भले ही फर्जी होता, काश मैं फेसबुक में औरत होता

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: मेरे-आपमें कितनी साम्‍यता, आर्त-भाव में बोले एफबीसेवी : औरतों की छींक पर भी पहाड़ टूट पड़ता है, मर्द दक्षिणायन : हाय हाय मैडम, आपने तो कछुए की मुंडी पर ग्रंथ लिख दिया:

कुमार सौवीर

लखनऊ : आप लाख गोते लगाकर गहरे समंदर से मोती ले आएं, लेकिन अगर आप पुरुष हैं तो आपको फेसबुक पर एक-एक लाइक के लिए जहाँ-तहाँ के दरवज्जो पर कटोरा लेकर भीख मांगनी ही पड़ेगी। लेकिन महिलायें इस मामले में जन्मजात समृद्ध होती है। ऐश्वर्यशाली। उनको छींक का अंदेशा हुआ ही नहीं, कि शुभेक्षुओं का कुम्भ उमड़ जाता है। दुनिया भर के तामीरदार उनके सिरहाने से लेकर पैंताने तक पसर जाते हैं।

खुदा न ख्वास्ता, किसी नाज़नीना ने कोई जोड़तोड़ नुमा कविता को जन्म दे पटका, तो फिर तो गजब !

जरा नोश फरमाइए, कि अगर ऐसी तीन-लाइनें आयीं तो, क़यामत कैसे आएगी:-

“कुत्ता जोश में बोला मुंह उठा कर भौंभौं,

फड़फड़ाया कौवा फिर काँव-काँव चिल्लाया

तो कछुए ने पानी में मारी बुड़की”

अब देखिये खुला-फर्रुखाबाद। पहले तो लाइक्स की बारिश शुरू होगी, फिर कमेंट्स की झड़ी:-

वाह।

बहुत खूब।

कमाल कर दिया।

क्या लाइनें हैं।

हाइकू लिखना तो कोई आपसे सीखे।

ओहो! तो आप कविता भी लिखती हैं?

आह्लाद और रुदन का अद्भुत सम्मिश्रण है आप में।

सही बात। कुत्ता भौंकेगा तो कव्वा बोलेगा ही।

कुत्ते के हर्ष पूरित आवाज को केवल आपने ही समझा है। साधुवाद।

यह कविता नहीं, जीवों के किल्लोल का स्वर है।

आपने तो कविता को त्रिलोकी बना दिया।

नभ, थल, जल तक का जायजा ले लिया आपने।

आप बहुत संवेदनशील हैं।

आपसे हमें बहुत सारी उम्मीदें हैं।

एक भावुक महिला ही ऐसे प्राणियों का स्वर बन सकती है।

क्या आप बचपन से कविता करती रही हैं?

आपके हर शब्द में ममत्व झलकता है।

लगता है कि आपके पास आकर ही आपसे कविता सीखना पड़ेगा।

आपके शब्द ही आपका गुण है।

समभाव के प्रति प्रेम आप में कूट-कूट कर भरा है।

शादी हो गई आपकी मैडम जी?

उफ्फ्फ। आवाज न होने के बावजूद किस तरह कछुए ने पानी में बुड़की मार-मार कर अभिव्यक्ति का प्रदर्शन किया।

कौव्वा जरूर कुछ कहना चाहता होगा।

आपका ह्रदय बहुत विशाल है।

कुत्ते और काग-कौव्वे पर तो लिखा जा चुका है। आपने कछुए को भी छू लिया।

आपमें असीम संभावनाएं हैं। आइये कभी लखनऊ। रिक्शे पर लंबा सफ़र करूँगा।

कांव करते कौव्वे की पूंछ पर गौर कीजियेगा मैडम जी, कुत्ता भी भौंकते वक्त अपना पिछला हिस्सा धंसक देता है। ऐसा क्यों होता है मैडम?

आप सा कभी देखा ही नही।

चाँद हैं आप। संभाले रहिएगा खुद को।

कैसे बार-बार अपनी मुंडी निकाल कर आपको देखने के लिए पानी में बुड़की लगाता हो वो कछुआ। उसे भी आपने महसूस लिया। यही तो आपकी महानता है मैडम जी।

आपके चेहरे और भाव में गजब साम्यता है।

जब प्रेम का प्रस्फुटन शुरू हो जाये, तो समझियेगा कि कविता आ रही है।

नशीली आँखों से नाज़ुक की शायरी का अनजान सा रिश्ता है।

चाँदनी सिर्फ आपके चेहरे में मौजूद है, आज पता चला

माशा अल्लाह। आपको देखता हूँ, तो दिल टपक जाता है।

सारी खूबसूरत आपके कदमों पर अता की है अल्लाह ने।

मैडम आपकी आँखों में नूर है, मोहब्बत का।

आप से कैसे बात हो सकती है?

(इसके बाद प्रेम-मोहब्बत के अरमान भी इनबाक्स में आने लग जाते हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *