बोतलों और मुर्गों का दान-पुण्‍य करा दिया धर्मात्‍मा ने

मेरा कोना

प्रेस क्‍लब में गूंजा दलालों के साथ लत्‍तेरे की, धत्‍तेरे की

साधु-संतों की संगत वाकई आत्‍म-दर्शन और समझने का बेलौस मौका होता है। लेकिन जब रंगे-सियारों की टोली साधु-संत का भेस बना ले, तो मौका ज्‍यादा दिलचस्‍प हो जाता है। फिर आत्‍मदर्शन के अलावा दूसरे के हम्‍माम का दर्शन भी खूब होता है ना।

लखनऊ प्रेस-क्‍लब में बुधवार की शाम से देर रात तक कुमार सौवीर विरोधी गुट वाले अनेक पाखंडी साधु-संतों ने जमकर माघी-स्‍नान के लिए अनेक बोतलों की टोंटी खोल डाली और आचमन के लिए कई बकरा और दर्जनों मुर्गों का पोस्‍टमार्टमी दान-पुण्‍य अनुष्‍ठान कराया। जजमानी-धर्मात्‍मा थे मान्‍यताप्राप्‍त पत्रकार समिति के नेता हेमंत तिवारी समेत अनेक चिंटू-पिंटू टाइप लोग। उन्‍होंने टिहरी बांध में फंसी गंगा जैसी मदिरा को प्रयाग तक पहुंचाने के लिए पर्स से लाल-लाल नोटों की धार छोड़ी।

फिर विषय प्रवर्तन किया हेमंत ने। लेकिन देश या प्रदेश के बजट या राजनीतिक मसले जैसे मसलों पर नहीं, बल्कि निजी भड़ास उगली। बोले:- यह कुमार सौवीर पत्रकार नहीं, बदतमीज है। अंड-बंड जो भी मन करता है, बकता है। फेसबुक पर तो इसने गंदगी फैला दी है। नंगी गालियों से मन घिन्‍ना गया है। उसका साथी है भड़ास4मीडिया वाला यशवंत सिंह, जो पक्‍का ब्‍लैकमेलर है और इसी चक्‍कर में जेल भी जा चुका। इसीलिए तो मैं इन लोगों से दूरी बनाये रखता हूं। वैसे भी मेरे पास दूसरे जरूरी काम भी तो हैं। कौन पड़े कुमार सौवीर जैसे लोगों के पचड़े में।

अभी कुमारसौवीर-पुराण बांचा ही जा रहा था कि बाद दलाली पर चर्चा आ गयी। एक एजेंसी के एक वरिष्‍ठ पत्रकार ने वहां मौजूद कई पत्रकारों को दुत्‍कारते हुए कहा कि मैं ऐसे दलालों की दारू की नहीं, अपने पैसे से दारू खरीद कर पीता हूं। अम्‍बरीश भड़क गये तो जवाब देने के लिए एजेंसियाना पत्रकार ने वहां मौजूद ऐसे लोगों का वंश-वृक्ष यानी शिजरा पढ़ दिया। कई पत्रकारों को तो उलट-पुलट कर खूब चेक कराया। चेकिंग में कई पत्रकारों ने बढ़चढ़ कर हिस्‍सा बांटा।

कुल मिलाकर यह पार्टी का समापन सरभंड शैली में विखंडन हो गया। लेकिन कई लोगों को रंज और मलाल है कि कुमार सौवीर की करतूतों के बजाय सारा मामला पत्रकारों की दलाली और टांग-उखाड़ू कार्यक्रम की तरफ मुड़ गया। दलाली वाली गटर-गंगा के चुल्‍लू-चुल्‍लू भर कर उछाले गयी कीचड़ कई पत्रकारों के चेहरे पर पड़ गये जो अब तक अतीत को छुपाने की जुगत भिड़ाते रहे हैं।

चलो कोई बात नहीं। इस घटना से यह तो साफ पता चल गया कि दारू-गंगा के अवतरण और मुर्गानी दान-पुण्‍य के लिए ऐसे आयोजकों के पास पैसा भी बेहद अफरात है, और कुमार सौवीर के खिलाफ भड़ास भी इन लोगों में नाक तक भरी है।

तो बोलो:- मुर्गा-दारू वाली कुकड़ू-कूं की जय।

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