ज्‍यादातर पति-प्रेमी ही सिखाते हैं औरतों को नशे की लत

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

अपमान, गुस्सा व खुद की असहायता है स्त्रियों में नशा

यूएनओडीसी के शोध ने कई खुलासे किये नशाखोरी पर : बदले सामाजिक हालातों और तेज भौतिकवाद भी प्रमुख कारक : पारिवारिक कलह और डाक्‍टरों की दवाओं के गलत इस्‍तेमाल से भी हालत गंभीर :

एक अरब से अधिक आबादी वाले इस देश में लगभग 30 लाख लोग ड्रग सेवन की लत के शिकार हैं (कुल आबादी की लगभग 0.3 फीसदी)। इसमें शराब की लत से पीड़ित लोग शामिल नहीं हैं। यह आबादी विभिन्न सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक व भाषायी पृष्ठभूमि से आती है। यह लत किसी न किसी रूप में पूरी दुनिया में पाई जाती है। भारत में शराब, अफीम और भांग के दुरुपयोग के उदाहरणों की कोई कमी नहीं है।

भारत औषधीय उद्देश्यों के लिए अफीम का सबसे ज्यादा उत्पादन और आपूर्ति करने वाला देश है। इसके अलावा, यह दुनिया में अफीम की खेती करने वाले एक बड़े क्षेत्र के नजदीक भी है। उत्तर-पश्चिम में अफीम का ‘गोल्डन क्रीसेंट’ है, तो उत्तर-पूर्व में ‘गोल्डन ट्राएंगल।’ ये दोनों ही क्षेत्र भारत को मादक पदार्थों की लत के मामले में असुरक्षित बनाते हैं और नशीले पदार्थों की तस्करी के रास्ते खोलते हैं।

वर्षों तक पारंपरिक बंधनों, प्रभावी सामाजिक वजर्नाओं, आत्म-संयम पर जोर और समुदाय व संयुक्त परिवार के नियंत्रणों के जरिये इन पर काबू पाने की कोशिश होती रही। लेकिन औद्योगीकरण, शहरीकरण व विस्थापन ने सामाजिक नियंत्रण के पारंपरिक तरीके खत्म कर दिए। ऐसे में कई लोग खुद को आधुनिक जिंदगी के तनाव व दबाव से घिरा पाते हैं। यही दोहरी चुनौती है, जो किसी आम इंसान या सेलिब्रिटी पर हावी होती जा रही है। महानगरीय चकाचौंध में किसी पुल के नीचे, किसी रेलवे ट्रैक के किनारे, बंद शॉपिंग सेंटर के परिसर के आस-पास मादक द्रव्यों के नशे में धुत विक्षिप्त इंसानों में इन्हीं चुनौतियों की मार दिखती है, तो वहीं आलीशान कोठियों व कई धंधों के मालिक, अपने इर्द-गिर्द हमेशा कैमरा, फ्लैश लाइट को देखने वाले बड़े सितारों में भी। दरअसल, सामाजिक परिवेश में आ रहे तेज बदलावों ने अन्य कारकों के साथ मिलकर नशाखोरी को काफी बढ़ावा दिया है। देश में, खास तौर पर पूर्वोत्तर राज्यों में सिंथेटिक ड्रग्स व इंटरविनस ड्रग के इस्तेमाल ने भी इस संकट को बढ़ाया है।

30 लाख ड्रग पीड़ितों के मोटे अनुमान को कई माध्यमों से जुटाया गया। यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स ऐंड क्राइम (यूएनओडीसी) और इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (आईएलओ) ने सरकारी संस्थाओं के साथ सहयोग से ये आंकड़े जुटाए, जिनमें ड्रग सेवन से पीड़ित लोगों की सही प्रोफाइल तैयार की गई और ड्रग एब्यूज के ट्रेंड, पैटर्न व उसकी सीमाओं के अध्ययन किए गए। मादक पदार्थों से जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिए दो तरह की दीर्घकालिक नीति कारगर साबित हो सकती है: पहली, आपूर्ति में कटौती और दूसरी, मांग में कमी। आपूर्ति में कटौती तो कानून व्यवस्था लागू करने वाली संस्थाओं और आबकारी व राजस्व विभाग आदि के हाथों में है। दूसरी तरफ, मांग में कमी लाना सामाजिक क्षेत्र की जिम्मेदारी है।

इस तरह, पूरे देश में मादक पदार्थों से छुटकारे की जिम्मेदारी कई सरकारी व गैर-सरकारी संगठनों की बनती है। वर्षों से यह महसूस किया जा रहा है कि मादक पदार्थों का सेवन मादक पेय व ड्रग की उपलब्धता से जन्मी समस्या नहीं है, बल्कि सामाजिक हालात से भी इसका गहरा रिश्ता है, जो ऐसे नशीले पदार्थों की खपत और उसकी मांग की स्थितियां पैदा करते हैं। इसलिए भी आधुनिक समाज के खतरे नारकोटिक व साइकोट्रॉपिक ड्रग के सेवन में उत्प्रेरक की भूमिका निभाते हैं।

पुरुषों में मादक पदार्थों की नशाखोरी की तीन वजहें हैं- पहली, पिअर प्रेसर यानी संगति का असर या दबाव, दूसरी, सामाजिक हालात और तीसरी पर्सनैलिटी फैक्टर। अक्सर, यह देखा गया है कि पर्सनैलिटी फैक्टर में आनुवांशिक कारक अपनी भूमिका निभाता है। अगर माता-पिता में ड्रग लेने की प्रवृत्ति है, तो वह बच्चों में भी आ सकती है। जहां तक सामाजिक हालात का मसला है, तो इसमें हम देख चुके हैं कि तनाव, भय, दबाव, चिंता जैसी वजहें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सेलिब्रिटी के पास जितनी संभावनाएं होती हैं, उन्हें बनाए रखने व खो देने की चिंताएं भी उतनी ही अधिक होती हैं। यहां ‘रिस्क फैक्टर’ भी ज्यादा होता है। वे ‘कुछ’ की चाह में ‘कुछ’ दांव पर लगा देते हैं और अगर सब गंवा बैठे, तो गम व हताशा के अंधेरे में चले जाते हैं।

जिंदगी में फर्श और अर्श, दोनों को देखने वाले इंसानों में ड्रग लेने की लत देखी गई है। चोटी के फुटबॉलर डिएगो माराडोना मारिजुआना का सेवन करने के आरोप में पकड़े गए थे। उनका बचपन तंगहाली में गुजरा और बाद में वह सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर बने, पर न तो वह शोहरत के बोझ को संभाल पाए और न ही पूंजी के दबाव को। हालांकि, यह असर हर व्यक्ति में अलग-अलग होता है। मशहूर अभिनेता संजय दत्त इस दलदल से बाहर निकलने में सफल रहे थे। तीसरी वजह, पिअर प्रेशर है, जो बच्चों, युवा और कॉरपोरेट कल्चर में ज्यादा है। अक्सर दूसरों की देखा-देखी, डींग मारने के लिए, अपने को बड़ा साबित करने और पार्टी में सोशल स्टेटस हासिल करने के लिए लोग ड्रग लेते हैं।

यूएनओडीसी के अध्ययन के मुताबिक, महिलाओं में ड्रग सेवन की लत के अधिकतर मामलों में दोस्त बड़ी भूमिका निभाते हैं। 48 फीसदी महिलाएं इसीलिए नशे की शिकार बनती हैं। वहीं, 16 फीसदी महिलाओं को ड्रग लेने के लिए सबसे पहले उसके पति या पार्टनर ने तैयार किया। मुंबई में ड्रग सेवन की शिकार 13 फीसदी महिलाएं बताती हैं कि उन्होंने अपमान, गुस्सा व खुद को असहाय पाने की हालत में ड्रग का इस्तेमाल शुरू किया। इसके अलावा, वैवाहिक कलह और डॉक्टर द्वारा दी गई दवाओं के गलत इस्तेमाल से भी यह प्रवृत्ति बढ़ी है। इस लत को कम करने की कोशिश में शिक्षा, इलाज, पुनर्वास व समाज की मुख्यधारा में फिर से शामिल करने जैसी चुनौतियां अहम होती हैं। इसके लिए स्वयंसेवी संस्थाएं और उनके कार्यकर्ता जागरूकता व रोकथाम कार्यक्रम चलाते हैं। साथ ही लोगों को ड्रग के बारे में जानकारी दी जाती है और परामर्श केंद्रों में पीड़ितों का इलाज किया जाता है।

इसके लिए ट्रीटमेंट-कम-रिहैबिलिटेशन सेंटर भी स्थापित किए गए हैं। कामकाजी क्षेत्रों में यह प्रवृत्ति न बढ़े, इसके लिए वर्कफोर्स प्रिवेंशन प्रोग्राम हैं। समुदाय आधारित पुनर्वास कार्यक्रमों को मजबूती देने की दिशा में भी स्वयंसेवी संस्थाएं जुटी हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि लत अपने आप में एक बीमारी है, जो लगातार बढ़ती है और जानलेवा है। अगर समय रहते इसे रोका न जाए, तो यह लाइलाज भी है। मादक पदार्थों की नशाखोरी अंतत: मौत की वजह बनती है। लेकिन यह भी जानना जरूरी है कि दूसरी बीमारियों की तरह ही लत से छुटकारा पाया जा सकता है, बशर्ते हम संयमित जिंदगी जीने को तैयार हों।

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