि-स्त्रियां मदमत्त हो जाती हैं, और उससे दुखी मुनि शिव पर मुष्ठि-प्रहार कर उसे भगाने का उपक्रम करना शुरू कर देते हैं। यही शिव जब पार्वती के बीच जब सहस्रों वर्षों तक सहवास होता है, तो देवतागण भयभीत होकर उन्हें डिस्टर्ब कर देते हैं। ऐसे अवांछित और एकांतिक उपक्रम वाले अपराध की सजा तजबीज करते हुए पार्वती उन दुष्ट देवताओं को हमेशा-हमेशा के लिए नि:सन्तान हो जाने का श्राप दे देती हैं। यह गुस्सा अब तक निपटाया जा नहीं जा सका है, यह दीगर बात है।
तो दोस्तों । जब गबड़-चौथी होगी, तो तथ्य नदारत हो जाएंगी और उसकी तरह अजब-गजब तस्वीरें दीवारों में विशालकाय मढ़नी शुरू हो जाएंगी। उसे कोई नहीं रोक सकता। और जो कोई उस पर कोई अंकुश नहीं लगाने की साहस नहीं कर पाता था, तो सड़ांध तो होनी ही थी, इसलिए उस धारा के अंग-उपांग भी विकल और भ्रष्ट हो गए। अर्थ का अनर्थ होने लगा, और दिशा गटर-गंगा बन गयी। कोई तो बताये कि जो जीवन ही नहीं, बल्कि पूरे ब्रह्मांड का अधिपति है, जिसको वेद में रौद्र-भाव की संज्ञा रुद्र में देखा, समझा और व्याख्यायित किया गया, उसको शिव के तौर पर विस्तार तो दे दिया गया। लेकिन उसी शिव को आखिर शिश्नादेव कैसे बना दिया गया?
कम से कम, औरत के मामले में तो यही रणनीति और अंजाम जानी-दुश्मन से भी ज्यादा खतरनाक हमला करती है। और खूब सिखाती है पीडि़त महिलाओं को, कि कैसे किसी दूसरी महिला को उपभोग की वस्तु बना डाला जाए। आप पूछ लीजिए न, कि अर्द्धनारीश्वर के शिव में नारी कहां बिलाय गयी है आजकल। पुरुष इस विकलांग प्रक्रिया में तो मैथारन दौड़ कर भी रहा है और बाकी को भी उसके लिए प्रेरित करता रहता है। लेकिन औरत अरे औरत तो सबसे गजब निकली। वह तो इसी ताजा शिव-संस्करण पर धकाधक मंदिर जाती है। वहां वह रोज-ब-रोज क्या देखती है, उसका कोई जवाब किसी महिला के पास नहीं होती है, लेकिन 16 सोमवार का व्रत करती है जरूर। एक बार पूछिये तो किसी युवती से कि आखिर वह सोमवार को व्रत क्यों करती है, वह क्यों शिव-स्तुति करती है। आखिर ध्येय क्या है उनका। लालच क्या है ? शिव-प्रसाद यानी शिव-माल्य मानवों के लिए वर्जित था, लेकिन आज मंदिरों में उसके लिए मारामारी क्यों होती है?
देर रात एक सब्जी-मण्डी से होकर गुजरना पड़ा तो दंग रह गया। वहां दो महिलाओं के बीच का झगड़ा चल रहा था। दोनों ही महिलाएं एक-दूसरे के बाल-झोंटा पकड़ कर बिलकुल गुत्थम-गुत्था थीं। बाकायदा मल्ल-युद्ध चल रहा था। दोनों योद्धा अपने में जुटे थे और वहां मौजूद भीड़ चीख-चिल्ला कर उन दोनों की हौसला-आफजाई कर रही थी।
कि अचानक एक आवाज ने मुझे भीतर तक हिला दिया। यह गाली थी, जो एक महिला दूसरी महिला को दे रही थी:- रूक ससुरी रंडी, अरे तेरी मां का …
अब आप खुद देख कर बताइये इस दौर तक पहुंच चुके मानव-विकास में शिव कहीं दिख रहे हैं।