उम्र के आखिरी पड़ाव में भी बिखर रहे हैं रिश्ते

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

पति की प्रताड़ना से जवानी नर्क, बुढ़ापे तो ठीक हो

: सिर्फ बच्चों के भविष्य के लिए सहन करती रहीं यह महिलाएं : पारिवारिक न्यायालय में लगातार दायर हो रहे हैं ऐसे मामले :

साशा सौवीर

लखनऊ: केस एक- 55 वर्षीय विमला स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं। 57 वर्ष के उनके पति कमल इंजीनियर हैं। विवाह को तीस साल हो गए और अब विमला अलगाव चाहती हैं। उनके पति ऐसा नहीं चाहते इसलिए पिछले कई महीनों से विमला पारिवारिक न्यायालय के चक्कर काट रही हैं। उनके तीनों बच्चे ब्रिटेन में रहते हैं।

केस दो- 50 वर्ष की सविता एक अस्पताल में नर्स हैं। पति सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं। दो बच्चे हैं, जिनकी शादी हो चुकी है। सविता और उनके पति में 25 सालों तक बहुत नोक-झोंक हुई। कई बार अलग रहने की सोची, लेकिन बच्चों के भविष्य के डर से ऐसा नहीं कर पाए। अब बच्चे अपने पैरों पर खड़े हैं तो दोनों अलग होना चाहते हैं।

केस तीन- राकेश 56 एक निजी कंपनी के कर्मचारी हैं। उनकी 51 वर्षीय पत्नी, आशा भी उसी कंपनी में हैं। दोनों का प्रेम विवाह था। एक लड़की है जिसका विवाह हो चुका है। अब दोनों ने ही अलग रहने का फैसला कर लिया है। राकेश के मुताबिक शादी के पहले पंद्रह वर्ष तो ठीक से बीते लेकिन इसके बाद परेशानियां बढ़नी शुरू हो गईं। छोटी-छोटी बातों पर भी बड़े झगड़े होने लगे। बेटी की फिक्र थी इसलिए अलग नहीं हो पाए। लेकिन अब ऐसा कोई बंधन नहीं है। इसलिए अलगाव का केस दायर कर दिया।

उपरोक्त तीनों मामलों में सभी के नाम काल्पनिक हैं, मगर कहानी सचाई की धरातल पर है। बहरहाल, भारतीय समाज में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है। ऐसे कई मामलों को देख चुके एडवोकेट पद्म कीर्ति के मुताबिक 50 से 60 उम्र के लोगों के अलगाव के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। अधिकतर महिलाएं अपना संपूर्ण जीवन घर परिवार को समर्पित कर परिवार को खड़ा करती हैं। यदि किसी मुद्दे पर मतभेद होता भी है तो वे बच्चों के भविष्य के लिए चुप रहती हैं।

लेकिन, अब इस प्रवृत्ति में बदलाव देखने को मिल रहा है। ज्यों ही बच्चों ने आत्मनिर्भरता की दुनिया में कदम रखा त्यों ही अभिभावकों की भी जिम्मेदारी समाप्त हो गई। अब कोई वजह भी नहीं बची इन झगड़ों को सहने की। और सीधे आ गए पारिवारिक न्यायालय। काउंसलर सुधा मिश्र कहती हैं कि वह महिलाएं जिनके जीवन में प्रेम से अधिक लड़ाई झगड़ा रहा, ऐसा कदम उठाती हैं। बच्चों को कोई मुकाम मिल जाए इसके बाद वह खुद भी किसी बेड़ियों में नहीं रहतीं।

ऐसे मामलों में महिलाओं की आत्मनिर्भरता को भी नकारा नहीं जा सकता। अब पहले जैसा परिवेश नहीं रहा, जहां स्त्रियां सबकुछ सहकर भी ताउम्र ससुरालीजनों की कैद में रहने को तैयार थीं। स्थितियां बदल चुकी हैं, अब जैसे ही बच्चे बड़े होकर अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं वैसे ही वह भी आजादी की मांग करती हैं। आत्मनिर्भरता के कारण पैसे के लिए पति से आस नहीं लगानी होती और इसी कारण अलगाव के लिए अपील करती हैं। इन दिनों ऐसे मामलों की तादाद अधिक हैं, जहां बच्चे अपने पैरों पर खड़े हैं और माता पिता अलग होना चाहते हैं। इस उम्र में अलगाव के कारण बच्चों की मानसिक स्थितियों पर अधिक असर नहीं पड़ता। ऐसा नहीं है कि सभी आत्मनिर्भर महिलाएं ऐसा करती हैं लेकिन कुछ तो हैं ही।

सुश्री साशा सौवीर दैनिक जागरण में रिपोर्टर के पद पर कार्यरत हैं। साशा सौवीर की यह रिपोर्ट लखनऊ से प्रकाशित दैनिक जागरण में प्रकाशित हो चुकी है।

उनसे sashasauvir@yahoo.com अथवा 09453029124 पर सम्पर्क किया जा सकता है।

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