खुदा, ट्रेन में ऐसी पदाई से निजात दिला दे मेरे मौला

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

श्रमजीवी सुपरफास्‍ट ट्रेन में पदा-पदाई का गबड़-घमंझा : पूरी की पूरी ट्रेन में केवल भीड़, भोजन और सघन बदबू :

कुमार सौवीर

लखनऊ: लौट के बुद्दू फिर लखनऊ पहुँच रहे हैं। ट्रेन चारबाग के आउटर पर खड़ी है। न उसे कोई दिक्कत, न मुझे कोई समस्या और न बाकी यात्रियों को कोई जल्दी। श्रमजीवी की स्लीपर वाली ठसाठस भरी बोगी जनरल डिब्बा बन गई है। जिन्हें लखनऊ में उतरना है, वे भी निश्चिन्त हैं कि बस 10 मिनट की ही तो बात है। जिन्हें आगे की यात्रा करनी है, वे भी तसल्ली रखे हैं कि जब इतना कट गया तो इत्ती देर के लिए क्या जल्दी दिखाई जाये। हालात प्राणघातक हैं, लेकिन अब कुछ नहीं किया जा सकता है। दिल बैठे रहो।

लोगों ने भोजन सत्र अयोजित करना शुरू कर दिया है। जिसे जहाँ भी जगह मिल रही है, जीम रहा है। ट्रेन के वेंडर बिरयानी से लेकर थाली तक परोस रहे हैं लेकिन बिहार से आई भीड़ का अंदाज़ बिलकुल अलहदा है। जो सपरिवार आये हैं, वे सम्पूर्ण पक्का भोजन लाये हैं। परांठे-पूड़ी-सत्तू भरी रोटी, खुशबूदार सूखी सब्जी-भुजिया, कचालू जैसे आलू, भरवां करेला या बैंगन। साथ में पूरे डिब्बे को गमकाता अचार और चटनी। आखिर में घरेलू मिठाई। कई लोग भूजा-लइया-चना और चटनी का चटखारा ले रहे हैं।

हाँ, घंटों से यात्रा कर रहे यात्रियों का हाजमा अब इस्तीफ़ा देता लग रहा है। कोई सत्तू, कोई मूली, कोई काला नमक के परिवर्तित प्रभाव का समवेत स्वर छोड़ रहा है। कोई शांत भाव में, कोई सस्वर, कोई चुपचाप। बाकी लोग बार-बार अपना पहलू बदल कर जबरन सूंघ रहे हैं।

कुछ भी हो, पेट उनका ही खराब दिख रहा है अपना पेट किसी कूड़ेघर में तबदील करने में जुटे हैं। जो भी दिख जाये, उसे भकोस देना ही उनका अभीष्ट है। बिना कुछ सोचे-बिचारे उदरस्थ कर लेते हैं। बिना खाद्य-अखाद्य की चिन्ता देखे।

मेरे सामने की सीट पर बैठे एक अधेड़ और उसके परिवार ने हर चीज़ को खाने और उसके बाद पूरे कम्पार्टमेंट को जहन्नुम बना देने का संकल्प ले रखा लग रहा है।

ख़ैर, उनका पैसा है, उनका पेट है और उनकी निजी उत्सर्जित गैस है, हम लाख चाहें तो भी उस पर प्रतिबन्ध नहीं लगा सकते। सिवाय इसके कि अपनी नाक दरवाजे या खिड़की में घुसेड़ कर त्राण के चंद क्षण जीने का अदम्य साहस दिखाएँ, खुद को तसल्ली दें कि :- कुमार सौवीर! बस चंद मिनटों का ही मामला है, सब्र रख। चिल्ल मार बे, चिल्ल।

बस एक सलाह देना चाहता हूँ आप सब को।

यात्रा के दौरान ट्रेन या स्टेशन के खाद्य-पदार्थों से दूर ही रहिये। या तो घर से कुछ लेकर आइये, या फिर कहीं भूजा-लइया-चना-चटनी-गुड़ लेकर सफ़र पर निकलिये।

पैसा भी बचेगा आपकी सेहत भी। बख्श दीजिये खुद को और हम जैसे निरापराध यात्रियों को भी।

आपको खुदा का वास्ता है।

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