बरेली की पत्रकारिता में परस्‍पर चड्ढी-उतार आंदोलन शुरू

दोलत्ती

: उपजा उपाध्‍यक्ष ने दैनिक अमृत-विचार के संपादक के आरोपों पर फेंका कड़ा जवाब : झूठ बोल रहे हैं शम्‍भूदयाल बाजपेई। ज्ञानी नहीं, मूलत: अज्ञानी हैं आजकल के संपादक :
संजीव गम्‍भीर
बरेली : नए मीडिया संस्थान में कोरोना का संक्रमण इतनी तेजी से फैला कि अब तक करीब 15 पॉजिटिव केस निकल चुके हैं और कई की रिपोर्ट आनी बाकी है। लेकिन उससे ज्‍यादा तो इस अखबार को लेकर हंगामा ही खड़ा हो चुका है। इस मीडिया संस्थान में कोरोना का संक्रमण इतनी तेजी से फैला कि अब तक करीब 15 पॉजिटिव केस निकल चुके हैं और कई की रिपोर्ट आनी बाकी है। इस संस्थान के कुछ मीडिया कर्मियों को 300 बिस्तर वाले अस्पताल में भर्ती किया गया था लेकिन उन्हें वहां खाने के लिए भटूरे कचौड़ी, खसता कचौड़ी, छोला आदि चिकनी तली चीजें मिल रही थी। जिसको खाना पहुंचाने वाले कर्मचारी जमीन पर रखकर छोड़ जाते थे। यानी मीडिया कर्मियों को जानवरों की तरह दूर से अछूत समझकर खाना जमीन पर रखकर कर्मचारी भाग जाते थे जिसके वीडियो भी इसी मीडिया संस्थान के कर्मचारियों ने कई बार वायरल किए। फेसबुक पर भी लाइव हुए और शायद आपने देखे भी होगे।
इस संस्थान में संक्रमण कैसे फैला इसके बारे में हम नहीं कहना चाहते ना किसी को हमने दोषी ठहराया था सोशल डिस्टेंसिंग का कितना पालन हो रहा था अंदर या एक एक कंप्यूटर पर दो दो लोग काम कर रहे थे या नहीं। मास्क लगाने पर मीडिया बंधुओं को क्या-क्या सुनना पड़ा या सैनिटाइजर को लेकर क्या प्रतिक्रियाएं हुई। दफ्तर के अंदर पैर कौन कौन और किसके छूते थे, इसकी चर्चा भी हम नहीं करना चाहते । खुद संबंधित संस्थान के कर्मचारी भली-भांति जानते हैं और अब तो सार्वजनिक तौर से कहते सुने जाते हैं।
मैंने पत्र के माध्यम से केवल इच्छा जाहिर की थी कि 300 बेड वाले सरकारी अस्पताल से कोरोना संक्रमित मीडिया बंधुओं को वहां से रोहिलखंड मेडिकल कॉलेज शिफ्ट कर दिया जाए जिसके मालिक डॉ. केशव अग्रवाल मीडिया संस्थान के मालिक भी हैं।
जब इस संस्थान के कर्मचारियों के द्वारा अतिशय सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की बदनामियां सार्वजनिक तौर से की गई तो मजबूरन प्रशासन ने 300 बिस्तर का अस्पताल में इलाज करा रहे संक्रमित मीडिया बंधुओं को बीती रात रोहिलखंड मेडिकल कॉलेज शिफ्ट करवा दिया आज की रिपोर्ट के अनुसार कुछ संक्रमित इसी संस्थान के और साथी भी इसी मेडिकल कॉलेज में पहुंच गए हैं करीब 13 या 14 लोग एक ही संस्थान के रोहिलखंड मेडिकल कॉलेज में भर्ती हो चुके हैं।
मैंने जितनी भी पोस्ट लिखी किसी व्यक्ति विशेष को टारगेट करके नहीं लिखी ना ही मेरा उद्देश्य संस्थान को बंद कराना या बदनाम करना था फिर भी यहां के जिम्मेदार अधिकारी महोदय ने फेसबुक पोस्ट के जरिए ऐसी भावनात्मक पोस्ट लिखी जिसकी प्रतिक्रिया में लोगों ने मुझे ” निकम्मा एहसान फरामोश कमजार्फ ” और पता नहीं क्या-क्या विशेषण लगाकर नवाजा।
मेरे फेसबुक मित्रों के तमाम के फोन भी आए और तरह तरह की प्रतिक्रियाएं व्यक्त की । मुझे लगा की सच आपके बीच आना ही चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।
