मैं चुप रहूंगा योर लॉर्डशिप। वर्ना लोग मुझे घेर कर मारेंगे

मेरा कोना

: नाराजगी तो महाधिवक्‍ता के व्‍यवहार पर था, लेकिन नोटिस चीफ-सेक्रेट्री पर : एक ओर वकीलों की दुनिया है, दूसरी ओर है न्‍याय-पीठ, इन दोनों से बच पाया तो सरकार मुझे चांप लेगी : इस तरफ कुआं, उस तरफ खाई, अब यह तो बताओ योरऑनर कि मैं किधर जाऊं : मैं कत्‍तई नहीं बोलूंगा माई-बाप :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आखिरकार मैं अब क्‍या करूं योर ऑनर। उनकी तरफ का पसरा सच लिखूंगा, तो अधिवक्‍ताओं के बार से झगड़ा हो जाएगा। बीच का सच लिखता हूं तो सरकार चांप कर दो-हत्‍थड़ मार कर रसातल का टिकट थमा देगी, और अगर इन दोनों की तरफ का सच लिखता हूं, तो माई-बाप आप मुझे चांप कर चियार देंगे। और अगर खामोश रह जाता हूं तो इतिहास मुझे माफ नहीं करेगा। हर क्षण-छिन-पल मुझे मौत का सामना करना पड़ेगा। मैं तो बेमौत मारा जाऊंगा हजूर।

इसीलिए मैंने तय किया है कि मैं न तो कुछ बोलूंगा, और न ही कुछ लिखूंगा माई-बाप

मेरी समझ में ही नहीं आ रहा है कि न्‍याय किस ओर हिलोरें लेता है हजूर। इस तरफ कुआं, तो उस तरफ खाई, अब यह तो बताओ योरऑनर कि मैं किधर जाऊं। मैं तो बड़ी झंझट में फंसता जा रहा हूं सरकार। न कोई गली-कुलिया दिख रही है, न कोई राष्‍ट्रीय राजमार्ग। खड़ंजे की ओर निकलता हूं, तो लकड़बग्‍घों का खतरा बना रहेगा। आसमान तेजाबी बारिश कर सकती है, जमीन पर बवण्‍डर-भूकम्‍प आ सकते हैं, जबकि पाताल में जलजला का अंदेशा है।

इसीलिए मैंने तय किया है कि मैं न तो कुछ बोलूंगा, और न ही कुछ लिखूंगा योर ऑनर

लिख कर कौन अपनी जान पर बवाल ले लॉर्डशिप। करीब पचीस साल पहले का किस्‍सा किसे नहीं याद है, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खण्‍डपीठ की एक डबल-जज की बेंच पर हमला हुआ था। हजूर, सब जानते हैं कि तब क्‍या-क्‍या नहीं हुआ था। स्‍तवन-गीत पढ़े गये थे। पवित्रतम ग्रंथों के श्‍लोक-सूरा की तरह सस्‍वर। सिस्‍टमेटिक। सारे स्‍त्रीगत रिश्‍तों पर केंद्रित गीतों का आशु-सम्‍बोधन किया गया था। मर्यादा-पुरूषोत्‍तम श्रीराम की चरण-पादुकाओं का यत्र-तत्र-सर्वत्र प्रयोग किया था रघुकुल के भरत-वंशियों ने। ऐसी-ऐसी सुनामियां आयीं, कि बस बोलो मत।

इसीलिए मैंने तय किया है कि मैं न तो कुछ बोलूंगा, और न ही कुछ लिखूंगा अन्‍नदाता

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जस्टिस और न्‍यायपालिका

आपने वह तस्‍वीरें तो खूब देखी, निहारी होंगी, जिसमें एक पूर्व सांसद को लेकर न्‍याय के प्रतिबद्ध वकीलों का झुण्‍ड हाईकोर्ट के ठीक सामने उस सांसद का सरेआम अनुष्‍ठान कर रहा था। ठीक उसी तरह जैसे उपनयन संस्‍कार की तैयारी चल रही हो, जिसे जनेऊ कार्यक्रम के तौर पर पहचाना जाता था। जातक के सारे कपड़े उतार कर। शरीर की क्षमता को परखने के लिए इन न्‍याय-सैनिकों ने उस सांसद को जमकर उसके अंग-प्रत्‍यंग को जमकर ठोंका-बजाया। ऐसे प्रयोगों में रक्‍त तो निकल ही जाता है, मल-मूत्र तो भय से ही दाखिल-खारिज की तरह हो जाता है। इसलिए डोंट वरी। इस बेमिसाल और अभिनव प्रयोग पर पत्रकारों ने खूब लिखा, लेकिन…

इसीलिए मैंने तय किया है कि मैं न तो कुछ बोलूंगा, और न ही कुछ लिखूंगा न्‍याय-रक्षक

महोदय, लखनऊ का नाम अब्‍दुल अलीम शरर, अमृतलाल नागर, डॉ योगेश प्रवीन या प्रो बलराज चौहान की लिखी किताबों से नहीं मशहूर है, बल्कि अब तो यहां के न्‍याय-सैनिकों के अटूट और अदम्‍य साहस व शौर्य से पहचाना जाता है। अब आप खुद ही देखिये न, कि आपके न्‍याय-सैनिकों ने किस तरह दो-फाड़ करके परस्‍पर प्रेम-सद्भाव का का प्रदर्शन किया था। अदालत की सातवीं मंजिल पर, जैसे अखाड़े में दंगल चल रहा हो। वह तो वह मूर्ख सीधे एक याचिका लेकर हाईकोर्ट पहुंच गया, और बोला कि मुझे मारा है, बुरी तरह। जज साहब ने मामला सीबीआई को भेज दिया, कई लोग टांग-लाद कर जेल भेज दिये गये। लेकिन फिर मामला टांय-टांय फिस्‍स

इसीलिए मैंने तय किया है कि मैं न तो कुछ बोलूंगा, और न ही कुछ लिखूंगा मिस्‍टर जस्टिस

महोदय, जिस तरह पूरा देश गो-रक्षकों के महानतम कर्मकाण्‍डों की जयजय कार कर रहा है, जस्टिस ऐट द स्‍पॉट किया जा रहा है। अर्थ यह कि घटनास्‍थल पर ही न्‍याय किया जाए। इस तथ्‍य लाओ, उस हाथ न्‍याय ले जाओ की सुमधुर स्‍वर-लहरियां गूंज रही हैं, वह प्रशंसनीय है लॉर्ड शिप। इन न्‍याय-सैनिकों के इस स्‍तुत्‍य महती-प्रयासों का ही परिणाम दिख रहा है कि लोगों में जस्टिस-ऐट-द-स्‍पॉट के प्रति अगाध श्रद्धा और सम्‍मान का भाव जागृत होना शुरू हो गया है। वे परम्‍परागत न्‍याय-परिसरों की उबाऊ प्रक्रिया से आजिज आ रहे हैं। आप गौर कीजिए कि किस तरह यादव सिंह को कोर्ट के ठीक सामने दण्डित कर दिया गया था। प्रदेश के लगभग सभी न्‍याय-परिसरों में इसी तरह की परम्‍परा इस समय पुष्पित और पल्लवित हो रही है। बधाई के पात्र हैं यह सारे न्‍याय-सैनानी गण।

इसीलिए मैंने तय किया है कि मैं न तो कुछ बोलूंगा, और न ही कुछ लिखूंगा दण्‍डाधिकारी

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अधिवक्‍ता-वकील

अब आप स्‍वयं देखिये कि किस तरह प्रदेश के महाधिवक्‍ता बेहद व्‍यस्‍त होते हैं। कार्याधिक्‍य से लस्‍त-पस्‍त पूरा शासकीय न्‍याय-सेनानियों के कुल-पुरूष के पास जब समय ही नहीं मिलता, तो वे कैसे आपकी अदालत पर पहुंच पाते। आपने कई-कई बार बुलाया, लेकिन बिजीनेस इत्‍ती थी कि वे नहीं पहुंच सकते थे। ऐसे में नहीं ही पहुंचे। आप भी इस समस्‍या को खूब पहचानते थे, इसलिए आपने सीधे मुख्‍य सचिव को नोटिस जारी कर दी। महाधिवक्‍ता को इसलिए अलग कर दिया, क्‍योंकि जब वे इतने ही व्‍यस्‍त रहते हैं, तो फिर उन्‍हें ज्‍यादा परेशान करने का क्‍या औचित्‍य।

इसीलिए मैंने तय किया है कि मैं न तो कुछ बोलूंगा, और न ही कुछ लिखूंगा महा न्‍याय-अधिष्‍ठाता

आज हालत यह है कि पूरे यूपी में वकीलों के पवित्रतम आंदोलनों से न्‍याय-परिसर ही नहीं, बल्कि पूरा प्रदेश न्‍याय-न्‍याय चिल्‍लाता है। ऐसे पुनीत आंदोलनों के बल पर अदालतें बंद करा दी जाती हैं। बात-बात पर संघ-हित के नारे लगते हैं। तारीख पर तारीख पड़ती है। आम आदमी लुटता है, बेहाल हो जाता है, पूरी उम्र अदालतों में खटते हुए चुक जाती है। दस करोड़ की डील होने पर गायत्री प्रजापति की जमानत दे दी जाती है। बड़े रोचक षडयंत्र होते हैं और इसके लिए तीन दिन पहले रिटायर होने वाले उस जज को नयी पोस्टिंग दे दी जाती है। मामला खुलने पर जज को निलम्बित कर दिया जाता है, और जिला जज को चंदौली का जिला जज बना दिया जाता है। लेकिन इस आपराधिक कृत्‍य को क्राइम-एगेंस्‍ट-स्‍टेट नहीं माना जाता है, जिसमें पुलिस को एफआईआर दर्ज करने की अनिवार्यता होती है।

इसीलिए मैंने तय किया है कि मैं न तो कुछ बोलूंगा, और न ही कुछ लिखूंगा महा-उदय

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