तुम हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट बनाने पर क्‍यों आमादा हो शशिशेखर

मेरा कोना

: खबर क्‍या थी और उस पर हिन्‍दुस्‍तान अखबार ने कौन सी फोटो छाप दी : देखिए अंकल ! हमारे लखनऊ में जो हाईकोर्ट बना है एकदम सुप्रीम कोर्ट के ही जैसा है : जब तक इस अखबार को मणिकर्णिकाघाट तक स्‍वाहा नहीं कर पायेंगे, चैन नहीं मिलेगा शशिशेखर को :

शुभम पाण्‍डेय

लखनऊ : एक दौर हुआ करता था कि पाठक लोग अपनी जिज्ञासाएं खोजने के लिए पूरे विश्‍वास और आस्‍था के साथ हिन्‍दुस्‍तान अखबार खोजते, पढ़ते और उस पर छपी खबरों पर बातचीत किया करते थे। लेकिन अब यह अखबार लगातार बकवास के गटर में धंसता जा राह है। 8 जनवरी-18 की शाम जब पास अख़बार पढ़ रहे एक बच्चे ने मुझसे कहा कि,- ”देखिए अंकल ! हमारे लखनऊ में जो हाईकोर्ट बना है एकदम सुप्रीम कोर्ट के ही जैसा है।” मैंने कहा नहीं बेटा ऐसा नहीं है। बच्चे ने कहा “यह देखिए अंकल।” और हिंदुस्तान समाचारपत्र का मुख्यपृष्ठ मेरे सामने रख दिया। वास्तव में उसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ शाखा के द्वारा दिए गए एक आदेश के साथ ‘सुप्रीम कोर्ट’ की तस्वीर छपी थी।

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पत्रकार

मैंने दुःखी मन से बच्चे को समझाया कि बेटा वह दिन गए जब हम अखबारों से जानकारियां लेकर ज्ञानार्जन करते थे। अब तो समय ज्यादातर पत्रकारों का दलाली में लिप्त होने तथा मालिकों व संपादकों का सत्ताधारियों के आगे नतमस्तक होने का है। ‘समाचार की गुणवत्ता’ तो अब इन्हें फ़िजूल का काम लगती है।

हिंदी भाषी पाठकों के लिए वर्ष 1936 में एक दैनिक समाचार पत्र ‘हिंदुस्तान’ की शुरुआत की गई। यह समाचार पत्र अपने शुरुआती दिनों से ही निष्पक्ष, निर्भीक एवं सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ विश्वसनीय तथ्यों को प्रदान करते हुए अपने पाठकों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करता रहा; जिसके परिणामस्वरूप ‘हिंदुस्तान’ समाचार पत्र हिंदी भाषी पाठकों के लिए प्रथम विकल्प बन गया। जब भी किसी सामाजिक-राजनीतिक रुप से जागरुक व्यक्ति से कोई पूँछता कि हिंदी में कौन सा अख़बार पढ़ना ठीक रहेगा, तो लोग बेहिचक नाम लेते थे- ‘हिंदुस्तान’ ।

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हिन्‍दुस्‍तान, जोश नयी उमंगों का

लेकिन हाल के दिनों में विभिन्न मुद्दों पर अपने विचारों से, भ्रामक जानकारियों से(विज्ञापन तो खैर छोड़िए ही) तथा बड़ी-बड़ी त्रुटियों को भी अपनी आदत में शुमार करके; इस समाचार पत्र ने पाठकों में अपनी विश्वसनीयता को न सिर्फ कम किया है बल्कि सजक पाठकों की नज़र में लगभग खो दिया है। ‘हिंदुस्तान’ का नियमित पाठक होने के कारण यह बात मेरे लिए और भी दुःखद है। 

मैंने इस सम्बन्ध में अपने आसपास के लोगों से भी कई बार चर्चा की। यहाँ तक कि हिंदुस्तान समाचार पत्र के प्रधान संपादक शशि शेखर जी को इस सम्बन्ध में लिखा भी। मुझे याद है कि जब मैंने कुछ दिनों पहले इस संदर्भ में एक ट्वीट किया था तो हिंदुस्तान की प्रधान संपादक रही ‘मृणाल पाण्डेय’ जी ने अपनी प्रतिक्रिया भी दी थी, किन्तु शशि शेखर जी मौन रहे! बल्कि मैंने शशि शेखर जी को इस ट्वीट में संदर्भित भी किया था। लेकिन मैं कर ही क्या सकता था ; इसलिए इस समाचार पत्र को पढ़ने से बचने लगा।

आप अगर शुभम् पाण्डेय से सम्‍पर्क करना चाहते हों तो उनके ईमेल एड्रेस shubhampandey828@gmail.com पर सम्‍पर्क कीजिएगा

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