किसी जमाने में मैं बरेली कॉलेज में नौकरी करता था राइटिंग अच्छा था । कॉलेज की विज्ञप्ति अखबारों को मेरे ही हस्त लेख से जाती थीं उस समय दैनिक जागरण में सिटी इंचार्ज हुआ करते थे किशोर झा जो मधुबनी बिहार के थे और एजुकेशन रिपोर्टर थे दिनेश पवन। पवन जी आजकल दो टूक अखबार में संपादक हैं। अचानक दिनेश पवन ने कहा कि किशोर झा साहब आपसे मिलना चाहते हैं जरूरत समझो तो जागरण कार्यालय आ जाना।
जब मैं किशोर झा से मिलने गया तब उन्होंने पूछा कि क्या करते हो मैंने बताया अमुक अमुक जिम्मेदारी बरेली कॉलेज प्रबंधन ने दे रखी है फिर पूछा किस समय खाली हो जाते हो ? क्या जागरण के लिए कुछ समय निकाल सकते हो? बाद में वार्तालाप के बाद तय हुआ कि शाम 6:00 से रात 12:00 बजे तक पार्ट टाइम कार्य करके मुझे कुछ पैसा मिल जाएगा।
दैनिक जागरण बरेली में मेरी शुरुआत किशोर झा के निर्देशन में पार्ट टाइमर के तौर पर हुई। जब कॉलेज प्रबंधन को मेरे अखबार में काम करने पर ऐतराज हुआ तब इसकी जानकारी मैंने तत्कालीन महाप्रबंधक श्री चंद्रकांत त्रिपाठी जी को दी उन्होंने मुझसे फ़ौरन बरेली कॉलेज की नौकरी से त्यागपत्र देकर फुल टाइम जागरण के लिए ही काम करने का ऑफर दिया। मैंने त्रिपाठी जी के आदेशानुसार बरेली कॉलेज की नौकरी छोड़कर पूरी तरीके से जागरण ज्वाइन कर लिया ।
हुई उसके बाद मेरे दूसरे इंचार्ज श्री आशीष अग्रवाल जी बने जो आज भी बरेली में मौजूद हैं उस समय पंकज शुक्ला भी सिटी में हुआ करते थे तीसरे इंचार्ज कुछ समय के लिए श्री शंभूदयाल बाजपेई जी रहे और बाद में चौथे सिटी इंचार्ज अमर उजाला से आए पवन सक्सेना रहे। पवन सक्सेना जी के कार्यकाल में मेरा ट्रांसफर बरेली से पीलीभीत कर दिया गया जहां निर्मल कांत शुक्ला के निर्देशन में करीब 6 महीने काम करने के बाद मैं बीमार हो गया अस्पताल में भर्ती रहा। मजबूरन मैंने अपने बरेली कॉलेज के गुरु और तत्कालीन अमर उजाला के संपादक डॉक्टर स्वर्गीय वीरेन डंगवाल जी से संपर्क किया।
डॉक्टर वीरेन डंगवाल जी ने सुनील साहब को फोन पर मेरे बारे में जानकारी दी और अमर उजाला ज्वाइन कराया जब मैं दैनिक जागरण से 2003 में करीब 5 साल जागरण की नौकरी करने के बाद अमर उजाला आया उस समय भी अस्थाई कर्मचारी था मानदेय पेट्रोल और मोबाइल का एकमुश्त खर्चा मिलता था जो करीब साडे ₹7000 था। यानि पे रोल पर नहीं था। आज फेसबुक के जरिए पता लगा कि जागरण में मेरा वेतन लगवाया गया था।
आज मेरे 20 25 साल के कैरियर पर प्रकाश डालती हुई पोस्ट पड़ी जिसमें तमाम लोगों ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मुझे निकम्मा एहसान फरामोश कमजार्फ पता नहीं क्या-क्या टिप्पणियां की है जिससे मन बेहद आहत हुआ मुझे लगा की सच्चाई आप सबको भी बतानी चाहिए।
1- जागरण में नौकरी के दौरान मैं वेतन यानी पे रोल पर कभी हुआ ही नहीं था।
2- मेरा उद्देश्य जिस संस्थान में बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी संक्रमित हो रहे थे और तरह-तरह के वीडियो वायरल कर रहे थे जिससे ना केवल स्वास्थ्य विभाग और प्रदेश सरकार की बदनामी हो रही थी उनको सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से निकालकर रोहिलखंड मेडिकल कॉलेज शिफ्ट करवाना था जो बीती रात हो गया और अब तक बताते हैं 15 कर्मचारी एक ही संस्थान के मेडिकल कॉलेज पहुंच भी गए हैं।
