भाईचारा घरेलू समारोहों में चलता है, व्यापार में नहीं
कुमार सौवीर
: एक बार एक बदमाश को जमकर पिटवा भी चुके हैं दीनानाथ झुनझुनवाला : बिस्कुट का धंधा शुरू किया तो 3 महीने में ही देश के सर्वश्रेष्ठ उपाधि हासिल कर ली : आप प्रयास तो कीजिए ना, हर चीज स्वर्ण है। हां हां, मलमूत्र भी : लीजेंड्स आफ बनारस :
( गतांक से आगे ) लेकिन यहां से फिर एक विचार जन्मा कि इतनी मेहनत अपने लिये क्यों नहीं ? सन 76 में आशापुर में 30 टन प्रतिदिन क्षमता की आयल मिल स्थापित की जो चावल के कनों से तेल निकालती थी। शठे शाठ्यं समाचरेत। तीन भाइयों ने एकसाथ शुरू किया था यह काम, मगर एकसाल के भीतर ही विवाद उभरे और अंततः यह फैक्ट्री दीनानाथ के हाथ आ गयी।…मैं निर्माता नजरिये का भी था जबकि मेरे भाई विशुद्ध विक्रेता। नहीं पट सकी। दीनानाथ साफ तौर पर कहते हैं कि:- भइया, धंधा तो धंधा होता है, वाणिज्यिक संबंधों में भावनाएं नहीं चल सकतीं हैं। सीधी बात है कि भाईचारा घरेलू समारोहों में चलता है, व्यापार में नहीं। तब वहां केवल भावनाएं ही चलती हैं। लेकिन धंधा तो तर्क मांगता है ना। उद्यमी दूसरों की बात भी धैर्य से सुनता है। वह अपनी बात थोपता नहीं। खैर, दो साल में फैक्ट्री की क्षमता 60, दो साल बाद 100 और फिर ढाई सौ टन तक पहुंच गयी। इसके साथ ही कई वेजीटेबल आयल रिफाइनरी भी लगायीं। पशु चारा फैक्ट्री भी लगी। सन 89 में जौनपुर के नाऊपुर में 25 टन प्रतिदिन की क्षमता से शुरू वनस्पति फैक्ट्री दो साल में ही 250 टन तक पहुंची।
वे कई धर्मार्थ संस्थाओं से भी जुड़े हैं। हास्य कलश, चरित्र, प्रेरक प्रसंग, अमृत कलश, आपका स्वास्थ्य आपके हाथ आदि कई किताबों के साथ उन्होंने एक पुस्तक और भी लिखी है। वह है सफल उद्यमी कैसे बनें। जाहिर है कि उनका मकसद केवल उद्यम चलाना और उसकी श्रीवृद्धि करना ही नहीं है, बल्कि वे तो चाहते हैं कि कैसे भी हो, लेकिन देश में उद्यमिता का विकास किया जाए। झुनझुनवाला बताते हैं कि यह केवल किसी व्यक्ति विशेष के विकास का प्रश्न नहीं है, बल्कि इस बारे में तो पूरे देश को ध्यान देना होगा। वे जोर देते हुए कहते हैं कि सार्थक उद्यमी ही देश के विकास में अपनी प्रभावी भूमिका अदा कर सकता है।
झुनझुनवाला को अपने व्यवसाय में कभी कोई गम्भीर धमकी नहीं मिली। वैसे, उन्हें ऐसी धमकियों की कभी परवाह भी नहीं की। दीनानाथ का ब्रह्म-वाक्य है कि:- सिक्योरिटी से कोई सिक्योर नहीं हो सकता। सुरक्षा-भाव तो हम, आप, इन्हें, उन्हें होनी चाहिए। आत्मिक सुरक्षा से बढ़कर कोई सुरक्षा नहीं हो सकती है। हां, उन्होंने इतनी सावधानी यह जरूर रखी कि गुंडों-बदमाशों से सम्पर्क नहीं रखा। उनका साफ मानना है कि…उनकी सहायता लेने वाले लोग ही उनका शिकार बनते हैं। गुंडा-बदमाश और गुंडई की बात उठने पर वे हठाकर हंसते भी हैं। दरअसल, बीच में एक बार दुष्ट आदमी की लम्पट हरकतों से निपटने के लिए उन्होंने उसे पिटवाया भी।
वे कहते हैं कि ध्वस्त न्यायिक प्रणाली के चलते ही यह सारी दिक्कत है। आज मैं गुजरात या महाराष्ट्र में होता तो दस गुना आगे होता और विदेश में होता तो सौ गुना। उन्हें दुख है कि यूपी में यहां सिस्टम नाम की कोई चीज ही नहीं है। सरकारी विभाग अपनी ताकत का प्रदर्शन उद्योगों को बंद करके करते-समझते घूमते रहते हैं। अरे भइया, बंद उद्योगों को चालू करके दिखाओ तो पता चले।
महात्मा गांधी और कृष्ण को अपना अराध्य मानने वाले दीनानाथ की ज्योतिष-विद्या पर भी गहरी आस्था है। वे कहते हैं कि दुनिया में कुछ भी बेकार नहीं। जहर तक बेहद कीमती होता है। मूत्र और मल भी सही इस्तेमाल होने पर सोना बन जाता है। कुछ भी नष्ट नहीं होता है, केवल पदार्थ का रूपांतरण हो जाता है। ( समाप्त )
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(यह लेख लेखक के निजी विचार हैं)
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