: सीतापुर में हिंदुस्तान अखबार का महोत्सव आयोजित कराने के लिए व्यवसाइयों से मांगा जा रही है भारी मोटी रकम : सीतापुर के 1:00 बजे व्यवसाई ने दे दिया पत्रकार को टका सा जवाब : ठीक इसी तर्ज पर हर जिले में इस अखबार के पत्रकार उगाह रहे हैं भारी रंगदारी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आपको अगर यह थाह लगाने का शौक है कि पत्रकारिता कितनी निकृष्ट और निचले स्तर तक पहुंचती जा रही है, तो इसके लिए हिंदुस्तान अखबार से दूसरा कोई और पैमाना नहीं हो सकता। जहां के पत्रकार अपना पत्रकारीय दायित्व छोड़ कर दीगर धंधेबाजी में जुट जाएं तो उससे बड़ी बेशर्मी और क्या होगी।
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हिन्दुस्तान, जोश नयी उमंगों का
जी हां, यह मामला है हिंदुस्तान अखबार का। घटना है यूपी के सीतापुर जिले की। यहां इस हिंदुस्तान अखबार के प्रभारी हैं राकेश यादव। फिलहाल तो यह राकेश यादव खबर जुटाने के नाम पर तो धेला भर वजन नहीं उठा रहे, लेकिन बाकायदा रंगदारी और रंगबाजी से व्यवसाइयों से भारी उगाही में तो प्राण-प्रण से जुट जा रहे हैं। हाल ही राकेश यादव ने सीतापुर के एक व्यवसाई को फोन किया। फोन पर इस राकेश यादव ने अपना परिचय जो दिया है, उसे सुनने के लिए आप सामने दिए गए लिंक पर क्लिक कर सुन लीजिए। ऑडियो में राकेश यादव बता रहा है कि उसे सीतापुर आए अभी कुछ ही दिन हुए हैं। जाहिर है कि राकेश जिन लोगों से क्या बात कर रहा है उन्हें न वो जानता है, ना कभी मिला भी है। राकेश यादव ने इस व्यवसायी को इस फोन कॉल पर बताया कि वह चाहता है कि सीतापुर में हिंदुस्तान अखबार का एक बड़ा महोत्सव आयोजित किया जाए।
किन यह राकेश यादव यह नहीं बता रहा है कि उसके इस आयोजन में होने वाला आर्थिक ठीकरा खुद पर संभालने के बजाय, जिले के व्यवसाइयों के माथे पर क्यों थोपा जाए। और खास तौर से तब जब यह राकेश यादव और उस व्यवसाय के बीच कोई बातचीत भी इसके पहले नहीं हो पाई। वह एक दूसरे को जानते तक नहीं। केवल एक इसी फोन के आधार पर राकेश यादव चाहता था कि यह व्यवसायी इस राकेश यादव को इतनी भारी-भरकम रकम थमा दे।
सीतापुर हिन्दुस्तान अखबार के प्रमुख द्वारा स्थानीय एक व्यवसायी से महोत्सव के नाम पर मांगी गयी रकम के फोन-क्लिप को सुनने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:-
कमाल है अखबार, और कमाल के हैं उसके कारिंदे
निहायत दिलचस्प बातचीत है इस व्यवसाय से राकेश यादव की यह ऑडियो क्लिप। जरा गौर से सुनेंगे आप तो आप पाएंगे कि बाकायदा एक दिलचस्प मजाक से कम नहीं है यह वार्तालाप। मसलन राकेश यादव चाहता है कि आयोजन के लिए वह आर्थिक सहयोग कर दे। व्यवसायी ने पूछा कि कितना, तो राकेश ने जवाब दिया 51, इस पर व्यवसायी ने जवाब दिया कि:- अरे ऐसा मत कीजिए, मेरी ओर से 1100 रूपये नोट कर लीजिए। इस पर राकेश यादव बोले कि हम सैकड़ों पर नहीं बात कर रहे हैं। व्यवसायी ने पूछा कि फिर कितना चाहते हैं आप। इस पर राकेश बोला कि 51000। जाहिर है कि व्यवसाय व्यवसायी ने साफ कर दिया कि वह इतनी भारी भरकम रकम दे पाने में समर्थ नहीं है।
इसके बाद उसने पूछा भी कि आप का नाम क्या है। लेकिन तब तक अपना मूड खराब हो चुका था राकेश यादव का, इसलिए उसने दस-पांच सेकंड तक खामोश रहने के बाद फोन काट दिया।
यह हालत है हिंदुस्तान अखबार और उसके पत्रकारों की। कहने की जरूरत नहीं कि पत्रकारों की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने पाठकों तक बेहद उम्दा, रूचिपूर्ण, दायित्वपूर्ण, और स्वतंत्र खबरें पहुंचा दें जिसमें किसी भी तरीके का लाग-लपेट नहीं हो, लेकिन हिन्दुस्तान अखबार का यह सीतापुर प्रभारी राकेश यादव पत्रकारिता छोड़ बाकी सारे धंधों में लिप्त है।
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कहने की जरूरत नहीं कि कुछ इस तरह इतनी मोटी रकम की मांग रखी है इस व्यवसाई से राकेश यादव ने, वह मिल पाना कैसे मुमकिन हो सकता है। वह भी केवल एक फोन कॉल पर। इत्ती रकम कैसे मिल सकती थी। इसके लिए तो बाकायदा परिचय और संदर्भ की आवश्यकता पड़ती है। और यह काम पत्रकार नहीं बल्कि, सेल्स विज्ञापन के अधिकारी ही कर पाते हैं। लेकिन राकेश यादव ने जिम्मा खुद ही उठा लिया और निकल पड़े भारी भरकम उगाही करने।
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सीतापुर के ही एक वरिष्ठ पत्रकार ने राकेश यादव की इस हरकत को निहायत घटिया खांचे पर फिट किया है। इस पत्रकार का कहना है कि बिना जाने पहचाने होने वाली ऐसी मांग केवल माफिया या रंगबाज ही भेजा करते हैं। यह तरीका पत्रकार का नहीं हो सकता। इस पत्रकार का सवाल है कि अब इस बात की जांच होनी चाहिए कि राकेश यादव ने अब तक कितने लोगों से कितनी रकम उगाही और वाकई उस सारी रकम हिंदुस्तान अखबार के खाते में जमा हुई अथवा राकेश यादव ने उसे अपने जेब में ही रख लिया।
इस बारे में राकेश यादव का कहना है कि उन्हें बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। वह इस बात से इनकार करते हैं कि उन्होंने कोई गलत काम किया है।
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