3- मीडिया कर्मियों श्रमजीवी पत्रकारों आर्थिक रूप से तंगी झेल रहे साथियों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं दिलवाने का प्रयास करना दोस्तों क्या कोई खेल खेलना था जैसा की पोस्ट में बताया जा रहा है कि मैं कोई खेल खेल रहा था मेरी फेसबुक की पोस्ट पढ़कर भी आप समझ जाएंगे ना ही मेरा उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष को आहत करना था।
4- जब मैं हिंदुस्तान बदायूं का इंचार्ज था तब मैंने बदायूं में भली प्रकार स्थापित सीनियर साथी के स्थान पर ऐसे अनुभवहीन और पहली बार पत्रकारिता में उतरे नौजवान को अपने टीम में शामिल किया जिसको शायद पोस्ट में सम्माननीय लिखना आज की तारीख में भूल गए होंगे शायद उन्हें याद भी नहीं रहा होगा। उस समय बड़ा बेटा बेटा बेरोजगार और छोटा लॉ की पढ़ाई कर रहा था और माननीय जाजरण से रिटायर्ड होकर सिख साहित्य का अध्ययन कर रहे थे। अक्सर हम उनके कहने के बाद शहर के पूंजीपतियों से अखबार चलाने का आग्रह करते थे ताकि माननीय की काबिलियत का सदुपयोग हो सके। क ई बार तो फोन निवास से और उनके सामने ही किए थे।
5- जब मैं कैनविज टाइम्स बरेली में काम करता था तब भी बरेली और लखनऊ यूनिट में कई लोगों को नौकरी लगवाने के लिए तत्कालीन उप महाप्रबंधक नितिन अग्रवाल से जोरदार पैरवी की थी जिसके सकारात्मक नतीजे आए किसी को बरेली तो किसी को लखनऊ में प्रबंधन ने अच्छी स्थितियों में बैठाया।
6- जिन हालातों में लखनऊ कार्यालय कैनविज टाइम्स बंद किया उस समय लखनऊ में जबरदस्त प्रबंधन के खिलाफ नेतागिरी हुई जिसमें तरह-तरह के ताने कैनविज टाइम के जिम्मेदार लोगों ने मुझे भी दिए कि तुम्हारी वजह से ऐसे लोगों को भर्ती कर लिया जिसकी वजह से प्रबंधन को परेशानियां उठानी पड़ रही हैं। आखिरकार भारी नुकसान के बीच कैनविज टाइम्स, लखनऊ बंद करना पड़ा।
7- इसी पोस्ट में किसी माननीय को लिखा है की “शब्दों के जादूगर हैं आप” बात बिल्कुल सही ही है । शब्दों की बाजीगरी करके जो पोस्ट मेरे विरुद्ध की गई है उसमें तमाम असत्य तथ्य गढ़े गए हैं और मुझे वास्तव में एहसान फरामोश साबित करने का प्रयास किया गया है। जबकि सारा शहर जानता है की स्वास्थ्य विभाग में कई साल नौकरी करने के बाद बरेली कालेज, दैनिक जागरण अमर उजाला, हिंदुस्तान कैनविज टाइम्स के बाद अभी भी संघर्ष के पथ पर अग्रसर हूं और यूपी जर्नलिस्ट एसोसिएशन में दूसरी बार लगातार प्रदेश उपाध्यक्ष चुना गया हूं ।
पत्रकारों की पीड़ा, उपेक्षा उनके साथ अन्याय देखकर बहुत दिन चुप नहीं रह पाता हूं शायद इसी वजह से लोगों को जो खुद को संस्थानों के मालिक समझते हैं वह मुझे विलेन के रूप में देखते हैं और समझ भी रहे हैं।
मेरे मन में जिन लोगों के प्रति आदर था सम्मान था वो आज भी है और सदैव रहा रहेगा भी। वैसे व्हाट्सएप के जरिए सीधे भी अपनी बात साफ कर चुका हूं। लेकिन तमाम फोन आने के बाद मन जब ज्यादा बोझिल होने लगा तब मुझे फेसबुक मित्रों को भी अपने मन के उदगार साझा करने पड़ रहे हैं।
हर व्यक्ति मर्यादा और संस्कारों में बंधा हुआ है वैसे भी यश – अपयश, लाभ – हानि, जन्म – मरण व्यक्ति के हाथ में नहीं ईश्वर के हाथ में है और जो व्यक्ति यह समझता है की मैं किसी का अहित कर सकता हूं तो मेरी नजर में बहुत ज्ञानी नहीं अज्ञानी ही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *