: मोटी-मोटी सोने की जंजीरें लादे घूमते हैं पूर्वांचल के डिग्री शिक्षक : शिक्षा के अलावा हर विद्या में महारथी हैं तोप-तमंचे वाले मास्टर : बधाई हो शिक्षकों। समर बहादुर सिंह जीत गये, अब होगीं पार्टियां :
कुमार सौवीर
लखनऊ : जौनपुर में आज मेरा पहला दिन है। शाम को मेरे तीन चिकित्सक मित्र कई दिनों बाद मिले, तो बहुत आग्रह के साथ मुझे विख्यात टीडी कालेज के सामने बने अनुपम जलपान गृह ले गये। यहां खासी भीड़ रहती है। लेकिन आज ज्यादा ही थी। वजह यह कि पूर्वांचल विश्वविद्यालय सम्बद्ध कालेजेज टीचर्स एसोसियेशन का तीन-साला चुनाव आज सम्पन्न हो गया। शाम का वक्त था, लेकिन इस रेस्टोरेंट में बेहद रेलम-पेल थी। जाहिर है कि सब से ज्यादा टीचर्स ही थे। बाहर भी खासी चहलकदमी थी। गुटों में शिक्षक बतिया रहे थे।
मैंने गौर से एक गुट को देखा। उसमें कोई सात-आठ शिक्षक थे। सब लक-दक। उनमें से पांच टीचरों के गले में एक-दो नहीं, सोने की तीन-चार मोटी-मोटी जंजीरें और हाथों में भारी ब्रेसलेट। ऐसी जंजीरें आम तौर पर पालतू लेकिन खूंख्वार कुत्तों को बांधने के लिए इस्तेमाल की जाती हैंं। इनमें से तीन की कमर में तो रिवाल्वर-पिस्टल तो लटक रही थी।
मैं हैरत में था कि इन शिक्षकों को अपनी कमर में यह तोप-तमंचा बांधने की क्या जरूरत पड़ती है। इतना ही नहीं, एक शिक्षक को इतना पैसा कहां से मिल जाता है कि वह माेटी-मोटी सोने की जंजीरें अपने गले में बांधे घूमता रहे। इतनी रकम वेतन से तो हर्गिज नहीं खर्च हो सकती। और आपके पास पुश्तैनी रकम अगर है तो उसका एेसा वीभत्व प्रदर्शन करने का औचित्य है।
सवाल कई हैं। एक शिक्षक अपने मेधा का प्रदर्शन और ज्ञान का वितरण करता है, या फिर अपने घटिया ऐश्वर्य का प्रदर्शन। वहां मौजूद एक मित्र फिजीशियन ने मुझे चर्चा के दौरान बताया कि इनमें से अधिकांश के अपने निजी डिग्री व इंटर कालेज हैं। जाहिर है कि इनमें अपने इस शिक्षण से इतर से धंधों से इतना वक्त ही नहीं निकल सकता है कि वे अपने कालेज में छात्रों को पढा़ सकें। कई शिक्षक तो बाकायदा लखनऊ, दिल्ली एनसीआर में प्लाटिंग तक का धंधा करते हैं। कई के बारे में तो कुख्याति है कि वे केवल वेतन आने के लिए ही कालेज आते हैं। कई शिक्षकों को तो शिक्षण छोड़कर बाकी सारा काम रट्टू-तोता की तरह रटा रहता है। शाम की उनकी अड़ी-फड़ी कई शिक्ष्कों के बारे में खूब मशहूर है।
धन्य हो गुरू जी। तुम्हें देख कर यकीन नहीं होता है कि तुम उस तिलकधारी सिंह के वंशज हो, जिसने प्रथम विश्वयुद्ध में शिक्षा को अपना हथियार बनाया और देशवासियों को शिक्षा के असलहे थमाने का अद्भुत युद्ध छेड़ दिया। लेकिन तिलकधारी सिंह के एक सौ साल बाद तुम्हारे वंशज इतने-इतने-इतने बदल गये। हैरत की बात है कि तुम तो बिलकुल कलंक निकलते जा रहे हो धंधेबाज मास्टर साहब। तुम ने तो अब उस दोहे का चीर-हरण कर दिया जिसमें गोविंद-गुरू के सामने तुम्हारा चरण-वंदन की सीख व्यक्त की गयी है। धन्य हो कलिजुगी गुरू, तुम धन्य हो। आओ, अपना ही चरण-अमृत धोकर अपने गिलास में डाल कर उदरस्थ कर मस्त होकर अपनी शाम मस्त करो गुरू।
खैर, रेस्टोरेंट से बाहर निकलते ही पता चला कि शिक्षक संघ चुनाव का नतीजा आ गया है और समर बहादुर सिंह चुनाव जीत गये हैं।