नौकरशाह तो कुत्ते की पूंछ हैं। और आप क्या है ?

मेरा कोना

: एक आईएएस की वॉल पर एक छोटे अफसर रहे शख्‍स ने पढ़़ा बड़े अफसरों पर मर्सिया : एक लाइन में 8 गलती की है इस ईएसआई अस्पताल के पूर्व डायरेक्टर ने : अपनी बेईमानी को बड़े अफसरों की करतूत साबित करते हैं छोटे कर्मचारी और अफसर :

कुमार सौवीर

लखनऊ : शिक्षा विभाग के कई शिक्षकों-अफसरों ने कभी नौकरी की ही नहीं, घूस को लेकर झगड़ा हमेशा किया। हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में घूस उगाहने के लिए बात-बात पर आपत्तियां दर्ज की जाती हैं। पुलिस में बिना पैसे के काम ही नहीं होता, बड़े अफसर भी अपना काम करने के लिए घूस देते हैं। बड़ी संख्‍या में डॉक्‍टर लोग नौकरी में होते हुए भी प्राइवेट प्रैक्टिस करना चाहते हैं। सीएमओ केवल इसी बात के लिए उनकी करीब आधी तनख्‍वाह उगाह लेते हैं। कलेक्‍टर आफिस का अधिकांश विभिन्‍न विभागों से कमीशन उगाहने का हिसाब-किताब रखने के लिए मशहूर है।

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बड़ा बाबू

यूपी सरकार में आईएएस रह चुके हैं राकेश मिश्रा की पहचान बेहद सरल, शिष्ट और समझदार लोगों में होती है। सामाजिक समझ और ईमानदारी में यकीन करते हैं राकेश मिश्र। आज उन्होंने Facebook पर एक टिप्पणी की है योगी सरकार के बारे में। बताया है कि:- योगी की कमजोरी यह है कि वह अपने मंत्रियों और उच्च शिक्षा नौकरशाहों पर काबू कर पाने में नाकाम रहे हैं। इस पोस्ट पर कानपुर ईएसआई अस्पताल के पूर्व निदेशक ओम प्रकाश गुप्ता ने अपनी राय दर्ज की है। विश्‍लेषण नहीं, केवल अभद्रता और अशिष्टता के साथ उन्होंने लिखा है कि उच्च नौकरशाह तो कुत्ते की पूंछ हैं। इनसे प्रदेशवासी शर्मिंदा हैं, वगैरा-वगैरा।

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लर्नेड वकील साहब

समस्या यह है हम बड़ी हैसियतदार लोगों पर ही थूकना चाहते हैं, अपने गिरेबान में कत्‍तई नहीं झांकना चाहते। किसी के पास भी इतनी भी नैतिकता नहीं है कि वह अपने गिरेबान में झांक ले। आइए, हम आपको दिखाते हैं कि अगर आप छोटे कर्मचारी या छोटे अफसर हैं अथवा रह चुके हैं तो आपके गिरेबान में कितनी गंदगी है। क्‍या यह सच नहीं है कि आप अपने पूरे जीवन में अधिकांश समय केवल अपने लिए जीते रहे हैं। अपने हकों के लिए लड़ते हैं, यह सोचे बिना कि अपने हक के लिए आप किसी दूसरे के ख्‍वाब और हक को कत्ल करने से भी नहीं चूकते। आपको अपनी सुविधाएं चाहिए, आराम चाहिए, अपना समय चाहिए समय से वेतन वृद्धि चाहिए, नया वेतनमान चाहिए, बोनस चाहिए, घूस चाहिए, दूसरे को परेशान कर रकम वह उगाहना चाहिए, लेकिन वह काम नहीं करना चाहते हैं आप जिनके लिए सरकार ने आपको यह नौकरी दी है।

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गुरूजी ! चरण-स्‍पर्श

शर्म आती है ऐसे लोगों पर। जब तक नौकरी न मिले तो भ्रष्‍टाचार को गालियां दो, और जब नौकरी मिल जाए, उसी दिन से आप बेईमानी करने पर आमादा हो जाते हैं। भले ही उसमें आपको जेल तक जाना पड़े। नजीर हैं प्रदीप शुक्‍ला, जो आजकल डासना जेल में हैं।

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धन्‍वन्‍तरि डॉक्‍टर !

आइए हम आपको दिखाते हैं कि आप जैसे अधिकांश लोग हैं क्या। मुझे उम्मीद है कि इस बात को आप अपने संदर्भ में जोड़कर अपने गिरेबान में झांकने की कोशिश करेंगे।  अभी हाल ही लखनऊ के ट्रामा हॉस्पिटल में एक बीमार महिला की बर्बर पिटाई, उसे बचाने आये उसके तीमारदारों ने जब हस्‍तक्षेप किया तो सारे डॉक्‍टरों ने मिल कर उन लोगों को पीटा-कूटा। गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हाल ही दिमागी बुखार से मारे गए दर्जनों मासूम बच्चों का मामला निपटा भी नहीं था कि वहां के डॉक्टरों ने पीड़ित मासूम बच्चों के तीमारदार को बुरी तरह पीट दिया। मेडिकल कॉलेज मरीजों और उनके तीमारदारों के बूचड़खाने से कम नहीं है। यह केवल गोरखपुर और लखनऊ के डॉक्टरों की ही नहीं, बल्कि कमोबेश सभी सरकारी अस्‍पतालों में कार्यरत डॉक्‍टरों की करतूते हैं। ( क्रमश: )

बेईमानी और भ्रष्‍टाचार हमारे देश या समाज में नहीं, बल्कि हमारे-आपके जैसे हर देशवासी के दिल-दिमाग में धंसा-घुसा है। जहां धोखा और झगड़ों की नित-नयी कोंपलें निकलती रहती हैं, नैतिकता के नये रास्‍ते खुलते रहते हैं।

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क्‍योंकि हम-आप बेईमान हैं

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