दस “अभिनन्‍दन” चीन में बंधक थे। सरकार, मीडिया चुप

बिटिया खबर

: सिर्फ एनबीटी ने छापी बड़ी खबर, बाकी हिन्‍दी अखबार खामोश : एक कर्नल व तीन मेजर समेत दस भारतीय सैनिक रिहा : गलवां घाटी हादसे के बाद चीन में बंधक थे भारतीय जवान :
कुमार सौवीर
लखनऊ : बीते 19 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब यह ऐलान किया कि न कोई हमारी सेमा में घुसा है और नही ही कोई पोस्‍ट किसी के कब्‍जे में है, तो पूरे देश की मीडिया नरेंद्र मोदी की क्षमता, दक्षता और वीरता के सामने नतमस्‍तक हो गयी। न्‍यूज चैनल फनफना उठे, ठांय-ठांय की आवाजें गूंजने लगीं, कार्यक्रमों में विश्‍व के विभिन्‍न युद्धों के बरसों पुराने फुटेज काइस्‍तमाल किया जाने लगा। तुरही, शंख बजने लगे। थालियां, चम्‍मच ठनठनाने लगीं। तालियां दर तालियां होने लगीं। सारे अखबारों के पहले पन्‍ने की पहली और मोटी हेडि़ंग में सिर्फ यही शब्‍द थे कि:- न कोई हमारी सीमा में घुसा है और न ही कोई पोस्‍ट किसी के सब्‍जे में: मोदी
लेकिन एकाध अखबारों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश अखबारों ने इस खबर को आपराधिक ढंग से और साजिशन के इग्‍नोर कर दिया कि मोदी के इस बयान के दौरान भी चीनी सैनिकों के कब्‍जे में भारत के दस जवानों बंधक थे। हिन्‍दू, एनबीटी और अमर उजाला जैसे कुछअखबारों को अगर छोड़ भी दिया जाए, तो सैनिकों के बंधक बनाये जाने की खबर की भनक न तो मोदी को थी, न अमितशाह, राजनाथ सिंह या किसी अन्‍य अखबार के पास। और सूत्र बताते हैं कि सच बात तो यही है कि इन सैनिकों को इतने दिनों तक बंधक बनाये जाने के हादसे की खबर इन सभी को थी, लेकिन इन सभी ने देश को गुमराह किया और इस बड़ी खबर को दबाने की हरचंद साजिश की। वजह यही कि मीडिया का मुंह भाजपा ने विज्ञापनों और सुविधाओं से बंद कर रखा है।
बअआपको बता दें कि यह वह जवान हैं जो गलवां घाटी के बाद भारतीय सैनिकों के साथ की गयी चीनी सैनिकों की नृशंसता के बाद बंधक बनाये गये थे। यानी जब मोदी जी यह बयान दे रहे थे, तो उस वक्‍त भी चीन के कब्‍जे में दस भारतीय जवान बंधक थे। हालांकि 19 जून की शाम को चीन ने इन सभी को अपने कब्‍जे से रिहा कर उन्‍हें भारतीय सीमा पर छोड़ दिया। इनमें एक कर्नल स्‍तर का अधिकारी है, जो कमांडर माना जाता है। लेकिन इसके छोड़ने के बाद भी अखबारों ने इस खबर को दबाये रखा।
जब मैं यह कहता हूं कि पूरी मीडिया को भाजपा ने खरीद लिया है, तो देशभक्‍तों की टोली मुझ को ट्रोल करना शुरू कर देती है। मुझे उस पर भी कोई ऐतराज नहीं, लेकिन दुख तब होता है कि जब हमारी पत्रकारिता अपने बिकाऊ चरित्र के चलते बड़ी खबरों को भी दबा-छिपा लाती है। बीती 19 जून की शाम को यही हुआ। पता चला कि भारतीय सेना के दस सैनिकों को चीन की सेना ने पिछले पांच दिनों से बंधक बना रखा था। शर्मनाक बात तो यह है कि इसका जिक्र न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में किया, न रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को इसके बारे में कोई खबर थी और न ही गृहमंत्री अमित शाह की जुबान खुल पायी। सच बात तो यही है कि हमारे इन सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण पदों पर आसीन ओहदेदारों को इस बारे में कोई खबर ही नहीं थी।
आज के सारे अखबारों को देख लीजिए। सब के सब मोदी के गुणगान में जुटे हुए हैं। चीनी सेना ने दस भारतीय जवानों को भारतीय सीमा पर रिहा कर दिया, लेकिन हिन्‍दू, नभाटा जैसे अखबारों ने ही इस खबर को मुल्‍क के लिए सबसे बड़ी खबर के तौर पर पहचाना और प्रस्‍तुत किया। अमर उजाला ने भी इसे पहले पन्‍ने पर छापा, लेकिन सिर्फ दो-तीन लाइनों भर ही। जागरण ने आखिरी पन्‍ने पर यह औपचारिकता निभाई, जबकि हिन्‍दुस्‍तान अखबार ने इस खबर को ऐसा हजम कर लिया जैसे यह कोई हादसा हुआ ही न हो। बाकी अखबार भी इसी शैली में बैठे रहे।
हां, रवीश कुमार ने इस मामले पर हस्‍तक्षेप करते हुए फेसबुक पर अपडेट किया है। रवीश ने लिखा है कि सैनिकों से क्रूरतम व्‍यवहार के बाद वतन को लेकर भी झूठ का परचम। लहरा लो साहिबानो। वो दस जवान तो जानते हैं जो क़ब्ज़े में थे और रिहा किए गए। इस बार विंग कमांडर अभिनंदन की वापसी की तरह वाघा बार्डर पर कैमरे नहीं थे। न चीन की सीमा से आने वालों के नाम। मगर सेना की यूनिट में पता होगा कि कोई आया है। इस बार इसे बड़ी कामयाबी के रूप में क्यों नहीं पेश किया गया ? क्यों नहीं ख़बरें चलीं कि भारत के दबाव में चीन को झुकना पड़ा। जैसा पुलवामा के वक्त हुआ था। आधिकारिक रूप से अभी तक खंडन नहीं आया है। शुक्रवार के हिन्दू अख़बार के पहले पन्ने पर यह ख़बर छपी थी। उसके बाद कई जगह छपी। तीन मेजर और एक कर्नल स्तर के अधिकारी चीन के क़ब्ज़े में थे। प्रधानमंत्री ने इसका ज़िक्र तक नहीं किया। बहादुरी के रूप में भी नहीं कि चीन को छोड़ना पड़ा। हम सब अंधेरे में हैं। उस भयावह मंजर के बारे में आधिकारिक और ग़ैर आधिकारिक सूचनाओं के बीच झूल रहे हैं। शहीदों को सलाम।

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