राष्ट्र के कुल घी-उत्पादन में 7 फीसदी हिस्सेदार हैं दीनानाथ
कुमार सौवीर
: शठे शाठ्यं समाचरेत के साथ ज्योतिष पर भी आस्था रखते हैं दीनानाथ झुनझुनवाला : गुजरात में होता तो 10 और विदेश में मैं 100 गुना बड़ा होता : जवानी तक तो हर सपना कदम-कदम पर ध्वस्त ही होता रहा : बेहद कष्टप्रद गुजरा है दीनानाथ का भागलपुर में बचपन : भाईचारा घरेलू समारोहों में तो चलता है, मगर व्यापार में नहीं : सिक्योरिटी से कोई भी सिक्योर नहीं हो सकता, आत्मबल से बड़ी सुरक्षा किसी में नहीं : एक बार बड़े बदमाश की जमकर कुटम्मस करा चुके हैं दीनानाथ झुनझुनवाला : लीजेंड्स आफ बनारस :
वाराणसी : देश को कुल वसा की खपत का सबसे बड़ा सात फीसदी हिस्सा वे अकेले पूरा करते हैं। उनकी वनस्पति फैक्ट्री देश में इकाई के तौर पर सबसे बड़ी है। उनके पास दो हजार से भी ज्यादा श्रमिक नहीं, कर्मयोगियों की फौज है। तीस साल पुराने उनके व्यवसाय में कभी कोई बड़ी श्रमिक समस्या खड़ी नहीं हुई। वे दुष्टों के साथ यथोचित व्यवहार के हिमायती हैं और आपराधिक हरकतों के लिए कुख्यात पूर्वांचल के कठिन हालातों के बावजूद उनसे कभी किसी ने रंगदारी नहीं मांगी। उम्र के 72 वसंत देख चुके इस बहुआयामी व्यक्तित्व के व्यक्ति ने आज का काम कल पर कभी हर्गिज नहीं छोड़ा। उनका मानना रहा है कि कल जब भी आयेगा तो आज ही बन कर आयेगा।
तो यह है उस व्यक्ति का परिचय जो अच्छा उद्यमी है, अच्छा लेखक है, अच्छा कार्यकर्ता है, अच्छे स्वास्थ्य का धनी है और अच्छी कद-काठी का भी स्वामी है। वह धर्म और कर्म में फर्क समझता है तथा साथ ही अपने सामाजिक दायित्वों को भी बखूबी समझता है। इस शख्स ने वह कहावत तक चरितार्थ कर दी जिसके अनुसार जहां न पहुंचे गाड़ी, वहां पहुंचे मारवाड़ी। लेकिन इतने गुण एकसाथ होने के बाद भी इस व्यक्ति के पास समय की कोई समस्या नहीं है। वे आज भी पूरी गम्भीरता के साथ अपने व्यावसायिक कामकाज को तो निपटाते ही हैं, अपने स्वाध्याय और लेखन के साथ ही व्यायाम के प्रति भी कड़ा अनुशासन कायम रखते हैं। विभिन्न संस्थाओं, संगठनों के साथ ही निजी प्रतिष्ठानों द्वारा समाज को प्रेरित करने वाले व्याख्यानों में भी बढ-चढ कर भाग लेते हैं। न जाने कितने लोगों की बन्द हो चुकी फैक्ट्री को दोबारा चलाने लायक मजबूत मदद भी वे कर चुके हैं।
आज देश के कुल घी-उत्पादन उपक्रम में 7 फीसदी हिस्सेदार बन चुके दीनानाथ झुनझुनवाला झुनझुनवाला वनस्पति के मालिक हैं। लेकिन बीते दौर में दीनानाथ झुनझुनवाला को एक दमड़ी तक नहीं मिलती थी जेबखर्च के लिए। जीवन के शुरूआती दौर में सपने इस बुरी कदर टूटे कि दूसरा कोई भी शख्स होता तो खुद भी टूट जाता। मेले-ठेलों-हाटों पर भागलपुर के आसपास मीलों दूर दूरस्थ बज्र देहात तक पहुंचकर कपड़ों की फेरी लगाकर बड़ी मुश्किल से परिवार का भरण-पोषण कर पाने वाले हनुमानदास झुनझुनवाला के नौ बच्चों में से छठवें नम्बर पर 22 जनवरी सन 34 को भागलपुर में जन्मे थे दीनानाथ।
स्कूल में खूब मार खाई मास्टरों की। हाईस्कूल तक पढाई के बाद वे अपने भाई और साबुन-विक्रेता प्रयागदास के पास बनारस आ गये। वे बीएचयू से ओद्योगिक रसायन विषय से पढाई करना चाहते थे, लेकिन भाई ने कहा कि इंजीनियर बन कर क्या करोगे? सो पढाई छोड़ दी। फिर एलएलबी में दाखिला लिया, लेकिन भाई के कहने पर वह भी छोड़ दिया और तक बाजार में पूरी तरह छाये ब्रिटेनिया की जगह पारले की एजेंसी ले ली। यह जीवन की बड़ी चुनौती थी। महसूस किया और एक रात फूट-फूट कर रोये, संकल्प किया और केवल तीन महीनों में ही बाजार उलट दिया। लोगों की जुबान पर चढे स्वाद को दीनानाथ की मेहनत ने बदल दिया। बंबई में भारत के सर्वश्रेष्ठ विक्रेता के तौर पर कम्पनी ने पुरस्कृत किया। ( जारी )
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(यह लेख लेखक के निजी विचार हैं)
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