ऐसे बयान जब चिकित्‍सा कुलपति देता है, तो शर्म आती है उसकी बेशर्मी पर

सैड सांग

: मानवता के ठीक विपरीत बोले हैं कुलपति, कि रोजाना दस से बारह मौतें होती हैं ट्रामा सेंटर में : ट्रामा सेंटर के आग-हादसे में अब तक 11 लोगों की मौतें : कमिश्‍नर ने पाया कि छह मौतें हादसे में हुईं, मगर कुलपति ने नकार दिया :

कुमार सौवीर

लखनऊ : किसी बड़े हादसे में खुद को या अपने बाकी साथियों की खाल बचाने की कोशिश में एक डॉक्‍टर से तो आप यह अपेक्षा कर सकते हैं कि उसने झूठ बोला होगा। लेकिन अगर ऐसा झूठ कुलपति बोलेगा, तो शिक्षक-जन्‍य मानवता और संवेदनशीलता का जनाजा ठीक उसी वक्‍त से निकलना शुरू हो जाएगा। उस झूठ के बाद तो ऐसे किसी भी हादसे को लेकर पूरे शिक्षक जगत के चेहरे पर कालिख ही पुत जाएगी।

राजधानी के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में यही हुआ। दो दिन पहले हुई एक भीषण आग में दर्जन भर से ज्‍यादा मरीजों की मौत को चिकित्‍सा यूनिवर्सिटी अपनी ही चाल में फंसती दिख रही है। इस हादसे में वहां के ट्रामा सेंटर में भर्ती को लेकर अब तक 14 गम्‍भीर मरीजों की असमय मौत हो चुकी है। यह दीगर बात है क‍ि लखनऊ के मण्‍डल आयुक्‍त  ने अपनी प्रशासनिक जांच में तय हो गया है कि ट्रामा सेंटर में दो दिन पहले हुई आगजनी में छह मरीजों की मौत हुई थी। जबकि विभिन्‍न समाचार संस्‍थानों ने यहां हुई सारी मौतों का आंकड़ा अब तक 14 मरीजों की मौत के तौर पर कुबूला है। दैनिक जागरण और हिन्‍दुस्‍तान अखबारों ने इन मौतों के संख्‍या 11 बतायी है।

मण्‍डलायुक्‍त ने अपनी जांच में पाया है कि ट्रामा सेंटर में आग लगने के बाद वहां भर्ती गम्‍भीर मरीजों से ऑक्‍सीजन की नली वहां के डॉक्‍टरों ने अराजक तरीके से निकाल दिये थे। और इसी के चलते उस हादसे में छह लोगों की मौत की बात अब तक सामने आ चुकी है। लेकिन चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय प्रशासन इस मामले पर लगातार लीपा-पोती में ही जुटा है। कुलपति और मुख्‍य चिकित्‍सा अधीक्षक ने उस हादसे में एक भी मौत की बात नहीं कुबूली है। बहरहाल, कुलपति व अन्‍य अधिकारियों के बयान के बाद कमिश्‍नर ने अपनी जांच को लेकर बाकायदा एक नोटिस जारी कर दी है।

उधर रविवार को कुलपति डॉक्‍टर एनएलबी भट्ट और मुख्‍य चिकित्‍सा अधीक्षक डॉक्‍टर एसएन शंखवार ने पत्रकारों को बताया कि ट्रामा सेंटर में हुई आग की घटना में एक भी मरीज की मौत नहीं हुई है, जिसे यहां किसी असुविधा अथवा इलाज की कमी से जोड़ा जा सके। उन्‍होंने दावा किया है कि ट्रामा सेंटर में रोजाना 10 से 12 मरीजों की मौत हो ही जाती है।

सवाल इसी दावे पर है कि कुलपति को कैसे इतना सटीक आंकलन वाला आंकड़ा कैसे और किस आधार पर मिल गया। मौतों की संख्‍या का आंकलन कैसे किया जा सकता है किसी ट्रामा सेंटर में। खास तौर पर तब, जबकि ट्रामा सेंटर की आगजनी ने विश्‍वविद्यालय की सारी सतर्कता की पोल खोल डाली है।

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