: सीधा-सादा सवाल है कि क्या ऐतराज है आपको चूतिया शब्द से : मांसाहार नहीं करेंगे, लेकिन उसकी लज्जत और खुशबू से बेहाल हो जाते हैं हमारे बुद्धिजीवी : चूतिया की भी एक नयी वेज-डिश बना दी है, सिर्फ चटकारा-स्वाद के लिए : अब बोलो न, कि सूतिया शब्द का जन्म सूत से है या फिर सूत-जाति से :
कुमार सौवीर
लखनऊ : बहुतेरे लोग हैं जो मांसाहार तो नहीं करते, लेकिन मांसाहारी खुश्बू और उसकी लज्जत बहुत पसंद है। ऐसे लोगों की ख़ास पसंदीदा डिश होती है, टंगड़ी-गोभी, गोभी लेगपीस, वेज कबाब-पराठा, वेज बिरयानी, पनीर-टिक्का वगैरह वगैरह। रेस्टोरेंट से लेकर पार्टियों तक इनकी धूम रहती है। गुड़ खाएंगे, गुलगुला से परहेज। धत्त तेरी की…
शब्दों में भी यही नौटंकी चल रही है। न जाने किसने बखेड़ा कर दिया कि चूतिया शब्द कोई गाली है। मैं तो यह शब्द का दबाकर, धमाकेदार और खुलेआम इस्तेमाल करता हूँ। एक बैठक में एक ने इसी बात पर मेरा गहरा विरोध कर दिया।
मैंने कारण पूछ लिया तो वे अचकचा गए। चुपके इशारे से बताया कि, “यह गन्दा शब्द है।”
क्यों?
फिर भड़क गए। बोले:- ” उं हूं। इतने पढ़े-लिखे हैं आप, आपको नहीं पता इस अश्लील शब्द का मतलब?” इसी बीच एक व्याक्ति ने खुद को बहुत समझदार जताते हुए खुसफुसाते हुए इंगित करते हुए बता दिया कि :- ” त् च, यह है समझे?”
कमाल है यार। न तुक, न कोई ताल। आपको जो भी मन आएगा, उसे न सिर्फ मान लेंगे, बल्कि हमें और दूसरों को भी मानने पर बाध्य कर देंगे? हकीकत तो यह है कि आपका दिमाग ही कूड़ाघर है, जिसमें आप लगातार सड़ांध फेंक रहे हैं। कचरा तो आपके दिमाग में ही है दोस्त।
जो भी आपके मन में आएगा, वो ही करेंगे आप। तर्क, कारण, तथ्य की कोई अहमियत नहीं होती आपके सामने।
अब ताजा डिश आ गई है। मांसाहारी का विकल्प। आपके हिसाब से, आपकी भाषा के स्तर पर। शब्द है:- “सूतिया”। खुद को पढ़े-लिखे कहलाने में गर्व करने वाले बौद्धिक लोग इस सूतिया शब्द का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं।
अब बोलो? इस शब्द का जन्मदाता कौन है? इसका डीएनए किस समूह से है? सेल किस प्रजाति से मेल खाता है? वंशवली कहाँ है इसकी? सिजरा कहाँ है? “चूतिया” शब्द से तो आप अनुमान लगा लेते हैं। लेकिन अब इस “सूतिया” का इशारा किस व्यंजन से है? कहाँ है इसका लङ-लकार? व्याकरण कहाँ है इसका? बात करते हैं—
अगर चूतिया शब्द आपको किसी अंग-विशेष को इंगित करता है, क्योंकि उससे आपको इलहाम-नुमा आभास होता है, तो फिर सूतिया से तो सूत का आभास क्यों नहीं होता, जो श्रेष्ठ वस्त्र-धागे की प्राथमिक इकाई होता है? पर अब एक नया लफड़ा कि सूत तो श्रेष्ठता का प्रतीक है, फिर इसका नकारात्मक प्रयोग क्यों? और अगर आप इसे सूत यानी दास जाति से जोड़ रहे हैं तो आपकी मानसिकता ही दूषित है।
गनीमत है कि आपको गायत्री-मन्त्र पर ऐतराज करने की हैसियत नहीं है, वर्ना…. “भर्गो देवस्य धी मही धियो योनः प्रचोदयात।” दिमाग की खिड़की खोलने की जहमत तो उठाइये, 84 लाख योनियों पर विचरण करती आपकी आत्मा व्याकुल हो जायेगी। भूल जायेंगे आप शिव-लिंग। आपको यह भी नहीं होगा कि कृष्ण का एक नाम अच्युतानंद भी है। गनीमत है कि आपकी बुद्धि अभी तक भगवान तक नहीं पहुँच सकी है।
तो जाइए, शब्दकोश के पन्ने पलट दीजिये। स्याह-सफ़ेद सब मिल जायेगा।
और हाँ, अब तर्क-तथ्य-साक्ष्य के साथ ही बात कीजियेगा।
क्या समझे?
नहीं समझे तो कोई बात नहीं। फिलहाल इतना समझ लो कि इधर-उधर चीजों को फेंकना, बस-ट्रेन, सार्वजनिक स्थान या सड़क आदि पर गंदगी करना, खैनी-पान-गुटखा खा कर जहां-तहां थूकने वाले को ही चूतिया कहा जाता है। जैसे ही आप ऐसे कर्म करते किसी को देखें तो फिर पूछने की जरूरत नहीं होगी। समझ लीजिएगा कि वह अमुक शख्स चूतिया ही है। शर्तिया चूतिया और गारंटेड चूतिया।
और हां, चूतिया शख्स अपने परिवार में केवल ही नहीं होता है, उसके कर्म ही उसके परिवार से सम्बद्ध हो जाते हैं। उसकी संतान भी होती हैं और ऐसी संतानों को साफ-साफ शब्दों में उसकी महानता के साथ पहचानेे जाते हुए बाकायदा चूतियानन्दन ही पुकारा जाता है।